कोरबा :कहते हैं कि एक अकेला व्यक्ति बदलाव नहीं ला सकता. इसके लिए संगठित प्रयास की जरूरत होती है. लेकिन महाराष्ट्र के भाऊसाहेब (Bhausaheb) शायद इन कहावतों पर विश्वास नहीं करते. इसलिए तो वह साइकिल से ही 5 बार पूरे भारत का भ्रमण कर चुके हैं और यह भ्रमण वह किसी शौक के लिए नहीं करते, बल्कि समाज को जागरूक (society aware) करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं. भाऊसाहेब दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ (against practice of dowry) लोगों को जानकारी देते हैं. लोगों से बातचीत करते हैं और कहते हैं कि समाज के सर्वनाश के पीछे का मुख्य कारण दहेज है. इसलिए इसे हमेशा के लिए बंद करना होगा.
कोरबा से जाएंगे जबलपुर
भाऊसाहेब हाल ही में कोरबा पहुंचे हैं. वह कहते हैं कि इससे पहले मैं पांच बार पूरे देश का भ्रमण कर चुका हूं. कोरबा में आए उन्हें 2 से 3 दिन का समय बीत चुका है. इस समय वह टीपी नगर के गुरुद्वारे में ठहरे हैं. जहां उनके ठहरने और खाने-पीने का प्रबंध गुरुद्वारा की ओर से ही किया गया है.
दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ मुहिम चला रहे भाऊसाहेब. भाऊसाहेब का अगला पड़ाव मध्य प्रदेश का जबलपुर है. भाऊसाहेब ने कोरबा प्रवास के दौरान एनटीपीसी, सीएसईबी और बालकों प्रबंधन के उच्च अधिकारियों से भी भेंट की. उन्हें अपने मकसद के विषय में बताया और लोगों को जागरूक करने के लिए कोई प्लान बनाने का अनुरोध किया है.
दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ लोगों को जागरुक कर रहे भाऊसाहेब. भाऊसाहेब बताते हैं कि साइकिल ही उनका घर है. साइकिल पर उनका सारा सामान रखकर चलते हैं फिर चाहे वह हेलमेट हो, रोजमर्रा की जरूरतों की अन्य सामग्री या फिर कपड़े और डॉक्यूमेंट. भाऊसाहेब की साइकिल पर हमेशा 80 किलो तक का सामान लदा रहता है. भाऊसाहेब लोगों को जागरुक करने का प्रयास कर रहे हैं. वह आपनी साइकिल के सामने नेम प्लेट की तरह अपना नाम लिखकर और दो तिरंगे झंडे भी लगाए हुए हैं. भारत भ्रमण के पीछे भाऊ साहब का सिर्फ एक ही मकसद है. लोगों को दहेज, भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा के खिलाफ जागरूक करना.
आखिर कहां से हुई शुरुआत
भाऊसाहेब बताते हैं कि ऐसा करने का कारण उन्हें अपने परिवार से ही मिला. सन् 1993 में वह अपने परिवार से ही एक रिश्ता लेकर गए थे, तब उनसे दहेज की मांग की गई. दहेज लोभियों के व्यवहार से भाऊसाहेब बेहद आहत हुए और उसी दिन ठान लिया कि वह दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ अपने स्तर पर बदलाव लाने का प्रयास करेंगे. फिर भाऊसाहेब ने तय किया कि साइकिल पर ही पूरे देश का भ्रमण कर अलग-अलग हिस्सों में जाएंगे और लोगों से बातचीत करेंगे. जितना हो सके इस प्रथा को बंद करने का आह्वान करेंगे और लोगों से बातचीत करेंगे.
1993 से ही भाऊसाहेब देश का भ्रमण कर रहे हैं. तब वह महज 20 साल के थे, शादी नहीं कि इसलिए परिवार भी नहीं है. अब तक उन्होंने पांच बार पूरे देश का भ्रमण पूरा कर लिया है. भाऊसाहेब कहते हैं कि जब तक शरीर में जान है और साइकिल साथ देगी तब तक वह इसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में घूम कर लोगों को जागरूक करते रहेंगे. वह कहते हैं कि अकेले बदलाव लाना संभव नहीं है. इसके लिए समाज को एकजुट होना होगा. लेकिन अपने स्तर पर वह जितना कर सके. उतना प्रयास जरूर करते रहेंगे.
गुरुद्वारा कमेटी ने भी की तारीफ
भाऊसाहब का कोई घर नहीं है. मोबाइल फोन भी साथ नहीं रखते, ना कोई बैंक बैलेंस है, ना प्रॉपर्टी है. ऐसे में ठहरने की भी समस्या होती है. भाऊ साहब बारहवीं तक पढ़े लिखे हैं और किसी पढ़े लिखे व्यक्ति की तरह ही व्यवहार करते हैं. उनके मकसद और जज्बे को देख गुरुद्वारा कमेटी ने उन्हें ठहरने का स्थान दिया. भाऊसाहेब 3 से 4 दिन तक गुरुद्वारा में ठहरे जहां उनके लिए सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त कराई गई. गुरुद्वारा कमेटी के सदस्यों ने भी भाऊसाहेब की तारीफ की और कहा कि वह अच्छा काम कर रहे हैं. लोगों को उनका साथ देना चाहिए.
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