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BJP Brings NDA Into Focus : भाजपा का 'काउंटर प्लान', विपक्षी एकता को देगी चुनौती

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Published : Jul 17, 2023, 4:56 PM IST

Updated : Jul 17, 2023, 5:15 PM IST

विपक्षी दलों की बेंगलुरु में हो रही बैठक के बीच एनडीए में भी हलचल तेज है. भारतीय जनता पार्टी छोटे-छोटे दलों को साध रही है. पटना में हुई विपक्षी दलों की मीटिंग के बाद भाजपा ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज कर दी हैं. पार्टी लगातार एनडीए का दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रही है. 25 से ज्यादा दलों को एनडीए में शामिल किया जा चुका है. भाजपा की इस सक्रियता पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने निशाना साधा. खड़गे ने कहा कि भाजपा हमारी बैठक में सभी दलों को एकसाथ देखकर घबरा चुकी है, इसलिए वह एनडीए की बात करने लगी है.

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2024 पक्ष और विपक्षी दलों की बैठक (डिजाइन फोटो)

नई दिल्ली : जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, एनडीए और यूपीए दोनों गठबंधनों की प्राथमिकता अपने-अपने गुट में ज्यादा से ज्यादा दलों को जोड़ना है. पटना में विपक्षी दलों की बैठक के बाद भाजपा ने एनडीए को संवारना शुरू कर दिया है. सूत्रों की मानें तो मंगलवार को एनडीए की होने वाली बैठक में 31 राजनीतिक दल शामिल हो सकते हैं.

एनडीए की बैठक में शामिल होंगे ये नेता - जिन नेताओं ने बैठक में शामिल होने की पुष्टि कर दी है, उनमें एकनाथ शिंदे, अजित पवार, रामदास अठावले, अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद, नेफ्यू रियो, कोनार्ड संगमा, जीतन राम मांझी, चिराग पासवान शामिल हैं. बिहार से उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी एनडीए में शामिल होगी. आंध्र प्रदेश से अभिनेता पवन कल्याण के भी शामिल होने की खबरें हैं. कुछ अन्य दलों की ओर से भी पुष्टि हो चुकी है, उनमें एआईएडीएमके, मिजो नेशनल पार्टी, असम गण परिषद, आजसू, तमिल मनिला कांग्रेस, जेजेपी और एसकेएफ जैसी पार्टियां शामिल हैं. अकाली दल से अभी बातचीत चल रही है.

विपक्षी दलों का कैसे काउंटर करेगी भाजपा - भाजपा को यह पता है कि 2024 में बेहतर परफॉर्मेंस करना है, तो उसे हर हाल में उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करनी होगी. लेकिन बदलती हुई राजनीतिक परिस्थिति ने भाजपा के राजनीतिक गणित को उलझा दिया. यही वजह है कि पार्टी इन राज्यों में छोटे-छोटे दलों पर अपनी नजरें गड़ाए है. जहां तक संभव है, पार्टी उनके जरिए दो-चार प्रतिशत मत को भी अपनी ओर मोड़ने का प्रयास कर रही है, ताकि समय आने पर इसका राजनीतिक दोहन किया जा सके. आइए देखिए, इन राज्यों में भाजपा किस कदर आगे बढ़ रही है.

क्या है यूपी की रणनीति - उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने सुहेलदेव समाज पार्टी (सुभासपा) को अपने पाले में कर लिया. ओम प्रकाश राजभर इसके नेता हैं. वे अब एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं. राजभर का दावा है कि वह 10-15 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. यूपी में राजभर समुदाय की आबादी चार फीसदी है. 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ लड़ा था. लेकिन राजनीतिक मतभेद की वजह से वहां से वह एनडीए में लौट आए. राजभर पहले भी एनडीए में रह चुके हैं. वह यूपी कैबिनेट में मंत्री भी थे.

इसी तरह से यूपी में ओबीसी समुदाय से आने वाले दारा सिंह चौहान भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं. चौहान भी सपा में चले गए थे. लेकिन अब भाजपा में आ चुके हैं. अपना दल पहले से भाजपा के साथ है. पिछले लोकसभा चुनाव में अपना दल को 1.2 फीसदी मत मिले थे. उनके दो सांसद हैं. कुर्मी मतदाताओं पर उनका प्रभाव माना जाता है. निषाद पार्टी भी इस समय एनडीए के साथ है. एक समय निषाद पार्टी सपा के साथ हुआ करती थी. कहा जा रहा है कि पश्चिम यूपी में भाजपा की नजर जयंत चौधरी पर है. जयंत चौधरी जाट नेता हैं. वह पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के बेटे हैं. इस समय जयंत चौधरी सपा के सहयोगी हैं, लेकिन वह विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं.

