रायपुर:छत्तीसगढ़ की मौजूदा कांग्रेस सरकार में फिलहाल तीन पावर सेंटर्स हैं, जिनके ईर्द गिर्द ही सारे फैसले लिए जाते हैं. विधानसभा चुनाव 2018 में इसी तिकड़ी के दम पर कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत हासिल की. अब इस तिकड़ी में दरार की खबरें आ रही हैं. विधानसभा चुनाव 2023 से पहले यह दरारे नहीं भरी गईं तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है. सरकार के ढाई साल पूरे होते ही मुख्यमंत्री पद को लेकर टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल में तनातनी शुरू हो गई. अब पीपीसी चीफ मोहन मरकाम भी पद को लेकर पशोपेश में हैं. बीजेपी इसी ताक में बैठी है कि तीनों के बीच फासले बढ़े, जिनसे होकर वह सत्ता के गलियारे तक पहुंच सके. लेकिन टीएस सिंहदेव को अपने पाले में करने के मामले में उसने जल्दबाजी कर दी. फिलहाल कांग्रेस के ये तीनों धुरंधर मंच साझा करते हुए आपसी मतभेद को ढंकने और छिपाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, ताकि चुनाव में पार्टी को कोई डेंट न पहुंचे. इस पर आखिर क्या कहते हैं राजनीतिक दल के लोग और राजनीति के जानकार, आइए जानते हैं.
कांग्रेस के पावर सेंटर में से एक भूपेश बघेल का यहां है प्रभाव:दुर्ग संभाग में 20 विधानसभा सीट है. साल 2018 में कांग्रेस ने 20 विधानसभा सीट में से 17 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं खैरागढ़ उपचुनाव जीतकर कांग्रेस ने यह आंकड़ा 18 कर लिया है. यानी भूपेश बघेल के प्रभाव वाले दुर्ग संभाग में बीजेपी के पास सिर्फ 2 सीट ही है. इनमें राजनांदगांव सीट पूर्व सीएम रमन सिंह के पास है और वैशाली नगर सीट विद्यारतन भसीन ने जीता है. रायपुर संभाग में भी 20 विधानसभा सीट हैं. साल 2018 में 14 पर कांग्रेस, 5 पर बीजेपी और 1 पर जेसीसीजे को जीत मिली. यानी रायपुर और दुर्ग संभाग की 40 सीटों में से 32 सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं. इन सभी सीटों पर भूपेश बघेल का बड़ा प्रभाव माना जाता है. वहीं मुख्यमंत्री होने के नाते प्रदेश की लगभग हर सीटों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भूपेश बघेल दखल रखते हैं. यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान भी भूपेश बघेल की उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.
कांग्रेस के पावर सेंटर 'बाबा' के दखल वाली सीटें:सरगुजा संभाग में 14 सीटें हैं. सभी सीटों पर कांग्रेस काबिज है. इसके अलावा ओडिशा से सटे इलाके रायगढ़, सक्ती, धरमजयगढ़ यानी पुरानी रियासतों वाले इलाके में सिंहदेव का प्रभाव है. वहीं कोरबा जिले और बिलासपुर जिले की कुछ सीटों पर भी सिंहदेव का प्रभाव है. सियासी जानकारों के मुताबिक सिंहदेव का छत्तीसगढ़ की करीब 35 सीटों पर प्रभाव है.
मोहन मरकाम भी कांग्रेस के पावर सेंटर, 29 सीटों पर है दबदबा:मोहन मरकाम की बात की जाए तो मरकाम कोंडागांव से विधायक हैं और उनकी बस्तर संभाग की 12 सीटों पर पकड़ है. वर्तमान में बस्तर संभाग की सभी 12 की 12 सीटें कांग्रेस के पास है. इसके अलावा मरकाम दूसरे संभाग की आदिवासी सीटों पर भी पकड़ रखते हैं. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इन सभी 29 सीटों पर मोहन मरकाम का दखल माना जाता है.
कांग्रेस के पावर सेंटर तिकड़ी के सामने जातीय समीकरण की चुनौती:छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित है. इनमें 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं. लेकिन इन सीटों में से भी करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों की ज्यादातर विधानसभा सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.
मरकाम को हटाने सीएम, बने रहने सिंहदेव कर रहे प्रयास:वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक जानकार रामअवतार तिवारी का मानना है कि "मोहन मरकाम आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे तो ऐसी स्थिति में जो चुनाव नहीं लड़ रहा हो उसे प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग उठ रही है. ऐसी चर्चा है कि मुख्यमंत्री समेत कई लोगों ने प्रस्ताव भी दिया है. दूसरी ओर चर्चा है कि टीएस सिंह देव और चरण दास महंत चाहते हैं कि मोहन मरकाम यथावत बने रहें. मरकाम की जगह बस्तर क्षेत्र के ही सांसद दीपक बैज का नाम उभर कर सामने आ रहा है. आदिवासी की जगह बस्तर के आदिवासी को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर मंथन हो रहा है. इसकी वजह यह है कि चुनाव में बस्तर क्षेत्र की अहम भूमिका होती है. यही वजह है कि पार्टी उसी क्षेत्र के किसी नेता को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप सकती है."