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जानिए विश्व की नदियों का इतिहास, इसपर निर्भर है हमारा जीवन

भारतीय जनजीवन में नदियों का महत्व इसी से जाना जा सकता है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, पर्यटन, स्वास्थ्य, कृषि, शैक्षिक, औषधि, पर्यावरण और न जाने कितने क्षेत्र हैं जो हमारी नदियों से सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं. नदियों की देखभाल करने और जागरूकता फैलाने के लिए विश्व नदी दिवस मनाया जाता है. इस बार विश्व नदी दिवस 27 सितंबर को मनाया जा रहा है.

WORLD RIVERS DAY
विश्व नदी दिवस

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Published : Sep 27, 2020, 6:00 AM IST

नई दिल्ली: विश्व नदी दिवस सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है. नदियों के महत्व के प्रति जागरूकता के लिए विश्व नदी दिवस मनाए जाने की शुरुआत की गई. साल 2005 में इसकी शुरुआत हुई. इस बार यह 27 सितंबर को है. इस अवसर पर आप भी अपनों को नदियों का महत्व बताते संदेश शेयर कर सकते हैं.

विश्व नदी दिवस का इतिहास

  • 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने जल संसाधनों की देखभाल करने और जागरूकता फैलाने के लिए जीवन दशक के लिए पानी (वाटर फॉर लाइफ डीकेड) का शुभारंभ किया.
  • 2005 में बड़ी सफलता के बाद कई देशों ने विश्व नदी दिवस मनाना शुरू किया.
  • हर साल 60 से अधिक देशों में नदियों को स्वच्छ रखने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
  • इस वर्ष विश्व नदी दिवस का थीम नदियों के लिए कार्य का दिन है, जो नदियों की रक्षा और प्रबंधन के लिए महिलाओं की भूमिका को दिखाएगा.

नदियों के तथ्यों पर एक नजर

दुनिया की तीन सबसे लंबी नदियां

  • अफ्रीका की नील नदी का जल 11 देशों में जाता है.
  • दक्षिण अमेरिका की अमेजन नदी दुनिया में सबसे चौड़ी नदी है.
  • चीन में यांग्त्जी नदी को चांग जियांग या यांगजी कहा जाता है. यह एशिया की सबसे लंबी नदी है और यह पूरी तरह से एक देश के भीतर बहती है.
  • अफ्रीका की कांगो नदी जाइरे नदी भी कहलाती है. कांगो नदी अफ्रीका की सबसे गहरी नदी है.
  • अमेजन नदी की सहायक नदी रियो नीग्रो दुनिया की सबसे बड़ी काली नदी है.
  • भारत की गंगा नदी को ऐतिहासिक महत्व के कारण सबसे पवित्र नदी माना जाता है. हिंदू धर्म में देवी गंगा की पूजा की जाती है.
  • नदी कैनो क्रिस्टेल्स कोलंबिया से होकर बहती है, जिसे रिवर ऑफ फाइव कलर्स या लिक्विड रेनबो के रूप में जाना जाता है. यह अपने आकर्षक रंगों के कारण दुनिया की सबसे खूबसूरत नदी है.

पानी की कमी

भारत के कई हिस्से पानी की कमी का सामना कर रहे हैं, जबकि सरकार ने माना है कि भारत पानी की कमी वाला देश नहीं है, लेकिन जल संसाधनों और विकास परियोजनाओं की निगरानी में कमी के कारण यह समस्या हो रही है.

अध्ययन के अनुसार कुल जलग्रहण क्षेत्र भारत में 20 नदी घाटों पर 32,71,953 वर्ग किलोमीटर था. अध्ययन के अनुसार सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में पानी की उपलब्धता में कमी है, जबकि बाकी घाटियों में पानी की उपलब्धता में वृद्धि हुई है. देश के 20 घाटियों के औसत वार्षिक जल संसाधन का आकलन 1999.20 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के रूप में किया गया है.

पिछले कुछ वर्षों में देश के कई हिस्सों में सूखे और कई पहाड़ी और महानगरीय क्षेत्रों में पानी की कमी ने भारत के सामने आने वाले तनाव पर बहुत ध्यान केंद्रित किया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1947 में भारत की आजादी के बाद से पानी की उपलब्धता में गिरावट आई है. उदाहरण के लिए 2025 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,341 क्यूबिक मीटर होने की उम्मीद है.

