भोपाल : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड गैस ने जो तबाही मचाई थी, उसके निशान आज 37 साल बाद भी मिटे नहीं हैं. इनके घाव अभी भी हरे हैं. गैस पीड़ित परिवारों का कहना है कि चौथी पीढ़ी में जन्म देने वाला शिशु भी मां के गर्भ से ही इस त्रासदी की याद लिए जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो रहे हैं. पीड़ितों को मुआवजा, इलाज आदि पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं.
बच्चों में अभी भी दिखते हैं 37 साल पुराने जख्म
भोपाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास के लिए निजी तौर पर काम कर रहे पुनर्वास केंद्रों में पिछले 2 सालों में जन्मे बच्चे अभी भी पहुंच रहे हैं. अकेले चिनगारी ट्रस्ट पुनर्वास केंद्र में कोरोना काल के दौरान 0 से लेकर 2 साल तक के 30 से अधिक बच्चे इन (Wounds of Bhopal Gas Tragedy) दिनों पुनर्वास केंद्र में अपना इलाज करवा रहे हैं. गैस पीड़ित परिवारों के यहां जन्म ले रहे बच्चे मानसिक विकृति के शिकार हैं. कोई सुन नहीं पा रहा, कोई बैठ नहीं पा रहा, कोई चल नहीं पा रहा है. किसी को दौरे पड़ रहे हैं, तो किसी की उम्र थम गई है.
12 साल का आजम अभी भी है विकलांग
12 साल के आजम की मां सूफिया बताती हैं कि मैं और आजम के पिता दोनों ही गैस पीड़ित हैं. जब से यह बच्चा पैदा हुआ है तब से यह विकलांग है. न चल पाता है, न बैठ पाता है. उसको मिर्गी आती है. सूफिया का कहना है कि इलाज कराने में हजारों रुपये खर्च होते हैं. लेकिन शासन और सरकार की तरफ से न तो ऐसे बच्चों के इलाज की कोई व्यवस्था है और न ही पढ़ाई के लिए स्कूल आदि बनाए गए हैं. इसमें इनका क्या कसूर है.
बच्चों की मानसिक विकृति के हैं वैज्ञानिक सबूत
गैस पीड़ितों के बच्चों के लिए पुनर्वास केंद्र चलाने वाली और चिंगारी पुनर्वास केंद्र की मैनेजिंग ट्रस्टी रशीदा बी बताती हैं कि सरकार ने 37 साल में इन बच्चों के लिए कुछ नहीं किया. उनका कहना है कि यह वैज्ञानिक सबूत हैं कि गैस के प्रभाव के चलते दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं. 37 सालों से सरकार खामोश क्यों है. डाउ केमिकल को क्या सरकार बचाना चाहती है.
हम तो कर रहे हैं मदद, सरकार क्या कर रही है
राजधानी में मानसिक एवं शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों और लोगों के लिए 4 संस्थाएं काम कर रही हैं. इनमें से दो गैस पीड़ित परिवारों और उसके बच्चों के इलाज, जांच, स्पेशल एजुकेशन के साथ साथ विभिन्न थेरेपी देने का काम कर रहे हैं. इनमे चिंगारी पुनर्वास केंद्र में इन दिनों 1118 बच्चे रजिस्टर्ड हैं. इनमें जीरो से लेकर 2 वर्ष के करीब 31 बच्चे हैं. ऐसे बच्चों के लिए फिजियोथैरेपी, स्पीच थेरेपी ,एक्यूप्रेशर थेरेपी भी दी जाती है. सद्भावना ट्रस्ट गैस पीड़ितों के इलाज के लिए काम करता है. यहां पर गैस पीड़ितों का इलाज और निशुल्क दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं.