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कश्मीर की स्थिति पश्चिम एशिया के साथ बातचीत का मुद्दा नहीं है: राजदूत त्रिगुणायत

भारत सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लिए हुए एक साल हो गया है.5 अगस्त, 2019 को उठाये गए इस कदम ने दुनिया को अचंभित कर दिया, पाकिस्तान जैसा दुःशील देश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत के खिलाफ इस कदम की घोर भर्त्सना करने के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास में लग गया.

Kashmir is no longer negotiated Asia
कश्मीर की स्थिति पश्चिम एशिया के साथ बातचीत का मुदा नहीं

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Published : Aug 5, 2020, 8:47 AM IST

Updated : Aug 5, 2020, 10:41 AM IST

भारत सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लिए हुए एक साल हो गया है और इसके साथ ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करके सीमावर्ती राज्य को शेष भारतीय संघ के साथ बेहतर ढंग से एकीकृत करने का प्रयास किया है. 5 अगस्त, 2019 को उठाये गए इस कदम ने दुनिया को अचंभित कर दिया, पाकिस्तान जैसा दुःशील देश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत के खिलाफ इस क़दम की घोर भर्त्सना करने के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास में लग गया.

अपनी पूरी ताक़त झोंक देने के बावजूद, ख़ासकर से सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में, किसी भी देश ने भारत की निंदा नहीं की और सऊदी अरब और ईरान और पश्चिम एशिया के अन्य प्रमुख इस्लामी राष्ट्रों और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) से गुहार लगाने के बावजूद, तुर्की और के अलावा पाकिस्तान को बहुत कम समर्थन प्राप्त हुआ.

और फिर कोविड -19 महामारी के प्रकोप का दौर शुरू हुआ और कश्मीर अखबार के पहले पन्ने से गायब हो गया और इसके साथ ही पाकिस्तान को प्राथमिक तौर पर समर्थन देने वाले चीन को विश्व भर की सुर्खियों में आ गया और उसे घोर अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना भी करना पड़ा.

राजदूत अनिल त्रिगुणायत, जो लीबिया और जॉर्डन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और पश्चिम एशिया उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र को अच्छी तरह से जानते हैं, का मानना है कि जम्मू और कश्मीर में धारा 370 को हटाने से इस क्षेत्र के साथ भारत के सबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है. ईटीवी भारत के साथ एक बातचीत में, उन्होंने कहा, इससे ण केवल भारत को कोई क्षति हुई है और न ही ये किसी अन्य देश से बातचीत का कोई मुद्दा है बल्कि इसके बाद से संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों ने भारत में अपने को पहले से ज्यादा बढ़ाया है.

साक्षात्कार के कुछ अंश:

प्रश्न: पश्चिम एशियाई क्षेत्र हमेशा भारत की विदेश नीति का केंद्र रहेगा, एक सबसे बड़े बाजार के रूप में, या ऊर्जा का आपूर्तिकर्ता की भूमिका में या फिर एक बड़े भारतीय प्रवासी द्वारा भेजे जाबे वाले प्रेषण का स्रोत के तौर पर. मौजूदा कोविड-19 महामारी के परिपेक्ष में इस क्षेत्र, विशेष रूप से खाड़ी के साथ भारत के संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? इस बदले हुए दौर में वैश्विक कूटनीति के लिए किस तरह का सहयोग प्राप्त हो रहा है?

राजदूत अनिल त्रिगुणायत: मेरे विचार में, पश्चिम एशिया-जो कि हमारा विस्तारित पड़ोस है, हमारे लिए भारतीय प्रवासियों के कल्याण, व्यापार और समुद्री मार्ग और सुरक्षा, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के लिए सामरिक और अभूतपूर्व महत्व का है क्योंकि हम इस क्षेत्र पर हाइड्रोकार्बन के लिए मध्यवर्गीय तौर पर निर्भर रहेंगे.

जबकि बड़ी संख्या में भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, खाड़ी के सहयोगी देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब, यूएई और कतर, ने भारतीय विकास के सफ़र में और बाजार में अपने स्वयं के रणनीतिक दांव के संदर्भ में भारत में अपने निवेश को बढ़ाया है. सऊदी अरब ने हाल ही में जिओ के प्लेटफार्मों में निवेश किया है और वे रिलायंस इंडस्ट्रीज में लगभग 20 बिलियन डॉलर के निवेश करने की उम्मीद कर रहे हैं. यूएई ने स्पेक्ट्रम में निवेश के लिए $ 75 बीएन प्रतिबद्ध किया है. यहां तक कि कोविड -19 के समय में भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री (सुब्रह्मण्यम) जयशंकर ने क्षेत्र में अपने समकक्षों से बात की और रैपिड रिस्पांस टीमों की तैनाती सहित चिकित्सा सहायता प्रदान की.

