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टका..सेर देखा क्या ? राजशाही में इनसे तोला जाता था सामान, गिनीज बुक में दर्ज होगा रिकॉर्ड

एमपी की राजधानी भोपाल के एक इलेक्ट्रीकल इंजीनियर और रिसर्च फेलो रंजीत झा ने राजाशाही जमाने के बांट का अद्भुत संग्रह किया है. आजादी से पहले देश की अलग-अलग रियासतों में वजन तौलने के लिए बांट का उपयोग होता है. हर रियासत का अपना अलग बांट होता था. रंजीत झा को लिम्का बुक में शामिल किया गया. पढ़िए भोपाल के बृजेंद्र पटेरिया की यह रिपोर्ट...

Bhopal Research fellow Ranjit Jha
टका सेर देखा क्या

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 22, 2023, 10:45 PM IST

Updated : Nov 22, 2023, 11:00 PM IST

रिसर्च फेलो रंजीत झा ने ईटीवी भारत से बात की

भोपाल।आपने एक कहावत तो खूब सुनी होगी...अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा... लेकिन क्या आपने कभी टका और सेर देखा है. शायद नहीं, लेकिन भोपाल के एक इलेक्ट्रीकल इंजीनियर और रिसर्च फेलो रंजीत झा ने राजाशाही जमाने के बांट का अद्भुत संग्रह किया है. स्वतंत्रता के पहले देश की अलग-अलग रियासतों में वजन तौलने के लिए उपयोग होने वाले बांट का उपयोग होता है. हर रियासत का अपना अलग बांट होता था. रंजीत झा के कलेक्शन में एक दर्जन से ज्यादा रियासतों के बांट मौजूद हैं. उनके कलेक्शन को 5 बार लिम्का बुक में शामिल किया गया है. जल्द ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी उन्हें जगह मिलने जा रही है.

रिसर्च फेलो रंजीत झा ने इकठ्ठे किए बांट

पिछले 10 सालों से कर रहे कलेक्शन: रंजीत झा बताते हैं कि वे पिछले 10 सालों से कई अलग-अलग तरह का कलेक्शन कर रहे हैं. इनमें से उनका सबसे खास कलेक्शन बांट का है. वे बताते हैं कि बचपन में उन्होंने दादी के पास बंगाल रियासत का बांट देखा था, जिसका उपयोग वे सामान तौलने में करती थी. बाद में भोपाल आकर राजीव गांधी प्रोद्योगिकी विश्विद्यालय से इलेक्ट्रीकल इंजीनियर किया. इसी दौरान अलग-अलग तरह के कलेक्शन का शौक लगा. इसी बीच मेरी मुलाकात जाने माले ऑर्कियोलॉजिस्ट डॉ. नारायण व्यास से हुई. चर्चा के दौरान उन्होंने मुझे रियासतों में बांट व्यवस्था पर रिसर्च करने और कलेक्शन का सुझाव दिया. इसके बाद मैंने अलग-अलग रियासतों के बांटों का संग्रह शुरू किया.

अलग-अलग रियासतों के 500 से ज्यादा बांट: रंजीत झा ने पिछले 10 सालों में करीबन 500 से ज्यादा बांटों का संग्रह किया है. एक बांट दिखाते हुए वे दावा करते हैं कि यह परमार राजवंश के राजा भोज के समय उपयोग होता था. उन्होंने एक पत्थर का बांट भी दिखाया. जो राजा अशोक के काल का है. उनके पास भोपाल, ग्वालियर, रतलाम, इंदौर, धार, कच्छ, पटना, मंदसौर स्टेट, दिल्ली स्टेट, मुंबई स्टेट, जयपुर और बीकानेर स्टेट के भी बांट उनके पास मौजूद हैं. वे बताते हैं कि राजशाही जमाने में बांट को तैयार कराने के लिए आगरा और अजमेर फाउंडरी हुआ करती थी, जहां छोटी-छोटी रियासतें अपने बांट तैयार कराती थी, हालांकि ग्वालियर, इंदौर जैसी बड़ी और समृद्ध रियासतें अपने बांट खुद तैयार कराती थी.

बांट

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रियासतों के बांट

रकम देकर कबाड से खरीदे एक-एक बांट:वे कहते हैं कि कई बांट तो उन्होंने कबाड़ के सामानों में से खरीदे हैं. भोपाल रियासत के बांट वे कबाड़खाने से खरीदकर लाए थे. एक बांट का उन्हें करीब 1 हजार रुपए देना पड़ा था. वे कहते हैं कि बांटों के कलेक्शन के लिए वे करीब 4 से 5 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं. रंजीत झा अब इन बांटों का डॉक्युमेंटेशन भी तैयार कर रहे हैं और जल्द ही इसे एक किताब के रूप में पाठकों के सामने लेकर आएंगे.

Last Updated : Nov 22, 2023, 11:00 PM IST

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