बिलकिस बानो केस: दोषियों को आत्मसमर्पण का आदेश, SC ने कहा दया और सहानुभूति की कोई जगह नहीं - बिलकिस मामला
सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले में सख्त फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि जहां कानून का शासन लागू करने की आवश्यकता होती है वहां करुणा और सहानुभूति की कोई जगह नहीं होती है. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट...
बिलकिस मामला: SC का दोषियों को आत्मसमर्पण करने का निर्देश, कहा दया और सहानुभूति की कोई जगह नहीं
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिलकिस बानो मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने मामले के सभी 11 दोषियों को दो सप्ताह के भीतर गुजरात में जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया. अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए कहा, 'जहां कानून का शासन लागू करने की आवश्यकता होती है, वहां दया और सहानुभूति की कोई भूमिका नहीं होती है.'
बिलकिस बानो मामले में दोषियों को दी गई छूट को रद्द करने के बाद जस्टिस बी वी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की अदालत ने कहा कि क्या सभी आरोपियों को वापस जेल भेज दिया जाना चाहिए? क्या इस मामले के आरोपियों को एक अक्षम प्राधिकारी से छूट दिए जाने और धोखाधड़ी से शीर्ष अदालत से आदेश प्राप्त करने के बावजूद अपनी स्वतंत्रता का लाभ मिलना चाहिए?
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि यह अदालत के लिए जवाब देने के लिए एक नाजुक सवाल है, और याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील पर गौर किया कि आरोपी को केवल कानून के अनुसार छूट दी जा सकती है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अदालत के समक्ष उठे कई सवालों का विवरण देते हुए कहा, 'व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा कब की जाती है? क्या कानून के उल्लंघन में किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जा सकती है? क्या न्याय का तराजू कानून के शासन के विरुद्ध झुकना चाहिए? कानून के शासन को कायम रखते हुए, क्या अदालत अभियुक्तों को उनकी स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित कर रही है?
पीठ ने कहा,'हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि केवल तभी जब कानून का शासन कायम होगा, हमारे संविधान में स्वतंत्रता और अन्य सभी मौलिक अधिकार प्रबल होंगे. इसमें समानता का अधिकार और कानून की समान सुरक्षा भी शामिल है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 14 (संविधान के) में निहित है. किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कानून के उल्लंघन को नजरअंदाज किया जाना चाहिए. हम इस अदालत द्वारा अपने विभिन्न निर्णयों के माध्यम से कानून के शासन पर कही गई बात को दोहराना चाहते हैं. कानून के शासन का मतलब है कि जब भी राज्य अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहता है, तो अदालत कानून का शासन कायम सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी.'
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि कानून के शासन का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता को नकारने के समान है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून के शासन का मतलब है कि कोई भी, उच्च या निम्न, कानून से ऊपर नहीं है. अगर कानून के समक्ष समानता नहीं है तो कानून का कोई शासन नहीं हो सकता है.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा,'हमारे विचार में इस अदालत को कानून के शासन को कायम रखने में एक मार्गदर्शक होना चाहिए. लोकतंत्र में कानून का शासन सार है. यह विशेष रूप से कानून की अदालतों द्वारा संरक्षित और लागू किया जाना चाहिए. जहां कानून का शासन लागू करने की आवश्यकता होती है वहां करुणा और सहानुभूति की कोई भूमिका नहीं होती.
अदालतों को इसे (कानून का शासन) बिना किसी डर या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के लागू करना होता है. इस प्रकार कानून के शासन के ढांचे के भीतर हर कोई इसे स्वीकार करता है.' गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, सीपीआई (एम) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बिलकिस बानो के घर के पास पटाखे दगाए गए.