कोटा :राजस्थान के कोटा संभाग में तीन प्लांटों के जरिए बायोमास से बिजली उत्पादन हो रहा है. यह उत्पादन करीब 24 मेगावाट है. अब घास और एग्रीकल्चर वेस्ट (कृषि अपशिष्ट) के जरिए बायो सीएनजी, पीएनजी और जैविक खाद बनाने का काम भी जल्द शुरू होगा. इसके लिए संभाग में नौ प्लांट प्रस्तावित हैं.
अधिकतर प्लांट्स के लिए जमीन खरीद ली गई है. इनमें नेपियर घास के जरिए फर्टिलाइजर, बायो सीएनजी व पीएनजी बनाई जाएगी. इलाके के सैकड़ों किसानों ने नेपियर घास उगाना शुरू कर दिया है. यह घास पशु आहार के तौर पर भी काम आती है. इस योजना के पूरा होने में तकरीबन चार साल लगेंगे. कोटा संभाग में प्लांट पर कंपनियां काम कर रही हैं. इनमें से कुछ के लिए जमीन तय कर ली गई है और बाकी जगह जमीन का कन्वर्जन सहित अन्य कार्य किए जा रहे हैं.
प्लांट लगने से पहले ही इलाके में हजारों टन घास उत्पादित हो रही है. कोटा संभाग के लाड़पुरा, दीगोद, सांगोद, किशनगंज, अटरू, बारां, अंता, छबड़ा, बकानी व खानपुर में ये प्लांट स्थापित होंगे.
फसल का उत्पादन लेने के बाद किसान पराली को जला देते हैं. कई फसलों का कचरा कोई उपयोग में नहीं आता. ऐसे एग्रीकल्चर वेस्ट को बायोमास के प्लांटों में दिया जा सकता है. सरसों की तूड़ी को बायोमास के प्लांट खरीद लेते हैं. इसी तरह से हर फसल का बचा हुआ एग्रीकल्चर वेस्ट भी बायो सीएनजी के उत्पादन कर रहे प्लांट खरीद लेंगे. इसके साथ पशुओं का अपशिष्ठ गोबर भी खरीदा जाएगा. इसके साथ ही फूड वेस्ट को भी ये लोग खरीदेंगे और इन सबके साथ नेपियर घास को कंप्रेस कर बायो सीएनजी बनाई जाएगी.
नेपियर घास की साल में चार बार हो सकती है फसल
इलाके के किसानों को नेपियर घास का बीज कंपनी ही उपलब्ध करा रही है. बीज के बारे में कंपनी के प्रतिनिधियों का दावा है कि किसान को 5 से 7 साल तक इस बीज के जरिए नेपियर घास का प्रोडक्शन मिल सकता है. साल में चार बार किसान इसकी फसल ले सकते हैं. हर तीन महीने में यह फसल कटेगी. किसान ही घास को प्लांट तक पहुंचा देगा, जिसके बाद इससे बायो सीएनजी का उत्पादन लिया जा सकेगा. अधिकांश प्लांट शहर से दूर ग्रामीण इलाकों में ही स्थापित किए जा रहे हैं.
10 टन बायोसीएनजी, 15 टन ऑर्गेनिक खाद