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Bilaspur News: मौत के बाद भी लागू रहा सामाजिक बहिष्कार, 48 घंटे बाद बुजुर्ग महिला का ऐसे हुआ अंतिम संस्कार - Controversy over funeral in Bilaspur

बिलासपुर के कोटा क्षेत्र में सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रही बुजुर्ग को मौत के बाद भी चार कांधों के लिए तरसना पड़ा. हालांकि पुलिस और कुछ समाजसेवी के साथ पत्रकारों ने बुजुर्ग को कांधा देकर सामाजिकता की मिशाल पेश की, जिनके सहयोग से 48 घंटे बाद बुजुर्ग का अंतिम संस्कार हो पाया. Kota area of Bilaspur

Gram Panchayat Mohli
बिलासपुर में अंतिम संस्कार पर विवाद

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Published : Feb 12, 2023, 4:26 PM IST

बिलासपुर में अंतिम संस्कार पर विवाद

बिलासपुर: कोटा विकासखंड के ग्राम पंचायत मोहली में रहने वाली अमृतबाई पति की मौत के बाद एकांकी जीवन जी रही थीं. 95 साल की जिंदगी में से करीब 50 साल तो उन्होंने अकेले ही काट दिए. यू तो जिंदगी उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं थी लेकिन जब इस अभिशाप से मुक्ति मिली तो उन्हे शमशान तक पहुंचाने के लिए चार कंधे तक नहीं मिले. दरअसल पूरा मामला कोटा के बेलगहना चौकी क्षेत्र के मोहली गांव का है जहां रहने वाली 95 वर्षीय अमृता बाई को 50 वर्ष पहले पति के जीवित रहते हुए दूसरे जाति के व्यक्ति के साथ रहने के कारण समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था.

बेटे ने मांग सहयोग लेकिन आगे नहीं आया कोई:समाज के लोगों के साथ 50 साल से उनका उठना बैठना नहीं था. बीते 9 फरवरी की रात बुजुर्ग अमृता बाई की मौत हो गई तो 55 वर्षीय बेटे ने अंतिम संस्कार के लिए गांव वालों से सहयोग मांगा. सामाजिक बहिष्कार के कारण उसे सहयोग नहीं मिला. न ही गांव वालों ने कोई मदद की और न ही कोई जनप्रतिनिधि सामने आया.

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अगले दिन मदद को पहुंचे जागरूक नागरिक:मौत के अगले दिन मृतका का बेटा बेलगहना पुलिस चौकी पहुंचा, जहां उसने अपनी बुजुर्ग मां के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस से सहयोग मांगा. फिर पुलिस स्टाफ ने कुछ समाजसेवी और पत्रकारों के साथ मिलकर बुजुर्ग महिला की अर्थी को कंधा दिया और पूरे विधि विधान के साथ महिला का अंतिम संस्कार कराया. इसके साथ ही पुलिस ने गांव वालों को रूढ़िवादी परंपरा से दूर रहने और परिवार को सहयोग करने की भी हिदायत दी.

पहले भी सामने आ चुका है सामाजिक बहिष्कार का मामला:जिले के कोटा थाना क्षेत्र मे अक्टूबर 2018 में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां कोटा थाना क्षेत्र के शिवतराई गांव में एक परिवार को सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलना पड़ा. वह भी इसलिए क्योंकि वहां के अनुसूचित जाति के एक लड़के ने आदिवासी परिवार की लड़की से शादी करने के लिए गांव में पोस्टर लगवाए थे. जिसके खिलाफ लड़की ने पुलिस में शिकायत की थी. घटना के बाद लड़की और उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया. सदमे में लड़की की चाची की मौत हुई तो गांव में समाजिक बहिष्कार के चलते कोई भी उनके घर अंतिम संस्कार में नहीं गया. करीब 2 दिन के बाद सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और पुलिस ने ही महिला का अंतिम संस्कार कराया था.

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