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Bilkis Bano Case : महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा-बिलकिस बानो मामला मानवता के खिलाफ अपराध

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या को मानवता के खिलाफ अपराध बताया (Bilkis Bano Case).

Mahua Moitra tells SC
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा

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Published : Aug 10, 2023, 10:52 PM IST

नई दिल्ली : तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या 'मानवता के खिलाफ अपराध' थी (Mahua Moitra tells SC).

मोइत्रा ने गुजरात सरकार पर इस 'भयानक' मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया.

बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य की ओर दाखिल जनहित याचिकाओं में दोषियों को सजा में छूट देने के फैसले को चुनौती दी गई है. मोइत्रा ने भी इस छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है.

दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देते हुए, मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रही है और उसने कानून के विपरीत दोषियों की समय पूर्व रिहाई सुनिश्चित करने का निर्णय लिया.

जयसिंह ने कहा, 'यह दलील दी जाती है कि बिलकिस बानो के खिलाफ हुए अपराध को अपराध के समय गुजरात में मौजूद स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता और ये अपराध 2002 के दंगों की पृष्ठभूमि में थे, जब बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई थी...'

'बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, वह क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक' :उन्होंने कहा, 'बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, वह क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक था. मेरी दलील है कि उसके साथ जो हुआ, वह मानवता के खिलाफ अपराध था, क्योंकि यह व्यापक सांप्रदायिक हिंसा के बीच हुआ था, जो एक समुदाय को निशाना बनाकर की गई थी.'

मामले में हस्तक्षेप करने के मोइत्रा के अधिकार (अदालत में मुकदमा लाने के अधिकार) को जायज ठहराते हुए जयसिंह ने कहा कि टीएमसी सांसद ने जनहित में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है और वह 'बिजीबॉडी' (दूसरों के निजी जीवन में अत्‍यधिक रुचि रखने वाला व्यक्ति) नहीं हैं, जैसा कि दोषियों ने दलील दी है.

उन्होंने कहा, 'याचिकाकर्ता संसद सदस्य होने के नाते एक सार्वजनिक व्यक्तित्व है, जिसने संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है और इस प्रकार एक जिम्मेदार व्यक्ति और भारत के नागरिक के रूप में उसके पास याचिका दायर करने का अधिकार है.'

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, 'वह (मोइत्रा) धार्मिक और भाषायी सीमाओं से परे भारत के लोगों के बीच सद्भाव और सामान्य भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 51 ए (ई) के तहत अपने मौलिक कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं. याचिकाकर्ता कोई 'बिजीबॉडी' या तमाशबीन नहीं है.'

भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि बिलकिस बानो ने स्वीकार किया है कि अदालत का रुख करने वाले अन्य लोगों ने उन्हें आत्मविश्वास दिया है.

उन्होंने कहा, 'आवश्यकता इस बात की है कि छूट देने की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता होनी चाहिए. यह मेरे आग्रहों में से एक है... सजा माफी की खबर मीडिया के माध्यम से पहुंची, जिससे वह (बिलकिस) स्तब्ध रह गई. आरटीआई (सूचना का अधिकार) अधिनियम के तहत राज्य को सार्वजनिक महत्व के मामलों को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश है. इस पर भी विचार करना होगा.'

ग्रोवर ने यह भी कहा कि दोषियों द्वारा जुर्माना न चुकाना उन्हें सजा में मिली छूट को अवैध बनाता है, क्योंकि यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है.

उन्होंने कहा, 'यह एक स्वीकृत स्थिति है कि किसी ने भी जुर्माना नहीं भरा है. सभी आरोपों में कुल जुर्माना 34,000 रुपये बनता है. जुर्माना न चुकाने पर कुल 34 साल की सजा काटनी होगी.'

अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी :मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी. मामले के दोषियों ने बुधवार को शीर्ष अदालत से कहा था कि उनकी सजा को चुनौती देने वाली कई लोगों की जनहित याचिकाओं पर विचार करने से 'समस्याओं का पिटारा' खुल जाएगा और एक खतरनाक मिसाल कायम होगी.

गुजरात सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा था कि सजा में छूट अनिवार्य रूप से सजा में कमी है और किसी तीसरे पक्ष को इसमें कुछ कहने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह मामला अदालत और आरोपी के बीच का है.

वहीं, सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को स्पष्ट किया था कि समाज के विरोध और आक्रोश का उसके फैसलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह केवल कानून के अनुसार चलेगी.

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान जब बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया, तब वह 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. मामले के 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को जेल से रिहा कर दिया गया था.

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(पीटीआई-भाषा)

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