पटना: आखिर बिहार के कामगार रोजी-रोटी की खातिर कब तक परदेश (Migrant exodus from Bihar) जाते रहेंगे? यह सवाल इसलिए क्योंकि एक बार फिर कोसी सीमांचल से मजदूरों का पलायन शुरू (Migrate from kosi Seemanchal ) हो गया है. मजदूर सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और वैशाली स्टेशन से ट्रेन पकड़कर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं. पंजाब और हरियाणा जाने वाले मजदूरों की भीड़ एक दिन पहले बिहार के इन जिलो के रेलवे स्टेशन पर लग जाती है. बता दें कि धान रोपनी का सीजन रहने के कारण पलायन की रफ्तार तेज है.
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पलायन की मजबूरी : रोजगार की तलाश में हर दिन मजदूरों की टोली सहरसा से चलने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों से पलायन कर रहे हैं. ट्रेनों में क्षमता से अधिक यात्री सवार होकर सफर करने के लिए मजबूर हैं. ट्रेनों में भीड़ इतनी अधिक होती है कि शौचालय तक में जगह नहीं बचती. कई मजदूर 1200 से 1500 किमी लंबी दूरी का सफर खड़े-खड़े करने को मजबूर हैं. पलायन करने वाले मजदूरों को सामान्य रूप से यदि ट्रेन में जगह मिल जाती तो ठीक, नहीं तो ट्रेनों की संख्या कम होने से कई दिनों तक इन्हें स्टेशन पर ही रात गुजारना पड़ता है. ऐसे में या तो इन्हें ट्रेन के टॉयलेट या ट्रेन के अंदर लटककर सफर करना पड़ता है या फिर वे अगली ट्रेन का इंतजार करते रह जाते हैं. सवाल ये है कि इतनी मजबूरी में सफर क्यों? वे कहते हैं कि ''यहां काम नहीं मिलता है. मिलता भी है तो सही समय पर दिहाड़ी नहीं मिलती है. यदि बाहर नहीं जाएंगे तो परिवार क्या खाएगा?''
पूर्णिया से पलायन शुरू:पेट की आग झुलसा देने वाली गर्मी पर भारी पड़ रही है.बिहार के पूर्णिया जिले सभी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. यहां से रोजी रोटी के चक्कर में ज्यादातर लोग पंजाब की तरफ जा रहे हैं. बिहार में ज्यादातर लोगों के पास ना तो काम मिल रहा है और ना ही खेती के लिए पर्याप्त जमीनें बचीं हैं. ऐसे में यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूर बन गए और परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरी में पलायन करने लगे. मई और जून महीना यहां के लोगों के लिए सबसे कठिन है. क्योंकि काम मिलता नहीं तो दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है.
''यहां पर कोई रोजगार नहीं है. हमारे बाल बच्चा सब भूखा है. हम लोग पंजाब जा रहे हैं धान रोपने के लिए. वहां से जो कुछ मिलेगा उससे बाल बच्चों को पालेंगे. उनका पढ़ाई लिखाई भी तो देखना है. यहां तो बच्चों की फीस का दाम भी निकालने का पैसा नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में हम खाएंगे क्या और बच्चों को पढ़ाएंगे क्या'': अनिल ऋषि, प्रवासी मजदूर, पूर्णिया
पूर्णिया जिले में पिछले साल मनरेगा में अप्रैल-मई महीने में 11.98 लाख मानव दिवस सृजित किए गये. पूर्णिया सूबे में 17वें स्थान पर रहा. एक आंकड़े के मुताबिक 31 मई 2021 तक 7.58 लाख मजदूरों को मनरेगा से जोड़ा गया. फिर भी ये पहल नाकाफी रही. कोरोना के बावजूद भी पूर्णिया से मजदूरों का पलायन हुआ.
''मेरा घर कटिहार में बंगाल बॉर्डर पर है. मैं पंजाब कमाने जा रहा हूं. इस वक्त रास्ते में हूं और पूर्णिया पहुंचा हूं. अगर अपने गांव-शहर में काम मिलता तो अपना घर बार परिवार छोड़कर परदेश में क्यों जाता. सरकार ने बोला था कि यहीं पर रोजगार मिलेगा. हम लोग इंतजार किए जब काम नहीं मिला तो हम लोग मजबूरी में पेट पालने के लिए बाहर जा रहे हैं.''- इन्द्रदेव महतो, जलकर, जिला कटिहार
सहरसा में पलायन का हाल: बिहार के सहरसा स्टेशन पर पंजाब जाने वाले मजदूरों की अच्छी खासी तादाद देखी जा रही है. तकरीबन तीन हजार मजदूर रोजाना ट्रेनों से पलायन कर रहे हैं. जो छूट जा रहे हैं उन्हें अगली ट्रेन के लिए स्टेशन पर ही रात गुजारनी पड़ रही है. उसपर भी ये गारंटी नहीं कि ट्रेन में पैर रखने की भी जगह मिले. अमृतसर के लिए सप्ताह में तीन दिन चलने वाली गरीब रथ एक्सप्रेस और प्रतिदिन चल रही एक्सप्रेस ट्रेन में सहरसा से मजदूरों की टोली हर दिन पलायन कर रही है. गरीब रथ में अधिकतर मजदूर ही रहते हैं. इन दिनों बनमनखी-सहरसा-अमृतसर जनसेवा एक्सप्रेस ट्रेन बंद रहने के कारण कोसी इलाका से बड़ी संख्या में मजदूर दरभंगा जाकर अमृतसर सहित अन्य जगहों के लिए ट्रेन पकड़ते है. दरभंगा से हर दिन अमृतसर सहित अन्य महानगरों के लिए प्रतिदिन ट्रेनें खुलती हैं. गरीब रथ ट्रेन में चढने के लिए मजदूरों के बीच मारा-मारी की स्थिति रहती है. हालात ये है कि सहरसा स्टेशन पर 6-6 दिनों से मजदूर भूखे प्यासे ट्रेन में जगह पाने का इंतजार कर रहे हैं.
