पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा कि जातीय जनगणना का संबंध राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक है. एक कार्यक्रम के बाद जातीय जनगणना को लेकर प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के संबंध में पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए कुमार ने कहा, 'उनका पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को चार अगस्त को प्राप्त हो चुका है. अभी तक इसका जवाब नहीं आया है. हमलोग चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो जाय, यह केंद्र सरकार पर निर्भर है. यह हमलोगों की पुरानी मांग है. हम पहले भी इस संबंध में अपनी बातों को रखते रहे हैं.'
उन्होंने कहा कि सबको मालूम है कि वर्ष 2019 में बिहार विधानसभा और विधान परिषद् से सर्वसम्मति से इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया, इसके बाद वर्ष 2020 में विधानसभा से एक बार फिर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया.
नीतीश ने कहा, 'हमलोगों की इच्छा है कि जातीय जनगणना हो. इसका काफी फायदा होगा. एक बार जातीय जनगणना होने से एक-एक चीज की जानकारी हो जायेगी. किस जाति की कितनी आबादी है-- इसकी जानकारी होने से विकास की योजनाओं का लाभ सभी को मिलेगा.'
उन्होंने कहा, 'जातीय जनगणना सभी के हित में है. हम लोग चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो, आगे यह केंद्र सरकार का काम है. अगर प्रधानमंत्री समय देंगे तो हमलोग जरुर मिलकर अपनी बातों को कहेंगे. इसका संबंध राजनीतिक नहीं है बल्कि सामाजिक है.'
मुख्यमंत्री ने कहा, 'सिर्फ बिहार में ही नहीं, कई और राज्यों में जातीय जनगणना की चर्चा हो रही है. इसको लेकर हमारे पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री से मिलने को लेकर पत्र लिखा था तो उनकी मुलाकात गृह मंत्री अमित शाह से हुई थी. सांसदों ने गृहमंत्री से मिलकर अपनी बातों को कह दिया है. बिहार के विपक्षी दलों की भी इच्छा थी कि हमारे नेतृत्व में चलकर प्रधानमंत्रीजी से मिला जाय. इसको लेकर हमने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा है. जातीय जनगणना को लेकर निर्णय लेना केंद्र सरकार का काम है. हमलोग अपनी इच्छा को प्रकट करते रहे हैं. यह सामाजिक हित की बात है.'