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बिहार में औद्योगिक निवेश: दावे सब खोखले, वादे बस किताबी

उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन बिहार में रोजगार की संभावना बढ़े इसके लिए दौड़ लगा रहे हैं. यह कितना कारगर होगा यह समय ही बताएगा. 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में औद्योगिक निवेश का मुद्दा उठेगा यह तय है. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार में औद्योगिक निवेश
बिहार में औद्योगिक निवेश

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Published : Oct 15, 2021, 1:41 AM IST

पटना: बिहार में औद्योगिक निवेश (Industrial Investment) सरकारों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं रहा है. निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई सम्मेलनों का आयोजन किया गया, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर गैप और बैंकों के नकारात्मक रवैया ने उद्योगपतियों को आकर्षित नहीं किया. सरकार भी उद्योगपतियों के लिए माहौल बनाने में नाकामयाब रही.

राज्य में सही रूप में सिंगल विंडो सिस्टम भी लागू नहीं किया जा सका. बिहार में निवेश के माहौल की बात हो रही है. बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) निवेश के लिए खूब दौड़ लगा रहे हैं. बिहार में औद्योगिक निवेश की बात तो खूब हो रही है, लेकिन यह होगा कब कुछ भी तय नहीं है. बिहार में 30 साल तक जयप्रकाश नारायण के अनुयायी लालू यादव और नीतीश कुमार का शासन रहा. राज्य में औद्योगिक निवेश को लेकर सरकार गंभीर नहीं रही.

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नतीजतन लालू यादव के 15 साल के शासनकाल में जहां औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक रहा. वहीं, नीतीश कुमार के 15 साल के शासन काल में हालात सुधरे, लेकिन उद्योगपतियों के लिए उचित माहौल नहीं बनाया जा सका. दावे खूब हुए, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं उतरा. कोरोना संकटकाल में जब 40 लाख से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार लौटे, तब सरकार को निवेश की याद आई.

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तत्कालीन उद्योग मंत्री श्याम रजक ने 24 कंपनियों को निवेश के लिए खत लिखा. बिहार में उद्योग लगाने का न्योता भी दिया. ये भी वादा किया गया कि 30 दिनों के अंदर तमाम तरह के क्लीयरेंस दे दी जाएगी. बिहार सरकार के पहल का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला और प्रवासी मजदूर फिर से काम के लिए दूसरे राज्यों में लौटना शुरू कर दिए हैं. वहीं, लालू यादव के 15 साल के शासन काल में निवेश की स्थिति बदतर रही और उत्पादन के क्षेत्र में वार्षिक विकास दर भी नकारात्मक रहा. हालांकि बाद के वर्षों में हालात सुधरे और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में प्रगति हुई. इसके बावजूद राज्य में बड़े निवेश नहीं हुए.

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राज्य के जीएसडीपी (Gross State Domestic Product) पर अगर नजर डालें तो 1990-1991 में उत्पादन सेक्टर का योगदान 10004 करोड़ रुपए का था, जो 2000-01 में घटकर 4215 करोड़ का हो गया. 2005-6 में घटकर 4106 करोड़ का हो गया. हालांकि 2014- 15 में आंकड़ा बढ़कर 7575 करोड़ का हो गया और 2018-19 में आंकड़ा बढ़कर 30632 करोड़ तक पहुंच गया. वर्तमान में यह आंकड़ा 33963 करोड़ का है.

सत्ता और विपक्ष का आरोप-प्रत्यारोप चुनावी मौसम में आता है. राजद ने सरकार नौकरी नहीं देने के मामले में एनडीए को कटघरे में खड़ा किया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं नीतीश कुमार के शासनकाल में कितने बड़े उद्योग लगे? ये सरकार को बताना चाहिए. बिहार सरकार निवेश को बढ़ावा देने में पूरी तरह विफल साबित हुई और उद्योगपतियों को निवेश के लिए सुरक्षा नहीं दिया जा सका.

वहीं, बिहार में निवेश को लेकर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नीतीश सरकार के शासनकाल में स्थिति बेहतर हुई. सरकारी निवेश को सरकार ने बढ़ावा दिया और कई निगम आज की तारीख में फायदे में हैं. उद्योग के क्षेत्र में निजी निवेश हुए, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से भी बिहार जैसे राज्य पिछड़ गए. बिहार में बैंकों के रवैया के चलते निवेश को बढ़ावा नहीं दिया जा सका. अब जबकि पूरे देश में जीएसटी लागू हो चुका है. ऐसी स्थिति में अब निवेश की संभावना भी नहीं है. बिहार जैसा राज्य अब उपभोक्ता राज्य बन कर रह जाएगा.

बिहार में 2 सीटों पर उपचुनाव होना है. ऐसे में बिहार में औद्योगिक निवेश, रोजगार और पलायन की बात फिर से जोर पकड़ने लगी है. सितंबर महीने में सरकार के साथ हुई बैंकर्स की बैठक में बिहार के वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने बैंकों के कामकाज और बिहार में रोजगार देने वाले सबसे बडे़ सेक्टर खेती में किसानों के केसीसी कार्ड नहीं देने के मामले को लेकर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि बैंकों का रवैया ठीक नहीं है. उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन बिहार में रोजगार की संभावना बढ़े इसके लिए दौड़ भी लगा रहे हैं, लेकिन यह कितना कारगर होगा यह समय ही बताएगा. लेकिन 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में औद्योगिक निवेश का मुद्दा राजनीति में निवेश करेगा यह तय है.

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