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उर्दू भाषा में संत रविदास के योगदान पर शोध करेगा बीएचयू

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने भाषा के रूप में उर्दू को बढ़ावा देने के लिए संत रविदास के योगदान पर शोध करने का निर्णय लिया है. इस संबंध में ईटीवी भारत के साथ बात करते हुए, बीएचयू के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आफताब अहमद ने कहा कि सूफी संतों ने उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाई है.

प्रोफेसर आफताब अहमद
प्रोफेसर आफताब अहमद

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Published : Mar 4, 2021, 11:00 PM IST

वाराणसी : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने भाषा के रूप में उर्दू को बढ़ावा देने के लिए संत रविदास के योगदान पर शोध करने का निर्णय लिया है. हर साल 9 फरवरी को राष्ट्र संत रविदास की जयंती मनाता है. बीएचयू के पास स्थित गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है और उनके बहुत से अनुयायी इस स्थान पर आते रहते हैं.

उन्हें सामाजिक सद्भाव के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, जो जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े थे, जबकि हिंदी में संत रविदास के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, उर्दू पाठकों द्वारा पढ़ी जाने वाली उर्दू भाषा में उन पर बहुत कुछ उपलब्ध नहीं है. ऐसे ही बीएचयू के उर्दू विभाग ने संत रविदास पर कुछ शोध करने का फैसला किया है.

ईटीवी भारत के साथ बात करते हुए, बीएचयू के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आफताब अहमद ने कहा कि सूफी संतों ने उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाई है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उन्होंने कहा कि हमारा विभाग इस बात पर कुछ शोध करेगा कि संत रविदास के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में भाषा के रूप में उर्दू की कितनी भूमिका थी. मैंने संत की चार पुस्तकें पढ़ी हैं और साहित्य के अनुसार उनके द्वारा उपयोग किए गए 50 फीसदी शब्द उर्दू या फारसी में थे,

उन्होंने आगे कहा, 'इन सभी पहलुओं को कुछ शोध की आवश्यकता है क्योंकि संत रविदास या बुल्ले शाह ने उर्दू के प्रचार में कितनी भूमिका निभाई.'

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प्रोफेसर आफताब ने बताया कि गुरु ग्रंथ साहिब, सिखों की पवित्र पुस्तक, रविदास द्वारा 40 शब्द शामिल हैं.

बता दें कि संत रविदास का जन्म वाराणसी के एक हरिजन परिवार में हुआ था और उसी शहर में उनकी मृत्यु हुई थी.

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