छपराः बिहार के छपरा में पिछले साल नवंबर और दिसंबर के महीने में जहरीली शराब पीने से लगभग 77 लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन जिला प्रशासन ने आंकड़े को छुपाते हुए 44 मौतों की ही पुष्टि की थी, अब इस मामले में जांच कर रही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगने भी दावा किया है, जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या 44 नहीं बल्की 77 थी. एनएचआरसी के इस दावे के बाद इस मामले में स्थानीय प्रशासन की जांच और मौत की पुष्टि पर सवाल खड़े होने लगे हैं.
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प्रशासन ने की थी 44 मौतों की पुष्टि:दरअसल छपरा में पिछले साल शराबकांड की ये घटना जिले के मशरख थाना क्षेत्र के बहरौली मशरख तख्त पर, गोपालबाड़ी, मढ़ौरा थाना क्षेत्र के खरौनी लालापुर और कई अन्य क्षेत्रों में भी घटी थी. जहां कई लोगों ने जहरीली शराब पी थी. जैसे-जैसे जहरीली शराब का असर होते गया लोगों की आंखों की रोशनी, सीने में जलन की शिकायत के साथ लोग स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे. उनमें कई लोगों की मौत हो गई, कईयों की आखों की रोशनी तक चली गई. हालांकि कुछ लोग इलाज के बाद ठीक भी हुए. इतने बड़े शराबकांड को तो पहले प्रशासन ने हल्के में लिया लेकिन जब मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा तो स्थानीय प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए. आनन-फानन में जांच शुरू हुई कई लोग गिरफ्तार भी हुए. वहीं सदर अस्पताल ने 44 लोगों के मौत की पुष्टि की. लेकिन तमाम मीडिया संस्थानों ने इस शराबकांड में लगभग 77 लोगों के मौतों का आंकड़ा दिखाया. जिसे सरकार और प्रशासन नकारती रही.
एनएचआरसी ने तीन दिनों तक की थी जांचः घटना के बाद विपक्ष ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया तो एनएचआरसी की 10 सदस्यी टीम भी जांच के लिए छपरा पहुंची. ये टीम 21, 22 और 23 दिसंबर तीन दिनों तक जिले के कई इलाकों में पीड़ित परिजनों और अधिकारियों से मुलाकात कर हालात का जायजा लिया और गंभीरता से जांच की. जांच में पता चला कि कई लोगों ने पुलिस के डर से मरने वाले के शवों को जला दिया था. जिनका आंकड़ा प्रशासन के पास नहीं था. हालांकि जिला प्रशासन ने आज तक नहीं माना कि जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई है, उनका कहना है कि कोई जहरीला पदार्थ इन लोग ने लिया था, जिससे 44 लोगों की मौत हुई है. जबकि मृतकों के परिजनों का स्पष्ट रूप से कहना था कि सभी लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से ही हुई है.
एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में किए कई खुलासे:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में अब 18 पन्नों की रिपोर्ट दी है, जिसमें दावा किया गया है कि शराब पीकर मरने वालों की संख्या 44 नहीं बल्कि 77 थी. इस घटना में मारे गए 33 लोगों के शव परिजनों द्वारा बिना पोस्टमॉर्टम के ही जला दिए गए थे. मरने वालों में ज्यादातर ड्राइवर, किसान, मजदूर और चाय बेचेने वाले या बेरोजगार लोग शामिल थे. इनमें 75% मृतक पिछड़ी जाति से हैं. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि प्रशासन की ओर से जांच टीम को सुरक्षा और सहयोग नहीं मिला. टीम ने पीड़ितों से बात कर सारी जानकारी ली है. एनएचआरसी ने पीड़ित परिवरों के पुनर्वास नहीं होने की बात भी कही है, साथ ही सभी पीड़ितों को चार लाख रुपये मुआवजा देने की बात भी कही. रिपोर्ट में बताया गया है कि कई परिवार के ऐसे व्यक्ति की मौत हुई है, जो घर में कमाने वाले अकेले शख्स थे, उसका परिवार अब मुश्किल के दौर से गुजर रहा है. एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू करने में विफलता की बात है. जिसमें पटना हाईकोर्ट द्वारा की गई एक टिप्पणी का हवाला भी दिया गया है.