हैदराबाद : लोकसभा के बाद राज्यसभा ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक 2020 पारित कर दिया है. इसमें गर्भपात की मंजूर सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस विधेयक के जरिए 50 साल पुराने कानून की कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि गर्भपात के संबंध में विभिन्न देशों के कानूनों का अध्ययन कर इसे तैयार किया गया है. हालांकि, विपक्ष के कुछ सदस्यों ने इसे प्रवर समिति के पास भेजने का सुझाव दिया था, जिसे नामंजूर कर दिया गया.
गर्भपात पर पुराने और नए कानून में अंतर दुनिया के 67 फीसदी देशों में गर्भपात कराने के लिए कम से कम किसी एक स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता से इजाजत आवश्यक है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गर्भपात के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है.
अलग-अलग देशों में अलग-अलग स्थितियां और समय सीमाएं तय की गईं हैं. गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं.
ब्रिटेन- महिला के जीवन की रक्षा, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को संकट पहुंचने और यदि बच्चे के गंभीर विकलांग होने के खतरे रहते हैं, तो गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर चोट का निर्धारण करते समय उसके वास्तविक या यथोचित वातावरण पर विचार किया जा सकता है.
दक्षिण अफ्रीका : पहले 12 हफ्ते में महिला की प्रार्थना पर गर्भपात करवाया जा सकता है. 12 वें से 20 वें सप्ताह के बीच अनुमति मिल सकती है, बशर्ते - महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति, भ्रूण में असामान्यता, बलात्कार और उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभावित होता हो. 20वें सप्ताह के बाद यदि महिला या भ्रूण, किसी की भी जान को खतरा रहता है, तभी इजाजत मिलती है.
अमेरिका : यहां हर राज्य में अलग-अलग कानून हैं. 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को वैध बताया था. अलबामा में गर्भपात की अनुमति नहीं है, जब तक कि मां का स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित न हो रहा हो. जॉर्जिया में छह हफ्ते तक गर्भपात की इजाजत है. उसके बाद विशेष परिस्थिति में ही ऐसा संभव हो सकता है. न्यूयॉर्क में 24 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत मिल सकती है.