नई दिल्ली :कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी हार की वजह को समझने के लिए समीक्षा कर रही है. हार के बाद आमतौर पर जैसा होता है पार्टी के नेताओं में बदलाव की प्रक्रिया, इसकी शुरुआत जल्दी ही बीजेपी में होने की संभावना है. सूत्रों की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने से इसकी शुरुआत हो सकती है. सूत्रों की मानें तो पार्टी कर्नाटक में किसी नए चेहरे को बीजेपी विधायक दल का नेता बना सकती है. बदलाव जल्द होने वाला है.
कर्नाटक में पीएम ने 18 रैली और 6 रोडशों किए. ऐसा लगा मानो बीजेपी ने राज्य के चुनाव का पूरा दारोमदार ही प्रधानमंत्री पर डाल दिया हो, जो शायद राज्य की जनता को नागवार गुजरा. इसके अलावा यदि देखा जाए तो कर्नाटक के बॉर्डर आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से सटे हैं. राज्य की जनता पर इन राज्यों का भी प्रभाव है. यही नहीं सबसे बड़ी वजह ये भी रही कि बीजेपी के अंदर ही कई गुट हावी रहे जिसमें येदियुरप्पा गुट, बोम्मई गुट, बीएल संतोष गुट और केंद्रीय नेताओं के प्रभार वाले गुट. यदि देखा जाए तो राज्य में भाजपा का मात्र केंद्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ना भी काफी भारी पड़ा, क्योंकि विपक्षी कांग्रेस लगातार लोकल मुद्दों और लोकल लीडर्स पर ही ज्यादा से ज्यादा अपने चुनाव प्रचार को केंद्रित कर रही थी.
येदियुरप्पा को साइडलाइन करना पड़ा महंगा :वहीं, बीजेपी राज्य सरकार की उपलब्धियों को न लेकर सिर्फ केंद्र की योजनाओं पर चुनाव लड़ रही थी. सबसे मुख्य बात ये है कि वो बीजेपी जो लिंगायत के दम पर कर्नाटक में अपनी साख बनाने में सफल हुई थी उसी समुदाय के सबसे ज्यादा जनाधार वाले नेता येदियुरप्पा को साइडलाइन कर आगे बढ़ने को कोशिश करती रही.
बीजेपी इस बात को लेकर भी मंथन कर रही है कि इस कदर बुरी हार की आखिर मुख्य वजह क्या रही? क्या हिंदुत्व का एजेंडा दक्षिण के राज्यों में पूरी तरह से फेल हो चुका है. यदि हां तो फिर इस एजेंडे में तेलंगाना के चुनाव में बीजेपी को आमूल चूल परिवर्तन करना होगा. हालांकि पार्टी हार को लेकर मंथन कर रही है, लेकिन सबसे बड़ी वजह जो समझ में आई है वो ये है कि पार्टी क्षेत्रीय क्षत्रपों को नकार नही सकती है.