जीसीसी सरकारों की सहायता से लगभग 4 लाख भारतीयों को वंदे भारत मिशन के तहत वापस लाया गया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि डिजिटल कूटनीति में भारत का नेतृत्व भी फल फूल रहा है जब पीएम मोदी ने सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान से बात करके वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिए वर्चुअल जी 20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, विशेष रूप से कोविद -19 महामारी से लड़ने पर और उसके विश्व अर्थव्यवस्था पर हो रहे प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए एक संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय प्रयास का निर्माण किया.

इज़राइल के साथ हमने कोविद -19 वैक्सीन के साथ-साथ उन्नत परीक्षण किट और अनुरेखण प्रौद्योगिकियों के लिए काम करने में निकट सहयोग शुरू किया. वास्तव में, अगर कोई इसका स्वोट विश्लेषण करे तो मुझे लगता है कि भारत की पश्चिम नीति, वास्तविक उत्पादन और रक्षा एवम सुरक्षा क्षेत्रों सहित रणनीतिक उद्देश्यों के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की सबसे अधिक उत्पादक विदेश नीति की सफलता है.

प्रश्न: कौशिक बसु, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार, ने हाल ही में कहा था कि " भारत ने 70 वर्षों में जो कुछ भी कमाया था उसे धार्मिक कट्टरता के कारण खो रहा है." पश्चिम एशिया के देश आत्याधिक रूप से इस्लामी हैं. क्या आप कहेंगे कि इस तरह के बयान के पीछे कोई ठोंस तथ्य है, विशेष रूप से इस क्षेत्र के देशों के साथ हमारे संबंधों के संदर्भ में? यह विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निराकरण की पहली वर्षगांठ के संदर्भ में है, जिसने मुस्लिम देशों और यहां तक कि इस्लामी देशों के संगठन में काफी आक्रोश पैदा किया है?

राजदूत अनिल त्रिगुणायत: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम राष्ट्र है और इस्लाम कई अरब देशों तक पहुँचने से पहले ही यहाँ पहुँच गया था. मुस्लमान भारत की विकास गाथा के अभिन्न अंग हैं. आधिकारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष भारत में वे विशाल सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गए हैं, वे राष्ट्रपति, उपाध्यक्ष, मुख्य न्यायाधीश, वैज्ञानिक या सैन्य अधिकारी या बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेता हैं. वे पहले भारतीय हैं.

मेरे विचार में, इस्लामी दुनिया के साथ काम करते समय यह हमारा बात करने का मुख्य बिंदु होना चाहिए. हालांकि, कुछ ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा दिए जाने वाले गैर-जिम्मेदार और ढुलमुल बयानों के कारण अक्सर सोशल मीडिया पर एक तूफ़ान सा आया रहता है और इसे कानून के अनुरूप सख्ती से निपटा जाना चाहिए. विश्व भर में हमारे देश के प्रति जो जबरदस्त सद्भावना है, हम उसे खोने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.

बेशक, धारा 370 के संबंध में, पश्चिम एशिया के अधिकांश नेता, विशेष रूप से द्विपक्षीय रूप से, भारत के संप्रभु निर्णयों के प्रति बहुत अधिक समझदारी दर्शाई. लेकिन इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के बयानों में कोई वास्तविक तथ्य नहीं है, सिवाय पाकिस्तान द्वारा खड़े किए कलह के.

प्रश्न: इस क्षेत्र में या कहीं और भी दिखाई देने वाली आर्थिक मंदी से भारत कितनी बुरी तरह प्रभावित हुआ है?

राजदूत अनिल त्रिगुणायत: कोविड -19 ने चीजों की वैश्विक योजना में अप्रत्याशित व्यवधान पैदा कर दिया है. लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएं मंदी के दौर से गुजर रही हैं और क्षितिज पर वापस अपनी जगा पर आने में अभी कुछ समय लगेगा. तेल उत्पादक पश्चिम एशियाई देश और भारत भी इन परिस्थितियों से अछूते नहीं हैं. लंबे समय से चल रही तेल की कम कीमतों और मांग के संकुचन के कारण पश्चिम एशिया पर कहीं अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इतिहास में पहली बार तेल का दाम शून्य के नीचे दर्ज हुआ है. अधिकांश तेल उत्पादक देशों ने अपने बजट को 70 डॉलर प्रति बैरल पर आंका है, लेकिन मौजूदा कीमतें इससे भी नीचे हैं. इसलिए कई देशों को अपनी बड़ी परियोजनाओं को रद्द करना पड़ा और सार्वजनिक व्यय और संसाधनों को महामारी से लड़ने के लिए पुनः प्रेषित कर दिया गया.

हालांकि, मेरा मानना है कि चूंकि खाड़ी देशों में भारतीय कार्यबल को आम तौर पर स्थानीय लोगों द्वारा पसंद किया जाता है और भरोसेमंद माना जाता है, इसलिए जैसे ही जीसीसी की स्थिति में सुधार होगा, वे भारतियों को दोबारा रोजगार देने के लिए पहले प्राथमिकता देंगे.

(निलोवा रॉय चौधरी द्वारा लिखित)

Last Updated : Aug 5, 2020, 10:41 AM IST

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