देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड कई बार आपदा का दंश झेल चुका है. बीते दिन चमोली जिले के जोशीमठ में आई भीषण जल प्रलय ने सब को हिला कर रख दिया है. जिसने भी इस जल प्रलय का मंजर देखा उनके सामने 2013 की आपदा की तस्वीर उभरकर सामने आ गई. आपदा की जो तस्वीरे सामने आई हैं, उससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह प्राकृतिक आपदा विनाश की पटकथा लिखती है.
गौरतलब हो कि उत्तराखंड इससे पहले भी कुदरत के कहर को देख चुकी है. वर्ष 1991 में उत्तरकाशी भूकंप से भारी तबाही मची थी. तब प्रदेश अविभाजित उत्तर प्रदेश में था. उत्तरकाशी जनपद में 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था. तबाही के ये घाव आज भी क्षेत्र में साफ देखे जा सकते हैं. चमोली जिले के जोशीमठ में आई जल प्रलय को लेकर राहत बचाव कार्य जारी हैं. आज तड़के साढ़े चार बजे रैणी और तपोवन में रेस्क्यू कार्य फिर शुरू कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि तपोवन टनल में अभी भी 50 लोग फंसे हुए हैं. वहीं छोटी टनल से 12 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है. जबकि बड़ी टनल को खोलने काम जारी है. प्रदेश में विगत वर्षों में आईं आपदाओं में सैकड़ों की संख्या में जनहानि हुई और कई-कई गांव तबाह हो गए. आपदा का दंश झेल रहे उत्तराखंड की अगली बड़ी चुनौती इससे निपटने की है.
पिथौरागढ़ मालपा हादसा
वर्ष 1998 में सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला तहसील के मालपा हादसे में कैलाश मानसरोवर यात्रियों की मौत हो गई थी. इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मौत हो गई थी. ये हादसा पहाड़ी से मलबा गिरने से हुआ था, जिसकी चपेट में गांव भी आ गया था.