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समय के साथ बदल रही है भिटौली की परंपरा

उत्तराखंड को लोक संस्कृति व लोक पर्वों के लिए जाना जाता है. फूलदेई, घुघुतिया संक्रांति जैसे कई महत्वपूर्ण पर्वों से उत्तराखंड की नई पहचान भी है. इनमें से एक त्योहार लोक संस्कृति पर आधारित भिटौली भी है. बदलते दौर में भिटौली की परंपरा बदल रही है और अब ऑनलाइन हो गई है.

भिटौली की परंपरा
भिटौली की परंपरा

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Published : Apr 10, 2021, 1:43 AM IST

देहरादून : देवभूमि उत्तराखंड को लोक संस्कृति व लोक पर्वों के लिए जाना जाता है. फूलदेई, घुघुतिया संक्रांति जैसे कई महत्वपूर्ण पर्व उत्तराखंड की पहचान हैं. इनमें से एक त्योहार लोक संस्कृति पर आधारित भिटौली है. ये पर्व एक परंपरा की तरह चैत्र महीने में मनाया जाता है. हर विवाहिता इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करती हैं. इस पर्व में महिलाएं अपने मायके से आने वाली भिटौली यानी (पकवान, मिठाई, कपड़े, आभूषण) की सौगात का इंतजार पूरे साल करती हैं.

भिटौली पाने वाली हल्द्वानी की गीता भट्ट कहती हैं कि भिटौली का उनको हर साल इंतजार रहता है. हर साल उनके मायके वाले उनको भिटौली पहुंचाते हैं. इस बार उनकी बुजुर्ग मां खुद उनके यहां भिटौली लेकर पहुंची.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

उत्तराखंड का भिटौली पर्व भाई-बहन और मायके के अटूट प्रेम को दर्शाता है. चैत की शुरूआत होते ही बेटियों को अपने भटौली का इंतजार शुरू हो जाता है. लेकिन आज के ऑनलाइन जमाने में उत्तराखंड का ये भिटौली पर्व भी ऑनलाइन की भेंट चढ़ रही है. शहर के अधिकतर क्षेत्रों में रहने वाली बहनों और बेटियों को अब भाई और पिता ऑनलाइन सुविधा के जरिए ही भिटौली भेज रहे हैं.

बदलते दौर में भिटौली की परंपरा भी अब ऑनलाइन हो गई है. शहरों में तो भाई और पिता अपनी बहनों और बेटियों को ऑनलाइन भिटौली और नगदी भेज रहे हैं. जिसके कारण भिटौली पर्व की संस्कृति अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. अब जरूरत है तो नई पीढ़ी को भिटौली संस्कृति का असली मतलब समझाने की, भिटौली के महत्व को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की.

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क्या है भिटौली ?

भिटौली का सामान्य अर्थ है भेंट या मुलाकात. उत्तराखंड की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, पुराने समय में संसाधनों की कमी, व्यस्त जीवन शैली के कारण महिलाओं को लंबे समय तक मायके जाने का मौका नहीं मिलता था. ऐसे में चैत्र में मनाई जाने वाली भिटौली के जरिए भाई अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे भेंट करता था.उपहार स्वरूप पकवान लेकर उसके ससुराल पहुंचता था. भाई-बहन के इस अटूट प्रेम और मिलन को ही भिटौली कहा जाता है. सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी निभाई जाती है. इसे चैत्र के पहले दिन फूलदेई से पूरे महीने तक मनाया जाता है.

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