आरसेप में शामिल होने पर हमारा मौन शायद यहीं से आता है. टोरंटो में मौजूद G8 संस्थान के जॉन किर्टन ने हाल ही में, इसी रोल के बारे में कहा है. कनाडा के पीएम ट्रूडो की बायोग्राफी लिखने वाले, जॉन इंग्लिश ने इस बारे में भारत और चीन के रोल के बारे में लिखते हुए कहा है कि, भारत अपने हितो की पूरी रक्षा होने की सूरत में ही इस मामले में रुचि दिखाएगा. सामरिक पृष्ठभूमि में ये मामला भी गुवाहाटी की वार्ता में अहम रहेगा.
मौजूदा हालातों में हमारे जापान के साथ संजीदा आर्थिक हित जुड़े हैं. अगर जापान को हमारे निर्यात की बात करें, तो भारतीय विदेश मंत्रालय को व्यापार में बराबरी न होने के बारे में बात करने की जगह, जापान के खाद्य और रॉ मटीरियल के बाजार में अपना वर्चस्व बढ़ाने की तरफ ध्यान देना चाहिए.
जापान की अर्थव्यवस्था अपनी मजबूत स्थिति की तुलना में संसाधनों की कमी में रहने वाली अर्थव्यवस्था है. उदाहरण के लिये, हम जापान को चावल निर्यात करते हैं और जापान चावल का एक बड़ा आयातक है. जापान अपने धरेलू उत्पादकों को एक क्विंटल पर 30 हजार रुपये की सबस्डी देता है. जापान में ज्याजदातर चिपकने वाले चावल खाए जाते हैं. अगर हम जापान से लंबे समय के करार कर लें, तो हमारे वैज्ञानिक जापान में खाये जाने वाले चावलों की किस्म आसानी से विकसित कर सकते हैं और इसे उगाने के लिये हम करीब आधा मिलियन एकड़ जमीन अलग कर सकते हैं. इस तरह और कई मसौदे पेश किये जा सकते हैं. ध्यान रहे कि भारत ने चाहे प्लैनिंग कमीशन को खत्म कर दिया है, लेकिन जापान में अभी भी उसी की तर्ज पर 'मीती' नाम का संस्थान सामरिक रणनितियों पर काम करता है.
जापानी काम करने के तरीके का एक बड़ा पहलू है, समय का किफायती इस्तेमाल करना. आर्थिक मंदी के इस दौर में भारत के लिये यह काफी फायदेमंद हो सकता है. विश्व बैंक और बाकी संस्थान, किसी भी प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में काफी समय लेते हैं. नर्मदा प्लैनिंग ग्रुप के अध्यक्ष और ऊर्जा मंत्री के तौर पर, जापान के साथ मेरा निजि अनुभव काफी अच्छा रहा, और ये बात साफ थी कि निर्णय लेने में जापानी काफी तेजी दिखाते हैं. किसी भी काम के लिये वो जानकारों को भेजते हैं, रिपोर्ट तैयार करते हैं और तुरंत उस पर काम शुरू कर देते हैं. हर तिमाही में कम होती ब्याज दरों के दौर में हमे इसी की जरूरत है. पानी और ऊर्जा के क्षेत्र मे परियोजनाओं में जापान के साथ साझेदारी भारतीय अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचा सकती है. मेरे पसंदीदा भविष्य की परियोजनाओ में से एक, केवडिया में, विश्व स्तरीय वॉटर नोलेज सेंटर है. मुझे पूरा यकीन है कि जापानी इस तरह की परियोजना में निवेश करेंगे और विकासशील देशों के लिये यह केंद्र काफी मददगार साबित होगा.