नई दिल्ली:उत्तर प्रदेश के पंचायती राज्य मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी (Bhupendra Singh Chaudhary) को सूबे में पार्टी की कमान सैंप कर ना सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि जाट बहुल कई राज्यों में बीजेपी ने संदेश देने की कोशिश की है. जाट वोट बैंक (Jat Vote Bank) जो किसान आंदोलन से बीजेपी से अलग-थलग सा हो गया है, उसे जोड़ने की कड़ी में इसे एक बड़ा निर्णय माना जा रहा है. भूपेंद्र सिंह चौधरी संगठन के पुराने व्यक्ति तो हैं ही, आरएसएस के जमीनी कार्यकर्ता भी रहे हैं और राज्य में पंचायती राज्य मंत्री भी हैं.
बीजेपी को पता है कि यदि लोकसभा चुनाव जीतना है तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में उसे एक बार फिर से पिछली बार की तरह बड़ी संख्या में सीटें जीतनी होगी. यही वजह है कि पहले राज्य के संगठन मंत्री सुनील बंसल को मुख्यालय भेज कर उनकी जगह धर्मपाल को लाया गया, जो बिजनौर से आते हैं. राज्य में मुख्यमंत्री का पद पूर्वांचल से आने वाले योगी आदित्यनाथ संभाल रहे हैं, तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद पश्चिम से भूपेंद्र सिंह चौधरी को दिया गया है, जो मुरादाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं.
इन पदों के जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण को देखा जाए तो पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. रह रह कर उठ रही किसानों की मांग, किसान आंदोलन और धरना प्रदर्शन लगातार पिछले दो वर्षों से चल रहे हैं. ऐसे में पार्टी को लगता है कि जाट और किसान मतदाताओं के बीच बीजेपी के प्रति भरोसे में कमी आई है. इस विश्वसनीयता को दोबारा 2024 से पहले हासिल करना ही पार्टी की प्राथमिकता है. यही वजह है कि एक के बाद एक बीजेपी की तरफ से ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं जो किसान और जाट बहुल इलाकों में पार्टी को दोबारा जमबूत करने में मदद कर सकें. यूपी में भूपेंद्र सिंह चौधरी को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाने का ये फैसला भी उन्हीं में से एक है.
वैसे देखा जाए तो राजस्थान में भी जाट मतदाताओं की 15 से 18 फीसदी जनसंख्या है. इसी तरह हरियाणा में भी जाट मतदाताओं की संख्या लगभग 25 फीसदी है. वहीं लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले राज्य यूपी में जाट मतदाताओं की संख्या लगभग 40 लाख यानी दो प्रतिशत है. साथ ही किसानों की संख्या भी ज्यादा है, जिसे देखते हुए ही बीजेपी ने भूपेंद्र सिंह चौधरी को कमान दी है ताकि राज्य में जातीय समीकरण को भी ठीक किया जा सके.