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आजम-अखिलेश की सियासी चालों पर भाजपा ने ऐसे फेरा पानी, इन वजहों से पंचर हुई साइकिल

कहते हैं सियासत में कभी भी कुछ भी हो सकता है. आजम और अखिलेश यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. जिस गढ़ को सपा अपना अभेद किला मानती थी अब वो दोनों ही सीटें सपा के पास नहीं है. इन सीटों को भाजपा ने जीत लिया है. आखिर किस वजह से सपा ने ये दोनों सीटें गंवाईं चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ कारणों के बारे में.

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Published : Jun 26, 2022, 7:31 PM IST

आजम खान और अखिलेश यादव.
आजम खान और अखिलेश यादव.

हैदराबादः आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा उपचुनाव के परिणाम बेहद ही चौंकाने वाले रहे हैं. एक ओर जहां आजम के गढ़ में उन्हीं के करीबी और भाजपा के प्रत्याशी घनश्याम लोधी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर आजमगढ़ में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ जीत गए हैं. दोनों ही सीटों को गंवाना सपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है.

बता दें कि 2019 में आजमगढ़ में एसपी प्रत्याशी आजम खान को 559,177 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर रहीं बीजेपी की जयाप्रदा नाहटा को 449,180 वोट मिले थे. वहीं, कांग्रेस के संजय कपूर 35,009 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. 2022 में आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई इस सीट से सपा ने आसिम रजा को उतारा था. उनका मुकाबला बीजेपी के घनश्याम लोधी से था. घनश्याम लोधी कभी आजम खान के बेहद करीबी हुआ करते थे. इस वजह से बीजेपी ने इस बार उन्हें टिकट थमाया था. इसके पीछे की रणनीति यह थी कि वह आजम की हर चाल से अच्छी तरह से वाकिफ थे. ऐसे में आजम खान को खुद प्रचार के लिए मैदान पर उतरना पड़ा था. वह कई जनसभाओं में जेल की तकलीफों का जिक्र करते हुए वोटरों को भावुक करते नजर आए थे. अब जब चुनाव परिणाम सामने आए तो नतीजे जानकर हर कोई चौंका है. इस सीट पर घनश्याम लोधी 42192 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं. आजम खान ने अपना गढ़ गंवा दिया.

जिन वोटरों से उम्मीद थी वो निकले नहीं
अगर रामपुर में वोटिंग प्रतिशत पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि 2019 में जहां 63.45% वोटिंग हुई थी तो वहीं 2022 में 41.01% वोटिंग हुई. करीब 22.44% वोट इस बार कम पड़े. रामपुर में सपा की जीत का सबसे बड़ा आधार मुस्लिम वोट बैंक था. इस बार 22 फीसदी से कम वोटिंग होना भी सपा की हार की बड़ी वजह मानी जा रही है. अब सवाल उठता है कि आखिर य़ह वोट बैंक बूथों तक क्यों नहीं पहुंचा? क्या आजम की भावुक अपीलें भी वोटरों को नहीं खींच सकी या फिर उनका प्रभाव अब मतदाताओं को लुभा नहीं पा रहा है. ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब सपा और आजम खान को खोजने होंगे.

वहीं, आजमगढ़ में 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव को कुल 6 लाख 19 हजार 594 वोट मिले थे, जबकि निरहुआ को 3 लाख 60 हजार 255 वोट मिले थे. अगर बात मोदी लहर की शुरुआत यानी 2014 के चुनाव की कि जाए तो उस चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी. मोदी लहर में भी सपा ने यह किला बचाए रखा था. 2022 में अखिलेश यादव ने इस सीट पर धर्मेद्र यादव को उतारा, उनका मुकाबला भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ और बसपा के गुड्डू जमाली से था. सियासी पंडित अनुमान लगा रहे थे कि इस बार भी मुस्लिम और यादव फैक्टर सपा को जीत के करीब ले जाएगा. वहीं, कुछ का कहना था कि यदि गुड्डू जमाली मुस्लिम वोट खींच ले गए तो भाजपा बाजी मार ले जाएगी. अब नतीजे सबके सामने हैं. सपा का किला ध्वस्त हो चुका है और आजमगढ़ में कमल खिल चुका है. आपको बता दें कि यह वहीं आजमगढ़ हैं जहां बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी सभी दस सीटें हार गई थी. कहा जाता था कि सपा का यह किला ढहाना बीजेपी के लिए किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है. बीजेपी ने जीत दर्ज कर यह मिथक ही तोड़ दिया है.

कहीं इन वजहों से तो नहीं हारी सपा
2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ में 57.40% वोटिंग हुई थी, वहीं इस बार यहां 49.48% वोटिंग हुई. यहां भी कम वोटिंग ने सपा को झटका दिया है. जिस एमवाई (मुस्लिम-यादव) फैक्टर को सपा जीत की चाभी मानती थी, वह चाभी इस बार काम नहीं आई और सपा मात खा गई. आजमगढ़ में अखिलेश यादव के प्रचार से दूर रहने को भी हार की बड़ी वजह माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि यदि अखिलेश यादव इस सीट पर जमकर प्रचार करते तो शायद सपा को यह सीट गंवानी नहीं पड़ती. वहीं, भाजपा ने सीएम योगी समेत दिग्गज नेताओं की फौज इस सीट पर उतार दी थी, लग रहा था कि भाजपा सधी हुई रणनीति के साथ इस सीट को जीतने के लिए ताकत झोंक रही है. वहीं, सपा चुपचाप चुनाव लड़ रही थी.

दोनों सीटों पर किस पार्टी को कितने वोट मिले

बीजेपी-42.08%
सपा-
38.93%
बीएसपी-
16.47%
नोटा-
0.61%

(नोटः भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक)

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