नई दिल्ली : गुजरात में 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार एवं उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषी अपनी सजा में छूट देने के अनुरोध के साथ महाराष्ट्र सरकार से संपर्क कर सकते हैं.
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि दोषियों को दो हफ्ते के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा और उम्र कैद की सजा काटनी होगी. न्यायालय ने कहा कि दोषियों को सजा में छूट देने का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया.
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 251 पन्नों के फैसले में कहा, 'गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र राज्य की शक्तियां हड़प ली थी, जो सजा में छूट मांगने की अर्जियों पर ही केवल विचार कर सकती थी.' शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात सरकार के पास, इन दोषियों को सुनाई गई सजा में छूट देने की अर्जियों पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था और जिस राज्य में अपराधकर्ताओं पर मुकदमा चला था और सजा सुनाई गई थी, केवल वही इस तरह की अर्जियों पर विचार करने के लिए सक्षम है.
साक्ष्य से छेड़छाड़ किए जाने और गवाहों को खतरा होने की बानो द्वारा आशंका जताए जाने के बाद, गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई अहमदाबाद से मुंबई स्थानांतरित कर दी थी.
शीर्ष न्यायालय ने मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गई छूट रद्द कर दी. न्यायालय ने जिन याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया, उनमें एक याचिका बिलकीस की भी है, जिसमें उन्होंने दोषियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती दी थी.
दोषियों के पक्ष में अनुच्छेद 142 को लागू नहीं किया जा सकता:उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को बिलकीस बानो मामले में दोषियों की स्वतंत्रता की सुरक्षा और उन्हें जेल से बाहर रहने देने की याचिका को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि जहां कानून का शासन लागू करने की आवश्यकता होती है, वहां करुणा और सहानुभूति की कोई भूमिका नहीं होती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के प्रभाव में लोगों का विश्वास कानून के शासन को बनाए रखने के लिए रक्षक और सहायक है.