हैदराबाद : साल 2019 में जिन खबरों को लेकर सबसे अधिक विवाद रहा, उसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 यानि सीएए की खबर रही.दिसंबर महीने में कानून बनने के बाद सीएए को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन जारी है. केन्द्र सरकार ने इसे संसद से पारित तो करा लिया, लेकिन उस तनिक भी अंदाजा नहीं रहा होगा, कि इस कानून को लेकर इतना उग्र प्रदर्शन होगा.
देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए विरोध के परिणामस्वरूप 20 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी मुख्य रूप से दो आपत्तियां हैं. पहला ये कि ये संविधान सम्मत नहीं है और दूसरा ये है कि कानून अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. यह अनुच्छेद देश में सभी को बराबरी का अधिकार देता है.
हालांकि, गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 14 के आधार पर विरोध को सही नहीं ठहराया है. उन्होंने कहा कि हम रिजनेबल रेस्ट्रिकशन लगाकर कानून बना सकते हैं. शाह ने कहा कि पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक, धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं.
सीएए को लेकर एक सच्चाई ये भी है कि इस कानून को लेकर लोगों के पास सही जानकारी का अभाव है. विरोध करने वालों को या तो भ्रमित किया जा रहा है या फिर उन्हें उकसाया जा रहा है.
खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बात को दोहराया है. उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित एक रैली में कहा कि सीएए का विरोध कर रहे लोगों के इरादे राष्ट्र विरोधी हैं.
गृह मंत्रालय ने इस विषय पर कई सवालों के जवाब दिए हैं. मुस्लिमों को लेकर भी तरह-तरह की आशंकाएं जाहिर की गईं. कहा गया है कि इससे नागरिकता छीन ली जाएगी, लेकिन गृह मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बाद ये साफ हो गया है कि सीएए कानून में नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है.
कानून से जुड़े कुछ अहम जवाब
सरकार ने कहा है कि संशोधित नागरिकता कानून किसी भी भारतीय को प्रभावित नहीं करता है. ये कानून हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई विदेशियों पर लागू होता है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में 31 दिसंबर, 2014 तक धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर चुके हैं.
सरकार ने कहा है कि तीनों पड़ोसी देशों के मुस्लिम लोगों को भी भारत की नागरिकता दी जा सकती है. इसके लिए नैचुरलाइजेशन के प्रावधान में कोई बदलाव नहीं किया गया है.