क्या है बिहार-झारखंड की रणनीति - इसी तरह से बिहार में एक-एक सीट पर समीकरण बिठाए जा रहे हैं. इसी रणनीति के तहत भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित नेता राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को एनडीए में एंट्री दिलाई है. चिराग के चाचा पशुपति पारस अभी एनडीए में हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एलजेपी का यह गुट भी चाहता है कि सुलह हो जाए, लेकिन बात हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर अटकी हुई है. पशुपति पारस हाजीपुर से सांसद हैं. वह अपनी सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. दूसरी ओर हकीकत ये है कि चिराग पासवान जमुई से सांसद हैं, लेकिन इस बार वह हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते हैं. उनसे जुड़े सूत्रों ने बताया कि चिराग अपने पिता की सीट से भावनात्मक लगाव रखते हैं. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि यदि ऐसा था, तो 2019 में वह जमुई क्यों चले गए, इस पर उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया. भाजपा के लिए अच्छी बात ये है कि चिराग पासवान की पार्टी को आठ फीसदी तक वोट मिला था. और पार्टी कभी नहीं चाहेगी, कि यह वोट उनसे छिटक जाए.

बिहार की दूसरी पार्टी 'हम' एनडीए का हिस्सा बन चुकी है. इसके नेता जीतन राम मांझी है. मांझी नीतीश सरकार के सहयोगी थे. लेकिन उन्होंने पाला बदल लिया. भाजपा को उम्मीद है कि उनके और चिराग पासवान के आने से बिहार के दलित मतदाताओं पर उनकी पकड़ मजबूत होगी.

इसी कड़ी में उपेंद्र कुशवाहा का भी नाम लिया जा रहा है. कुशवाहा ने एनडीए की बैठक में शामिल होने की पुष्टि कर दी है. वह मोदी के पहले कार्यकाल में मंत्री भी थे. बाद में वह जेडीयू के साथ हो लिए. अभी वह फिर से नीतीश के खिलाफ हैं. यही हाल वीआईपी (मुकेश सहनी) का है. वह एनडीए का हिस्सा थे. लेकिन राजनीतिक मतभेद की वजह से वे दूर चले गए. अब एक बार फिर से चर्चा है कि वह भाजपा के साथ जा सकते हैं. झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन भाजपा के साथ है. उसके एक सांसद हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में इन्हें चार फीसदी से अधिक मत मिले थे.

क्या है महाराष्ट्र की रणनीति- महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है. भाजपा ने पहले शिवसेना के एक धड़े से समझौता किया और अब एनसीपी के एक धड़े को मिला लिया. इन दलों के बीच मंत्रालय बंटवारा को लेकर उठा-पटक जारी है, फिर भी भाजपा को उम्मीद है कि राज्य में उन्हें अपेक्षित सफलता मिलेगी.

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार मुख्य रूप से विपक्षी दलों को आगे बढ़ा रहे हैं. महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अघाड़ी को पिछली बार सात फीसदी मत मिले थे, हालांकि सीट एक भी नहीं मिली थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह लोकसभा की तीन सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं. यूपीए का दावा है कि उनकी वजह से उन्हें तीन सीटों का नुकसान पहुंचा. इस दल के नेता हैं प्रकाश आंबेडकर. इस समय वह यूपीए के साथी हैं.

एनडीए की बैठक में शामिल होने वाले दल - ये दल हैं भाजपा, एआईएडीएमके, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट), एनपीपी (नेशनल पीपुल्स पार्टी), एनडीपीपी (नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी), एसकेएम (सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा), जेजेपी (जननायक जनता पार्टी), आईएमकेएमके ( इंडिया मक्कल कालवी मुनेत्र कड़गम), आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन), आरपीआई (रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया), एमएनएफ (मिजो नेशनल फ्रंट), टीएमसी (तमिल मनीला कांग्रेस), आईपीएफटी (त्रिपुरा), बीपीपी (बोडो पीपुल्स पार्टी), पीएमके (पाटली मक्कल कच्ची), एमजीपी (महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी), अपना दल, एजीपी (असम गण परिषद), राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, निषाद पार्टी, यूपीपीएल (यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल), एआईआरएनसी (ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस पुडुचेरी), शिरोमणि अकाली दल संयुक्त (ढींढसा) और जनसेना (पवन कल्याण), जीतन राम मांझी की हम, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, मुकेश सहनी की वीआइपी पार्टी, ओम प्रकाश राजभर की सुभाषपा और एनसीपी (अजित पवार गुट). भाजपा का आकलन है कि इन दलों के साथ रहने से उनका वोट प्रतिशत बढ़ेगा और जिन सीटों पर काफी कम मतों से फैसले होते हैं, वहां पर ये पार्टियां जीत-हार को तय करेंगी.

2019 में एनडीए का मत प्रतिशत - यहां आपको बता दें कि 2019 में एनडीए को 37 प्रतिशत मत मिले थे. इसका अर्थ यह हुआ कि 63 फीसदी मत विरोध में पड़े. लेकिन राजनीति में जैसा गणित दिखता है, हकीकत में वह रसायन शास्त्र बन जाता है. ये अलग बात है कि विपक्ष दावा कर रहा है कि वह 63 फीसदी मतों को एक करने की कोशिश कर रहा है. विपक्षी दलों का नेता कौन होगा, इस मुद्दे पर कोई भी बोलने को तैयार नहीं है. यह उनकी रणनीति है. क्योंकि उन्हें भी पता है कि नेता पद को लेकर अगर बात छिड़ी, तो एकता के प्रयास को धक्का लगेगा.

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Last Updated : Jul 17, 2023, 5:15 PM IST

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