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BJP eyes SC voters in Karnataka: कर्नाटक में भाजपा ने खड़गे की खोजी 'काट', दलित वोट में लगाएगी 'सेंध' - madiga bjp karnataka

ऐसा कहा जाता है कि कर्नाटक में जिस किसी भी दल ने ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित सीटों पर जीत सुनिश्चित कर ली, उस पार्टी की सरकार बनाने की संभावना बढ़ जाती है. और इसमें से दलित जातियां बहुत ही निर्णायक भूमिका निभाती हैं. भाजपा की कोशिश है कि वह दलित समुदाय के बीच अच्छी पैठ बनाए. राज्य सरकार ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं, जिसके कारण पार्टी को उम्मीद है कि दलितों में सबसे अधिक आबादी वाला माडिगा समुदाय उसके पीछे खड़ी हो जाएगी. पार्टी ने उनके लिए रिजर्वेशन की आंतरिक व्यवस्था में बड़ा बदलाव कर दिया.

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कर्नाटक के सीएम बोम्मई, गृह मंत्री शाह, वरिष्ठ भाजपा नेता येदियुरप्पा

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Published : Apr 2, 2023, 7:42 PM IST

Updated : Apr 2, 2023, 7:53 PM IST

बेंगलुरु : कर्नाटक में दलितों के भीतर 101 उप जातियां हैं. इनमें से कुछ जातियां बहुत ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. मडिगा जाति उनमें से एक है. इसी जाति से केंद्रीय मंत्री ए नारायणस्वामी और कर्नाटक के मंत्री गोविंद करजोल आते हैं. 30 मार्च को स्थानीय न्यूजपेपर में माडिगा समुदाय की ओर से एक एड जारी किया गया था. इसमें उन्होंने पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का धन्यवाद किया. उन्होंने एससी में उपेक्षित जातियों को रिजर्वेशन में उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए धन्यवाद किया था.

अक्टूबर 2022 में बोम्मई सरकार ने अनुसूचित जाति यानी एससी के लिए नौकरी और शिक्षा, दोनों में आरक्षण की सीमा 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दी थी. इस साल 24 मार्च को सरकार ने एससी रिजर्वेशन में आंतरिक व्यवस्था को भी ठीक किया. इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी. अब 17 फीसदी में से छह प्रतिशत एससी (लेफ्ट) के लिए सुनिश्चित कर दिया गया है. इसलिए अभी राज्य में एससी के लिए आरक्षण व्यवस्था इस प्रकार है - एससी (लेफ्ट) को छह फीसदी, एससी(राइट) 5.5 फीसदी, टचेबल एससी के लिए 4.5 फीसदी, अन्य एससी के लिए एक फीसदी है. राज्य में एससी की आबादी 17 फीसदी है. इनमें से छह फीसदी आबादी माडिगा की है. और इसी समुदाय को भाजपा ने साधने की कोशिश की है.

भाजपा की लंबे समय से कोशिश रही है कि वह एससी समुदाय में अपनी पैठ बनाए, क्योंकि परंपरागत रूप से एससी समुदाय के बीच कांग्रेस अधिक लोकप्रिय रही है. पार्टी ने उनके बीच इस सोच को बढ़ावा दिया कि अभी तक एससी राइट (होलेस) और एससी टचेबल को रिजर्वेशन का सबसे अधिक फायदा मिलता था, और इसकी वजह से माडिगा उपेक्षित रह जाते थे. एससी टचेबल में लंबानी और भोविस आते हैं. पारंपरिक रूप से एससी टचेबल और एससी राइट कांग्रेस के समर्थक माने जाते रहे हैं. एससी राइट से ही मलिल्कार्जुन खड़गे आते हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केएच मुनियप्पा और जी परमेश्वर भी दलित हैं. भाजपा ने इनका मुकाबला करने के लिए करजोल और नारायणस्वामी को आगे किया.

भाजपा 17 फीसदी लिंगायत के साथ-साथ एससी समुदाय को साधने की लगातार कोशिश कर रही है. उसकी सोच है कि हमें 17 फीसदी लिंगायत के साथ-साथ 24 फीसदी आरक्षित समुदाय का भी साथ मिले. 2008 में पार्टी को एससी की 36 सुरक्षित सीटों में से 22 पर जीत मिली थी. तब कांग्रेस को मात्र आठ सीटें मिली थीं. 2013 में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. जेडीएस को नौ और भाजपा को छह सीटें मिली थीं. 2018 में भाजपा को 16, जबकि कांग्रेस को 10 और जेडीएस को छह सीटें मिलीं. करजोल, बीएस येदियुरप्पा के सहयोगी रहे हैं. 2019 में उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया था. कुछ लोगों ने तब करजोल को सीएम पद का भी उम्मीदवार बताया था. इसी तरह से अबैया नारायणस्वामी का भी नाम आता है. वह भाजपा के वरिष्ठ नेता बीएल संतोष के करीबी बताए जाते हैं. वह छह बार चुनाव जीत चुके हैं.

दलित समुदाय के लोग 2012 में पेश की गई जस्टिस एजे सदाशिव कमीशन की रिपोर्ट को टेबल करने की मांग करते आ रहे हैं. वह चाहते हैं कि इसे लागू किया जाए. इस कमीशन में बताया गया है कि एससी राइट की तुलना में एससी लेफ्ट समुदाय पिछड़ा है. इनमें माडिगा शामिल है. इस रिपोर्ट में यह भी लिखा हुआ है कि भोविज और लंबानी को रिजर्वेशन का सबसे अधिक फायदा मिला. जबकि होलेस और माडिगा एससी समुदाय की आबादी में ज्यादा है.

2018 में कांग्रेस नेता ए अंजैया की मांग पर कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने इस रिपोर्ट को टेबल करने की मंशा जताई थी. लेकिन दलितों की प्रभावशाली जातियों की गोलबंदी की वजह से इस रिपोर्ट को टेबल नहीं किया जा सका. बोम्मई सरकार ने सदाशिव कमीशन की रिपोर्ट को रिजेक्ट कर दिया, लेकिन पार्टी ने कैबिनेट उप कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने का फैसला किया. सरकार ने इंटरनल रिजर्वेशन की व्यवस्था को दुरुस्त किया. इससे माडिगा समुदाय की जो मांग थी, वह पूरी हो गई. लेकिन भाजपा को अब इसका भी ध्यान रखना होगा कि कहीं इसका काउंटर न हो, यानी माडिगा के खिलाफ दलितों की प्रभावशाली जातियां कहीं गोलबंद न हो जाएं.

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Last Updated : Apr 2, 2023, 7:53 PM IST

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