नई दिल्ली: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने टी सेल लिंफोमा (एक प्रकार का इम्यून सेल कैंसर) में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन किया है. इस अध्ययन में पहली बार इस प्रकार के कैंसर को बढ़ाने में लाइसोफॉस्फेटिडिक एसिड (LPA) की भूमिका प्रदर्शित की गई है. वैज्ञानिकों (Scientists from the Department of Zoology, Banaras Hindu University) के मुताबिक अभी तक टी सेल लिंफोमा (T cell lymphoma) बढ़ाने में एलपीए की भूमिका तथा टी सेल लिंफोमा के चिकित्सीय उपचार में एलपीए रिसेप्टर की संभावित क्षमता का मूल्यांकन नहीं किया गया है. लाइसोफॉस्फेटिडिक (Lysophosphatidic acid) सबसे सरल प्राकृतिक बायोएक्टिव फॉस्फोलिपिड्स में से एक है, जो ऊतकों की मरम्मत, घाव भरने और कोशिका के जीवित बने रहने में शामिल है. सामान्य शारीरिक स्थितियों के दौरान, एलपीए घाव भरने, आंतों के ऊतकों की मरम्मत, इम्यून सेल माइग्रेशन और भ्रूण के मस्तिष्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि, डिम्बग्रंथि, स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर (ovarian cancer, breast cancer, prostate cancer, and colorectal cancer) के मामलों में एलपीए व इसके रिसेप्टर का बढ़ा हुआ स्तर देखा गया है.
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बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार (Dr. Ajay Kumar BHU Professor) ने बताया कि यह अध्ययन कैंसर-ग्रसित चूहों पर लगभग चार वर्षों तक दो भागों में किया गया. इस अध्ययन में यह पाया गया कि एलपीए ने एपोप्टोसिस (कोशिका मृत्यु का सबसे सामान्य तरीका) को रोक कर और ग्लाइकोलाइसिस (ग्लूकोज मेटाबोलिज्म - ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ग्लूकोज का टूटना) को बढ़ा कर टी लिम्फोमा कोशिकाओं के जीवनकाल को बढ़ाया. दूसरी ओर, एलपीए रिसेप्टर अवरोधक, केआई 16425 ने टी सेल लिंफोमा-ग्रसित चूहों में उल्लेखनीय एंटी-ट्यूमर प्रभावकारिता दिखाई.
इसके अलावा, टीम ने पाया कि केआई 16425 ने टी सेल लिंफोमा-ग्रसित चूहों में कम हुई प्रतिरक्षा को फिर से सक्रिय किया और ट्यूमर प्रेरित गुर्दे और जिगर की क्षति में सुधार किया. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र विशाल कुमार गुप्ता (Vishal Kumar Gupta BHU student ) के मुताबिक इस अध्ययन के प्रयोगात्मक निष्कर्ष उत्साहजनक हैं क्योंकि यह पहली बार है कि एलपीए के टी सेल लिंफोमा को बढ़ावा देने की क्षमता के साथ-साथ टी सेल लिंफोमा के लिए एलपीए रिसेप्टर के चिकित्सीय मूल्य को इतने विस्तार से देखा गया है. यह कार्य इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि यह टी सेल लिंफोमा के लिए बायोमार्कर के रूप में एलपीए के उपयोग तथा एलपीए रिसेप्टर्स के संबंध में दवा के विकास और डिजाइन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
इस शोध कार्य को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, (Science and Engineering Research Board, Department of Science and Technology, Government of India) द्वारा वित्त पोषित किया गया था. इस अध्ययन के नतीजे निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित शोध पत्रिका 'एपोप्टोसिस' में दो भागों में प्रकाशित हुए हैं.
यह अध्ययन काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग, विज्ञान संस्थान, में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार, के मार्गदर्शन में उनके शोध छात्र विशाल कुमार गुप्ता (Dr Ajay Kumar, Assistant Professor at the Institute of Science, Department of Zoology) द्वारा किया गया है. शोध छात्र प्रदीप कुमार जयस्वरा, राजन कुमार तिवारी और शिव गोविंद रावत भी (Vishal Kumar Gupta, Pradeep Kumar Jayaswara, Rajan Kumar Tiwari and Shiv Govind Rawat Research student ) अध्ययन करने वाली टीम में शामिल थे. शोध टीम का कहना है कि अभी तक टी सेल लिंफोमा बढ़ाने में एलपीए की भूमिका तथा टी सेल लिंफोमा के चिकित्सीय उपचार में एलपीए रिसेप्टर की संभावित क्षमता का मूल्यांकन नहीं किया गया है.
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