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बीजेपी को मुश्किल में डालने वाले बयान क्यों दे रहे हैं गवर्नर सत्यपाल मलिक

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयानों के कारण बीजेपी की मुश्किल बढ़ती जा रही है. आखिर वह पार्टी की भावना से अलग हटकर क्यों बयानबाजी कर रहे हैं. पढ़ें स्टोरी.

satyapal malik and his statements
satyapal malik and his statements

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Published : Oct 23, 2021, 3:52 PM IST

Updated : Oct 23, 2021, 5:38 PM IST

हैदराबाद :मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक लगातार अपने बयान से केंद्र सरकार निशाने पर ले रहे हैं. किसान, कोरोना, कश्मीर के मसले पर उनके बयानों से ऐसा लगता है कि वेस्टर्न यूपी के जाट नेता सत्यपाल मलिक बीजेपी नेतृत्व को ऐसा कदम उठाने को मजबूर कर रहे हैं, जिससे उन्हें राजनीति का दूसरा रास्ता तलाशने का मौका मिले. सवाल यह है कि सत्यपाल मलिक अचानक नाराज क्यों हो गए. जबकि यह वही नेता हैं, जिन्होंने जाट आंदोलन के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी और बीजेपी को मुश्किल से निकाला था.

2017 में सत्यपाल मलिक बिहार के राज्यपाल बने. फाइल फोटो

क्या खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं सत्यपाल

सत्यपाल मलिक लगातार हो रहे तबादलों को लेकर सुर्खियों में रहे. वह उस समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, जब वहां से विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटाया गया था. उससे पहले वहां तैनात एन एन बोहरा ने केंद्र सरकार को अनुच्छेद 35 A में संशोधन के लिए स्थानीय सरकार के गठन होने तक इंतजार करने की सलाह दी थी. सत्यपाल मलिक ने 23 अगस्त 2018 को पदभार संभालने के बाद केंद्र सरकार की यह मंशा पूरी कर दी. अनुच्छेद 370 हटने के बाद उन्होंने हालात को काबू में रखा था. इसके बाद भी उनका ट्रांसफर कर दिया गया.

लगातार तबादलों से नाराज हैं मेघालय के गवर्नर

पॉलिटिकल एक्सपर्ट बताते हैं कि 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया तो सत्ता गवर्नर के हाथ से निकल गई. अब दोनों राज्यों में उप राज्यपाल की नियुक्ति होनी थी. तकनीकी तौर पर एक राज्यपाल को उपराज्यपाल नहीं बनाया जा सकता था. बताया जाता है कि सत्यपाल मलिक ने इस बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बनने की दिलचस्पी दिखाई, मगर केंद्र तैयार नहीं हुआ.

2018 में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बनाए गए थे. फाइल फोटो

नवंबर 2019 में सत्यपाल मलिक का तबादला गोवा कर दिया गया. मगर कोरोना प्रबंधन को लेकर सीएम प्रमोद सावंत से उनकी नहीं बनी. उन्होंने राज्य सरकार के एक नए राजभवन के निर्माण के फैसले पर भी आपत्ति जताई थी. अगस्त 2020 में उन्हें मेघालय की जिम्मेदारी दी गई. इस तरह एक साल के भीतर उनका तीसरी बार तबादला हुआ. जम्मू-कश्मीर में एक साल तक राज्यपाल रहने से पहले वह बिहार के गवर्नर थे.

सतपाल मलिक के बयान, जिससे बीजेपी असहज

जम्मू-कश्मीर में रहने के दौरान मेरे पास अंबानी की दो फाइलें आई थीं. एक में अंबानी इन्वॉल्व थे. एक में संघ के बड़े पदाधिकारी थे. हर एक फाइल पर उन्हें डेढ़ सौ करोड़ ऑफर हुए थे. दोनों विभागों के सेक्रेटरी ने बताया कि इसमें घपला है. मैंने दोनों डील कैंसिल कर दी.

मेरे राज्यपाल रहते श्रीनगर में तो क्‍या उसके 50-100 किमी के आसपास भी आतंकी नहीं फटक पाते थे वहीं, अब राज्‍य में वो हत्‍याओं को अंजाम दे रहे हैं.

लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा का इस्तीफा उसी दिन होना चाहिए था, वो वैसे ही मंत्री होने लायक नहीं हैं.

गवर्नर का कोई काम नहीं होता. कश्मीर में जो गवर्नर होता है वह अक्सर दारू पीता है और गोल्फ खेलता है. ( बागपत के हिसावदा गांव में बोलते हुए)

अगर किसानों को अपमानित कर दिल्ली से भेजा गया तो वो इस बात को 300 सालों तक नहीं भूलेंगे. (कृषि कानून के विरोध कर रहे किसानों के समर्थन में)

अगर किसानों की मांगें पूरी नहीं की गईं, तो यह सरकार (Central Government) सत्ता में नहीं लौटेगी.

सत्यपाल मलिक के राजनीतिक जीवन के बारे में

बतौर राजनेता 47 साल के राजनीतिक सफर में सत्यपाल मलिक भारतीय क्रांति दल, लोकदल, कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी जैसे दलों में रह चुके हैं. 2004 से बीजेपी में हैं. जाट नेता के तौर पर राजनीति में पहचान रखने वाले सत्यपाल मलिक का जन्म बागपत के हिसावदा गांव में हुआ था. छात्र जीवन में ही उन्होंने राजनीति शुरू कर दी और दो बार मेरठ कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष बने.

नरेंद्र मोदी के साथ सत्यपाल मलिक. फाइल फोटो

उन पर राजनीति के दिग्गज चौधरी चरण सिंह की नजर पड़ गई, 1974 में बागपत से ही भारतीय क्रांति दल का टिकट दे दिया. 28 साल की उम्र में ही सत्यपाल मलिक चुनाव जीतकर लखनऊ की विधानसभा में पहुंच गए. 1980 में चौधरी चरण सिंह ने लोकदल के खाते से राज्यसभा में भेज दिया. 1984 में राजीव गांधी के करीब आए और कांग्रेस में शामिल होकर दोबारा राज्यसभा पहुंचे.

सत्यपाल मलिक, फाइल फोटो

बोफोर्स घोटाले की गूंज के बीच उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल में चले गए. 1989 से 1991 तक अलीगढ़ सीट से जनता दल की तरफ से सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी रहे. जनता दल के कई टुकड़े हुए तो सत्यपाल मलिक 1996 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के मेंबर बने. सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गए. 2004 में उन्होंने अटल-आडवाणी वाली बीजेपी जॉइन कर ली. बीजेपी ने उन्हें बागपत से अजित सिंह के खिलाफ उतार दिया, वह हार गए. 2014 में मोदी सरकार आई तो दोबारा एक्टिव हुए. 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया. फिलहाल मेघालय के गवर्नर हैं.

Last Updated : Oct 23, 2021, 5:38 PM IST

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