नई दिल्ली : लोकसभा में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक पेश किया गया. स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने विधेयक पेश किया. मंडाविया ने कहा विधेयक स्थायी समिति को भेजा गया था और समिति के सुझावों पर विचार किया गया है. यह बिल फर्टिलिटी क्लीनिक को रेगुलेट करने का प्रयास करता है. विधेयक संशोधनों के साथ पारित हो गया.
सरकार का दावा है कि विधेयक के कानून बनने पर बदलते सामाजिक संदर्भों और तकनीक की दिशा में हुई प्रगति से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में मदद मिलेगी. सरकार का कहना है कि विधेयक के प्रावधानों के माध्यम से महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के संरक्षण का माहौल बनाने का प्रयास है.
इस पर कार्ति चिदंबरम (कांग्रेस) ने कहा कि यह आवश्यक है कि प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो और इसे विनियमित किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि कानून एलजीबीटी दंपति और अविवाहित पुरुषों को इस तकनीक का इस्तेमाल करने से वंचित करता है.
विधेयक पर चर्चा के दौरान कार्ति चिदंबरम ने विधेयक में खामी की ओर इशारा किया. यदि दाता गुमनाम है तो उनका आधार नंबर क्यों लेना? यदि बच्चा वयस्क होने के बाद कॉनटेक्ट ट्रेस करना चाहता है तो क्या ऐसा होगा? मूल्य निर्धारण विनियमन के बारे में क्या? जब सरोगेसी विधेयक पारित होना बाकी है, तो यह उस विधेयक पर आधारित क्यों है?
बिल के समर्थन में हीना गावित (भाजपा) ने कहा कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण विधेयक आवश्यक था. उन्होंने बताया कि भारत सरोगेसी का एक प्रमुख केंद्र है. विदेशी नागरिक व्यावसायिक सरोगेसी के लिए भारत आते हैं क्योंकि इसे विनियमित नहीं किया गया था.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सांसद सुप्रिया सुले ने पूछा कि ये बिल सरोगेसी विधेयक एक दूसरे के पूरक कैसे होंगे. उन्होंने पूछा कि क्या आप पूर्व-निर्धारण आनुवंशिक तकनीक की अनुमति दी जाएगी? उन्होंने कहा कि इस बिल में रोग नियंत्रण के बारे में कुछ कहा नहीं गया है. वहीं, सदस्य एकल पुरुषों और एलजीबीटी जोड़ों को इस तकनीक का इस्तेमाल करने देने के पक्ष में रहे.
एन के प्रेमचंद्रन ने कहा, सरोगेसी विधेयक को पारित किए बिना इस बिल पर चर्चा होनी ही नहीं चाहिए. इस पर मनसुख मंडाविया ने कहा कि सरोगेसी विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है और राज्यसभा में लंबित है. एन के प्रेमचंद्रन ने कहा, इस कानून में एक खामी है जो एआरटी सेवा को चुनने वाले दंपत्ति के निजता के अधिकार को सुनिश्चित नहीं करती है.
हसनैन मसूदी ने कहा कि इस विधेयक में प्रजनन तकनीक को वहनीय बनाने पर भी विचार होना चाहिए क्योंकि प्रौद्योगिकी की लागत एक विलासिता है, और केवल उन लोगों तक ही सीमित होगी जो इसे वहन कर सकते हैं.
अधीर रंजन चौधरी ने कहा, यह बिल अनुच्छेद 14 (article 14) का उल्लंघन कर रहा है. उन्होंने कहा, सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक, 2020 के कुछ प्रावधान भेदभावपूर्ण हैं क्योंकि कई लोगों को सरोगेसी से बाहर रखा गया है. वहीं, व्यक्तिगत डेटा सुरक्षित होना चाहिए. विधेयक को सुनिश्चित करना चाहिए कि दाताओं को पर्याप्त मुआवजा मिले. 2005 में आई ICMR की गाइडलाइन का भी उल्लंघन करता है. बच्चे को पता होना चाहिए कि माता-पिता कौन हैं. बच्चे को इसके बारे में जानकारी लेने का अधिकार होना चाहिए. बिल बच्चे के अधिकार पर मौन है.
विधेयक के प्रावधान
सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक (Assisted Reproductive Technology Regulation Bill) के कानून का रूप लेने के बाद केन्द्र सरकार इस अधिनियम पर अमल की तारीख अधिसूचित करेगी. इसके बाद राष्ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाएगा.
विधेयक में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रीय बोर्ड भौतिक अवसंरचना, प्रयोगशाला एवं नैदानिक उपकरणों तथा क्लिनिकों एवं बैंकों में रखे जाने वाले विशेषज्ञों के लिए न्यूनतम मानक तय करने के लिए आचार संहिता निर्धारित करेगा, जिसका पालन क्लिनिक में काम करने वाले लोगों को करना होगा.
केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के तीन महीनों के भीतर राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेश इसके लिए राज्य बोर्डों और राज्य प्राधिकरणों का गठन करेंगे. राज्य बोर्ड पर संबंधित राज्य में क्लिनिकों एवं बैंकों के लिए राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्धारित नीतियों एवं योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी होगी.
विधेयक में केंद्रीय डेटाबेस के रख-रखाव और राष्ट्रीय बोर्ड के कामकाज में उसकी सहायता के लिए राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण का भी प्रावधान किया गया है.
विधेयक में उन लोगों के लिए कठोर दंड का भी प्रस्ताव किया गया है, जो लिंग जांच, मानव भ्रूण अथवा जननकोष की बिक्री का काम करते हैं और इस तरह के गैर-कानूनी कार्यों के लिए एजेंसियां/गोरखधंधा/संगठन चलाते हैं.