वाराणसी :'कांचहि बांस के दौरवा, दौरा नई-नई जाए, केरवा जे भरलै दौरवा, दौरा नई-नई जाए. मेवा जे भरलै दौरवा, दौरा नई-नई जाए.' ये लोकगीत बताते हैं कि हमारे पर्व और त्योहारों में प्रकृति की स्थान कितना महत्वपूर्ण है. ऐसा ही पर्व है छठ. इसमें न किसी पुजारी की जरूरत पड़ती है और न ही किसी विशेष मंत्र की. इस पर्व में लोकगीतों के माध्यम से ही छठी मैया को प्रसन्न किया जाता है. इन्हीं गीतों के जरिए महिलाएं अपने लिए छठी मैया से आशीर्वाद मांगती हैं. ऐसे ही लोकगीतों को लेकर BHU की शोध छात्रा सविता पांडेय रिसर्च कर रही हैं. आखिर इन गीतों में ऐसा क्या है, जिसे महिलाएं पूजा में शामिल करती हैं. साथ ही यह भी कि ये लोकगीत कितना प्रकृति को समर्पित हैं.
प्रत्यक्ष देवता की उपासना और प्रकृति संरक्षण की प्रधानता
छठ या सूर्य षष्ठी, आप जो भी बोलिए, एक ही पर्व है. यह पर्व अनंत आस्था के साथ आता है और हर घर में खुशियां फैल जाती हैं. यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव की पूजा की जाती है. यह पर्व आज से नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों से मनाया जा रहा है. इस पर्व के आने के बाद देखने को मिलता है कि हमारे पर्व और संस्कृतियां आस्था के साथ ही प्रकृति से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं. छठ पूजा में प्रकृति संरक्षण प्रधान होता है. इसके लिए न तो मंत्रों की जरूरत होती है और न ही किसी पुजारी की. बस महिलाएं घाट कर लोक गीतों को गाती हुई पहुंचती हैं और उन्हीं लोकगीतों से छठी मैया को प्रसन्न करती हैं. इन लोकगीतों में प्रकृति और पर्यावरण का मेल होता है.
'लोकगीतों में प्रकृति के संरक्षण का संदेश'
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन केंद्र की शोध छात्रा सविता पांडेय कहती हैं, 'लोकगीतों में लोकमंगल की कामना सहज रूप से देखने को मिलती है. अगर हम बात करें छठ पर्व की तो इसमें सूर्य की उपासना की जाती है. प्रकृति से जो भी चीजें हमें प्राप्त हो रही हैं, उनका संरक्षण करना. ये सभी संदेश हमें लोक गीतों में मिलते हैं. इसी प्रकार एक गीत है, जिसमें कच्चे बांस की बनी हुई दौरी की बात हो रही है. इसमें मेवे और फल भरकर लोग घाट की तरफ लेकर जाते हैं. ये जो दौरी है, ये कच्चे बांस की ही बनी हुई है. क्योंकि बांस और दूब वंश का सूचक है, जो संतान प्राप्ति के लिए माना जाता है.'
पर्व मेंप्रकृति को ही प्रधान स्थान
सविता एक लोकगीत के अंश सुनाती हैं, 'कांचहि बांस के दौरवा, दौरा नई-नई जाए, केरवा जे भरलै दौरवा, दौरा नई-नई जाए. मेवा जे भरलै दौरवा, दौरा नई-नई जाए.' कहती हैं, संतान वंश आगे बढ़ाती है. इस गीत में कच्चे बांस की बात की गई है. बांस वंश का सूचक होता है. हम दौरी को बांस से बनाकर ले जाते हैं. इसके साथ ही इसमें प्रकृति की प्रधानता तब भी दिखती है जब दौरी में गन्ना, केला और मेवा जैसी चीजें होती हैं, जो हमें सीधे प्रकृति से मिली हैं. इसके साथ ही सूर्य देव की पूजा होती है. वह भी हमारी प्रकृति का ही हिस्सा हैं.
इन लोक गीतों में दिखाई देता है प्रकृति प्रेम