पटना: छठ महापर्व बिहार ही नहीं बल्कि देश दुनिया में मनाया जा रहा (Chhath Puja abord) है. इसको लेकर बिहार में तैयारी अंतिम दौर में है. घाट सज चुके हैं. जो बिहार या बिहार से बाहर रहते हैं उन लोगों का बिहार आना शुरू है. हर किसी के मन में ये इच्छा है कि छठ की पूजा अपने घर जाकर ही मनाएं. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो किसी कारणवश अपने घर, अपने गांव नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे लोगों को घर की छठ खूब याद आती. विदेश में रहने वालों को बिहार की छठ खूब रुला रही है. क्योंकि मातृभूमि तक न पहुंच पाने के मलाल को अपने आप तक ही समेटे रखे हैं.
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विदेश में छठ की याद: मूल रूप से बिहार के गोपालगंज जिले के रहने वाले रंजन कुमार श्रीवास्तव पिछले 18 सालों से बहरीन की राजधानी मनामा में सपरिवार रहते हैं. रंजन बताते हैं कि छठ से जुड़ी यादें कभी खत्म नहीं हो सकती है. जब भी छठ पर्व आता है तो मन में मायूसी छा जाती है. वह यह भी कहते हैं कि छठ पूजा के दौरान अपनी मातृभूमि पर जिस तरह का हर्ष और उल्लास रहता है वैसा वह बहरीन में नहीं कर सकते हैं. लेकिन वह यह भी बताते हैं कि जब वह छठ पूजा में घर नहीं जा पाते हैं तो मनामा में रहने वाले कुछ बिहार के रहने वाले लोग समुद्र के किनारे जाकर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं.
''जैसी छठ पूजा हमलोग बिहार में करते हैं वैसी पूजा यहां बहरीन में नहीं हो पाती. लेकिन जब हम लोग छठ पूजा पर घर नहीं जा पाते तो मनामा में रहकर ही समुद्र के किनारे जाकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं. घर की छठ पूजा की हमें तब बहुत याद आती है''- रंजन कुमार श्रीवास्तव, मनामा, बहरीन (गोपालगंज के मूल निवासी)
बेटी के स्कूल के कारण नहीं जा पा रहा: पिछले 11 साल से जर्मनी के डसेलडोर्फ में रह रहे पटना के प्रकाश शर्मा कहते हैं. 28 अक्टूबर से लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत हो रही है. यह बिहारियों के लिए केवल पर्व नहीं है बल्कि एक इमोशन भी है. प्रकाश कहते हैं कि कौन बिहारी इस वक्त अपने घर परिवार के साथ समय व्यतीत नहीं करना चाहेगा? लेकिन अफसोस इस बात का है कि इस बार मैं इस पूजा पर बिहार नहीं जा पाऊंगा. क्योंकि मेरी बेटी का स्कूल चल रहा है और जर्मनी में छुट्टियां ले पाना बहुत मुश्किल होता है. इस बात का थोड़ा मलाल रहेगा. प्रकाश कहते हैं कि उनकी छठी मैया से यही दुआ है कि जो जहां रहे वहीं खुश रहे.
''पिछले 10 साल से रोजगार के सिलसिले में मैं ओमान के मस्कट में परिवार के साथ रहता हूं. बिहार और छठ पूजा का अलग रिश्ता है. एक बिहारी ही इस पूजा के महत्व को समझ सकता है. तभी नौकरी के सिलसिले में या कभी फ्लाइट नहीं मिल पाने के कारण जब हम घर नहीं जाते हैं तो अजीब सा दर्द होता है''- कनक सिन्हा, मस्कट, ओमान (छपरा के मूल निवासी)
वीजा की परेशानी बनी बाधा:जर्मनी के शहर बर्लिन में रहने वाली पटना की मूल निवासी श्वेता कुमारी बताती हैं कि इस बार वह वीजा जारी नहीं हो पाने कारण इस बार छठ पूजा में बिहार नहीं आ पा रही हैं. जिसे लेकर वो बहुत मायूस हैं. श्वेता बताती हैं कि वे छठ पूजा के दौरान रात में जगकर ठेकुआ बनाना या फिर छठ पूजा के गीत गाना या फिर घाट पर जाना यह सारी चीजें एकदम अलग होती हैं. इस बार छठ पूजा में हम शामिल नहीं हो पाएंगे यह सोचकर ही बहुत बुरा लग रहा है.
रोजी-रोटी के कारण छठ में घर से दूर: गोपालगंज की ही बड़कागांव की मूल निवासी मुरली पांडे पिछले 15 सालों से भी ज्यादा वक्त से दुबई में रहते हैं. छठ पूजा पर इस बार घर नहीं आने वाले मुरली बताते हैं कि रोजी-रोटी के कारण घर से इतना दूर रहना पड़ता है. लेकिन जब भी छठ पूजा का जिक्र होता है तो गांव के बगीचे, ठेकुआ और शारदा सिन्हा के छठ गीत याद आने लगते हैं.
छठ पूजा की पौराणिक कथा?एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया. छठ पूजा 2022 का दिन और समय (Chhath Puja date and time) भी जान लेते हैं.
छठ पूजा 2022 का दिन और समय
- पहला दिन- नहाय खाय (28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार)
- दूसरा दिन- खरना (29 अक्टूबर 2022, शनिवार)
- तीसरा दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर 2022, रविवार)
- आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर 2022, सोमवार)