दिल्ली

delhi

साल में दो बार मनाया जाता है हनुमान जन्मोत्सव, पूजन विधि भी है अलग

By

Published : Apr 15, 2022, 8:30 PM IST

हनुमान जयंती यानी बजरंगबली का जन्मोत्सव भगवान शिव की नगरी काशी में यह बड़े ही धूमधाम के साथ मनायी जाती है. इसबार 16 अप्रैल को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाएगा, लेकिन साल में दो बार हनुमान जयंती पड़ने से कई लोग भ्रमित होते हैं. आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण..

Lord Hanuman 2022
हनुमान जयंती 2022

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में त्योहारों की हमेशा ही धूम रहती है. इसी तरह बजरंगबली का जन्मोत्सव यानी हनुमान जयंती का पर्व भी यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार हनुमान जन्मोत्सव का पर्व शनिवार 16 अप्रैल को मनाया जाएगा. हालांकि बहुत से लोग इस बात को लेकर संशय में रहते हैं कि हनुमान जन्मोत्सव साल में दो बार क्यों मनाया जाता है क्योंकि यह एक बार चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है और दूसरी बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि जो दीपावली के वक्त पड़ती है. आइए इसे विस्तार से जानते हैं.

एक साल में दो बार हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाना क्या शास्त्र सम्मत है? इन दोनों में क्या अंतर है और क्यों साल में दो बार प्रभु हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने वाराणसी में ज्योतिषाचार्य और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के सदस्य पंडित प्रसाद दीक्षित से बातचीत की. उन्होंने इन दोनों जयंती के बारे में विस्तार से बताते हुए दोनों में अंतर को समझाया और पूजा की विधि में भी अलग-अलग तरीके अपनाए जाने की बात बताई.

हनुमान जयंती विशेष

ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि हनुमान जयंती का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. इसमें पहली जयंती चैत्र शुक्ल पूर्णिमा और दूसरी जयंती कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि को मनाई जाती है. वास्तव में चैत्र मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को जो हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है, उसमें खास बात यह है कि भगवान श्री राम के जन्म के पश्चात यानी चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जब प्रभु श्री राम का जन्म हुआ, तब बह्मा जी ने सभी देवताओं को धरती पर वानर और भालू के रूप में जन्म लेकर प्रभु श्रीराम के काम को पूर्ण करने के लिए आग्रह किया था. जिसके बाद सभी देवता अलग-अलग रूप में धरती पर अवतरित हुए.

इस दौरान वानर राज केसरी और माता अंजनी के घर भगवान हनुमान का जन्म हुआ, जिसकी वजह से चैत्र मास में हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है. वहीं कार्तिक महीने में मनाए जाने वाली हनुमान जयंती को लेकर शास्त्रों में ये बात स्पष्ट की गई है कि उस दिन, बजरंगबली भगवान शिव के एकादश रूप में धरती पर अवतरित हुए थे. तभी से हनुमान जयंती का पर्व उस दिन भी मनाया जाता है.

पंडित प्रसाद दीक्षित का कहना है कि हनुमान जयंती के दो अलग-अलग महीने अलग-अलग दिन हर किसी को थोड़ा भ्रमित जरूर करते हैं, लेकिन ये जानना बेहद जरूरी है कि दोनों दिन हनुमान जयंती के पूजन और हनुमान जी के जन्म का अलग महत्व माना जाता है. एक रूप वायु देव के अंश हनुमान के रूप में तो दूसरा शिव के एकादश अवतार के रूप में पूजा जाता है. उन्होंने बताया कि इन दोनों रूपों की पूजन का विधान भी अलग है.

चैत्र मास में पड़ने वाली हनुमान जयंती के दिन प्रभु बजरंगबली को गुड़-चना और लड्डू का भोग लगाना अच्छा माना जाता है. जबकि कार्तिक महीने में पढ़ने वाली हनुमान जयंती के दिन प्रभु बजरंगबली को तरह-तरह के फलों का भोग लगाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि एक ये भी बात कही जाती है कि जब बजरंगबली ने भगवान सूर्य को सेब समझकर उसे अपने मुंह में रख लिया था जिसके बाद भगवान इंद्र के वज्र के प्रहार से बजरंगबली मूर्छित हो गए थे.

यह भी पढ़ें-43 दिन चलेगी अमरनाथ यात्रा, 20 हजार श्रद्धालु रोज कर सकेंगे दर्शन

इसके बाद इंद्रदेव के प्रति पवन देव नाराज हुए और उन्होंने पूरी सृष्टि की वायु को ही रोक दिया था. तब सभी देवताओं के मनाने के बाद पवन देव ने वायु प्रवाह को फिर से पुनः ठीक कर दिया था और सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को सारी शक्तियां प्रदान करके ने उन्हें एक नए अवतार के रूप में धरती पर चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया था. इसी की वजह से हनुमान जयंती का ये पर्व कार्तिक के महीने में मनाया जाता है. यही कारण है कि इस हनुमान जयंती पर हनुमान जी सेब, अमरूद, केला और अलग-अलग तरह के फल चढ़ाए जाने से बेहद प्रसन्न होते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details