नई दिल्ली:आईपीसी और सीआरपीसी का स्थान लेने वाले केंद्रीय कानूनों को अपनाने के लिए गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की शुक्रवार हुई अहम बैठक भले सफल नहीं हुई. बावजूद इसके भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 संहिता में संशोधन के लिए 46 अहम बदलाव लाने का इरादा रखती है. इसके अंतर्गत बीएनएसएस सीआरपीसी 1973 को निरस्त करने का प्रस्ताव करने के अलावा अपराध की जांच में प्रौद्योगिकी और फोरेंसिक विज्ञान के उपयोग और इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से सूचना देने और दर्ज कराने, सम्मन की सेवा आदि का प्रावधान करना है. साथ ही समयबद्ध जांच, सुनवाई और निर्णय सुनाने को लेकर भी विशिष्ट समय सीमाएं तय की गई हैं.
इतना ही नहीं बीएनएसएस में पीड़ित को प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति और उन्हें डिजिटल माध्यमों सहित जांच की प्रगति के बारे में सूचित करने के लिए नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया गया है. ईटीवी भारत के पास मौजूद ड्राफ्ट बीएनएसएस कॉपी में कहा गया है कि ऐसे मामलों में जहां सजा सात साल या उससे अधिक है, सरकार द्वारा ऐसे मामले को वापस लेने से पहले पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा. साथ ही छोटे और कम गंभीर मामलों के लिए समरी ट्रायल अनिवार्य कर दिया गया है. वहीं आरोपी व्यक्तियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पूछताछ की जा सकती है. इसके अलावा मजिस्ट्रेट प्रणाली को भी सुव्यवस्थित किया गया है. सीआरपीसी में 484 धाराएं हैं जबकि बीएनएसएस जिसे सीआरपीसी के स्थान पर प्रस्तावित किया गया है, उसमें 533 धाराएं हैं. इसमें अपने पूर्ववर्ती से 160 अनुभागों में बदलाव के अलावा 9 नए अनुभाग जोड़ने और 9 अन्य को हटाने का प्रस्ताव है.
इसी कड़ी में हाल ही में समिति के सामने गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने एक प्रस्तुति दी थी. इसमें आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधन के लिए प्रस्तावित संहिता में महत्वपूर्ण बदलावों पर प्रकाश डाला गया था. साथ ही बीएनएसएस ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट और मेट्रोपॉलिटन एरिया जैसे ब्रिटिश-युग के पदनामों को समाप्त करके अदालत संरचना के आधुनिकीकरण के बारे में भी बात की थी. बीएनएसएस में अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तनों में गिरफ्तार व्यक्तियों की जानकारी के लिए नामित पुलिस अधिकारियों का भी उल्लेख किया गया है. मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीएनएसएस आम जनता को गिरफ्तार व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए प्रत्येक जिले और पुलिस स्टेशन में नामित पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति को अनिवार्य करता है. संहिता के अनुसार चिकित्सकों को गिरफ्तार व्यक्तियों की तुरंत जांच करने और जांच रिपोर्ट जांच अधिकारी को भेजने की आवश्यकता है. इसमें यह भी प्रावधान है कि किसी महिला की गिरफ्तारी की जानकारी उसके रिश्तेदारों, दोस्तों या नामित व्यक्तियों को दी जानी चाहिए.