''हम लोग सहरसा स्टेशन पर दो रोज से बैठे हैं. हमारी ट्रेन आ रही है लेकिन ट्रेन में जगह नहीं होने और कन्फर्म टिकट नहीं मिलने की वजह से हम लोग अगली ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं. हम लोगों को पंजाब के लुधियाना जाना है. हम और हमारा परिवार बहुत तकलीफ में है इसलिए हमें बाहर कमाने के लिए जाना पड़ रहा है. हमारे साथ कई ऐसे साथी हैं जो छह रोज से स्टेशन पर भूखे प्यासे बैठे हैं. अगर यहां रोजगार रहता तो हम लोग 2200 किलोमीटर कमाने लुधियाना कमाने नहीं जाते''- विजय कुमार, प्रवासी मजदूर, सहरसा
वैशाली में पलायन का हाल:बड़ी संख्या में वैशाली जिले से भी मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर रहे हैं. बाहर जा रहे मजदूरों से बात करने के बाद उनका दर्द सामने आया. किसी के पिता का देहांत हो गया है तो वह मां और बहनों के रोजी रोटी के लिए रोजगार मांगने बाहर जा रहा है, तो किसी की पत्नी और बच्चे कहते हैं जाओ कहीं से भी रोटी कमा कर लाओ. तो कोई कहता है यहां अमीरों को ही रोजगार मिलता है गरीबों के लिए कोई काम नहीं है. वैशाली में हसनपुर के रहने वाले रोजगार की तलाश में यूपी जा रहे अनिल राम ने बताया कि बाल बच्चों के लिए काम करना है. यहां काम नहीं है तभी जा रहे हैं. यहां प्रयास किए थे लेकिन काम नहीं मिला. 6 महीने से काम कर रहे हैं. दिक्कत यही है कि यहां काम नहीं है. काम नहीं करेंगे तो बाल बच्चा क्या खाएगा?
''बहुत तकलीफ में हैं हम लोग. हमारी जिंदगी में बहुत संघर्ष है. काम मिलता नहीं और काम पाने के लिए दो दिन खड़े खड़े ट्रेन में सफर करो, काम नहीं मिले तो इंतजार करो, बिना खाए पिए काम करो. इससे अच्छा है कि हमको मौत मिल जाए. जब घर में काम होता तो हम परदेश क्यों जाते? अगर सरकार काम दिए है तो कहां है काम, कौन बताएगा. सरकार ने दिया है तो बताए? हम लोग पागल है जो बच्चों को यहां छोड़कर 1300 किलोमीटर दूर कमाने खाने जाते हैं. हम लोग दिल्ली गुड़गांव जा रहे हैं.'' -वीरेन्द्र प्रसाद यादव, प्रवासी मजदूर, मधुबनी
पलायन की मजबूरी क्यों? : हालांकि पलायन बिहार की कड़वी सच्चाई (Migration from Bihar) है. अपने प्रदेश में नौकरी और रोजगार नहीं मिलने की वजह से लाखों लोग मजबूरन दूसरे राज्यों में पेट की खातिर जाते हैं. बिहार से लोग रोजगार और शिक्षा के लिए भी पूरे देश में पलायन करते हैं, जिसमें से सबसे अधिक 55 से 60% लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्य या देश में जाते हैं. बिहार सरकार ने अब तक के पलायन को लेकर कोई स्टडी नहीं कराई है, लेकिन जनरल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स की एक रिपोर्ट क्या कहती है आइये समझते है.
जनरल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार रोजगार के लिए 55%, व्यापार के लिए 3% और शिक्षा के लिए 3% लोग बिहार से पलायन करते हैं. बिहार से पलायन करने वाली आबादी में पंजाब जाने वाले लोगों की तादाद 6.19% है. पंजाब में सबसे अधिक कृषि कार्य में काम करने के लिए लोग बिहार से जाते हैं. साथ ही निर्माण के क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में बिहार के लोग वहां काम करते हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक, 1951 से लेकर 1961 तक बिहार के करीब 4% लोगों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया था, लेकिन 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के दौरान 93 लाख बिहारियों ने अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन किया. देश की पलायन करने वाली कुल आबादी का यह 13% है, जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे ज्यादा है.