रायपुर : छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया ये दो ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सुनते ही जेहन में उन भोले वाले आदिवासियों के चेहरे सामने आ जाते हैं, जिन पर प्रदेश को गर्व है. इनकी अपनी संस्कृति, भाषा और संस्कार हैं. इन आदिवासियों की खास विशेषता है- इनका सामूहिक जीवन, सामूहिक उत्तर दायित्व और भावात्मक संबंध.
गौरतलब है, छत्तीसगढ़ में कई जातियां और जनजातियां निवास करती हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है.
विश्व आदिवासी दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ में रहने वाले उन लोगों से रू-ब-रू कराएंगे, जिनका दीदार करते ही आप बस्तर और सरगुजा पहुंच जाएंगे, जहां आदिवासियों ने अपनी परंपराओं को सहेज कर रखा है. शायद यही वजह है कि ये दोनों संभाग छत्तीसगढ़ की 'जान' सा प्रतीत होते हैं. इनमें से गोंड सबसे बड़ा समूह है, जो प्रदेश में लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं.
इसके बाद कंवर, हल्वा, भतरा, उरांव और बींझवार प्रमुख बड़े आदिवासी समूह हैं. प्रदेश के बैगा, अबूझमाड़िया, कमार, बिरहोर और पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी आदिवासी जातियां हैं. कंवर, बिंझवार, उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा अन्य प्रमुख जनजातियां हैं. पहाड़ी कोरवा को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है.
आदिवासियों का अलग रंग, अलग संस्कृति
यूं तो पूरे प्रदेश में आदिवासी रहते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा की पहचान ही यहां रहने वाले आदिवासी हैं. जिनका रहन-सहन, वेशभूषा आम लोगों से बिल्कुल अलग है. आज सूट-बूट वाले जमाने में भी आदिवासी अपने पहनावे में रहना पसंद करते हैं. कपड़े, गहने, खान-पान, तीज-त्योहार सबकुछ अलग और शायद इसी वजह से हमारी उत्सुकता भी इन्हीं में घर किए रहती है.
जंगलों में रहते हैं बैगा
प्रदेश में बड़ी संख्या में धनुहार जनजाति के लोग रहते हैं. इन्हें लोधा और बैगा कहा जाता है. ये लोग ज्यादातर जंगल में रहना पसंद करते हैं. इस जनजाति के प्रमुख नृत्यों में बैगानी करमा, दशहरा या बिलमा तथा परधौनी नृत्य है. इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर घोड़ा पैठाई, बैगा झरपट तथा रीना और फाग नृत्य भी करते हैं.
संस्कृति की धनी हैं गोंड जनजाति
छत्तीसगढ़ के दक्षिण इलाके की प्रमुख जनजाति गोंड है. जनसंख्या की दृष्टि से बात करें तो ये लगभग पूरे अंचल में फैले हुए है और सबसे बड़ा आदिवासी समूह कहलाते हैं. अगर ये कहें कि इन्होंने ही सबसे सुंदर संस्कृति विकसित की है तो ये गलत नहीं होगा. नृत्य और संगीत इनका प्रमुख मनोरंजन है. बस्तर की गोंड जनजाति अपने सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन के लिए सबका ध्यान आकर्षित करती है. ये लोग व्यवस्थित रूप से गांवों में रहते हैं. कृषि करते हैं और इनकी कृषि प्रथा डिप्पा कहलाती है.
बस्तर की मुरिया जनजाति-
बस्तर की मुरिया जनजाति सौंदर्य, कला और परंपरा के लिए जानी जाती है. इनके मांदरी और गेड़ी नृत्य को कौन नहीं जानता है. मुरिया जनजाति के जातिगत संगठन में युवाओं की गतिविधि के केंद्र घोटुल का प्रमुख नृत्य है, इसमें स्त्रियां हिस्सा नहीं लेती. ककसार धार्मिक नृत्य-गीत है. नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल और लोहे की घंटियां बांधे रहते हैं साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर वे नृत्य करते हैं.