नई दिल्ली : इस बार कांग्रेस ने 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में पूरी तरह से एक नई रणनीति का विकल्प चुना था. विशेष रूप से असम और केरल दोनों राज्यों में जहां यह मुख्य चुनौती थी वहां राहुल गांधी और प्रियंका दोनों ने व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखाई लेकिन जमीन पर प्रभाव बनाने में विफल रहे.
अगर हम अन्य तीन राज्यों के परिणामों को देखें तो कांग्रेस, वाम दलों के साथ गठबंधन के बावजूद पश्चिम बंगाल में अपना खाता नहीं खोल पाई. पुडुचेरी में भी कांग्रेस चुनावी जंग हार गई. आशा की एकमात्र किरण तमिलनाडु से आई थी लेकिन वह भी डीएमके की वजह से संभव हुआ जहां उसने राज्य में जबरदस्त जीत हासिल की है.
पार्टी स्पष्ट रूप से राज्यों में अपनी वैधता खो रही है. बड़ी चिंता यह है कि यह विपक्ष का नेतृत्व करने की अपनी शक्ति भी खो रहा है. ऐसे समय में क्षेत्रीय दल मजबूत हो रहे हैं. नतीजों के बाद ममता बनर्जी को विपक्ष के चेहरे के रूप में देखा जाने लगा है जो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती हैं.
इन नतीजों पर कांग्रेस पार्टी को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि यह उनके आंतरिक दरार को और गहरा कर सकता है. 23 नेता जो पहले से ही पार्टी के कामकाज से असंतुष्ट थे और उन्होंने संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी. एक बार फिर नेतृत्व पर सवाल उठा सकते हैं. इस बीच उस समूह के बाहर के भी कुछ नेता हैं जो पार्टी के कामकाज से बहुत खुश नहीं हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व कानून मंत्री डॉ. अश्विनी कुमार ने कहा कि स्पष्ट रूप से कांग्रेस को अपनी गिरावट की वास्तविकता को पहचानने की जरूरत है. साथ ही सभी स्तरों पर वैचारिक प्रतिबद्धताओं और सहयोगात्मक कार्यप्रणाली की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं में खुद को फिर से स्थापित करने के लिए विशेष कदम उठाने की जरूरत है.