मौजूदा जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए उपलब्ध प्रौद्योगिकियों और संसाधनों का उपयोग करके संकट को रोकने के लिए आवश्यक है, उन्हें उपयोगी रूप में परिवर्तित करें और कृषि, औद्योगिक उत्पादन और मानव उपभोग के लिए भी उपयोग करें.

भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण योजना

जल शक्ति मंत्रालय

मई 2019 में पानी के मुद्दों से निपटने के लिए बनाया गया है. मंत्रालय में दो विभाग शामिल हैं, जल संसाधन नदी विकास और गंगा कायाकल्प विभाग (DoWR, RD & GR) और पेयजल और स्वच्छता विभाग (DoDW & S)

जल शक्ति अभियान

भारत सरकार ने जल शक्ति अभियान (JSA) की शुरुआत की. भारत के 256 जिलों में पानी की उपलब्धता में सुधार करने के लिए किया था.

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी), अब तक देश के 16 राज्यों के 77 शहरों में 34 नदियों के प्रदूषित फैलाव के साथ .870.54 करोड़ रुपये की स्वीकृत लागत के साथ है. केंद्र ने 2510.63 करोड़ विभिन्न प्रदूषण उन्मूलन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकारों को जारी किए थे.

एमआरसीपी के तहत 2522.03 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रति दिन) की एक सीवेज उपचार क्षमता (STP) बनाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न नदियों में प्रदूषण में कमी आई है.

नमामि गंगे कार्यक्रम

इस कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेप शामिल हैं, जैसे सीवेज औद्योगिक अपशिष्ट उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि, रिवर फ्रंट प्रबंधन, अविरल धारा, ग्रामीण स्वच्छता, वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण दिसंबर 2019 तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 310 परियोजनाओं को 28,909.59 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मंजूरी दी गई थी. जिसमें से 114 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं. बाकी परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं. वित्त वर्ष 2018-19 के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के लिए अंतिम आवंटन 2,370.00 करोड़ था. अब तक का कुल खर्च 8541.86 करोड़ है.

करोड़ों रुपये में व्यय

2014-15 170.99

2015-16 602.60

2016-17 1062.81

2017-18 1625.01

2018-19 2626.54

2019-20 (13.03.2020 तक) 2453.91

लॉकडाउन से नदियों में हुआ सुधार

  • कोविड -19 भारत में कई नदियों के लिए वेंटिलेटर के रूप में सामने आया है. अध्ययन से गंगा, कावेरी, सतलज और यमुना सहित भारत की नदियों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. लॉकडाउन के कारण नदियों में प्रवेश करने वाले औद्योगिक अपशिष्टों (industrial effluents) में कमी हुई है.
  • वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हरिद्वार के घाटों के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है.
  • लॉकडाउन में पवित्र स्नान करने वाले लोगों के लिए घाटों को भी बंद कर दिया गया था, इसके परिणामस्वरूप पानी दिखने लगा है, जिसमें जलीय जीवन भी दिख रहे हैं.
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की द्वारा हाल के शोध से पता चला कि गंगा नदी का पानी दशकों के बाद पीने के लिए ठीक था.
  • दिल्ली के ज्यादातर हिस्सों में यमुना नदी भी सालों बाद साफ, नीली और प्राचीन दिखाई दे रही है.
  • कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार कावेरी, हेमवती, शिमशा और लक्ष्मणतीर्थ जैसी सहायक नदियों में पानी की गुणवत्ता भी वही हो गई है, जो दशकों पहले हुआ करती थी.
  • बद्ध तालाब में प्रदूषण की मात्रा में भारी गिरावट आई है.

भारत के प्रसिद्ध नदी संरक्षणवादी

राजेंद्र सिंह, वाटरमैन

राजेंद्र सिंह को भारत के वाटरमैन के रूप में जाना जाता है. आयुर्वेदिक चिकित्सक राजेंद्र सिंह ने 1984 में एक सुरक्षित सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना जीवन जल संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने तरुण भारत संघ की शुरुआत की, जिसमें स्वयंसेवकों और सहयोगियों की मदद से 8,600 से अधिक जोहड़ों (जल भंडारण टैंकों) और अन्य जल वार्तालाप संरचनाओं का निर्माण किया. 1,000 से अधिक गांवों में जल संसाधन वापस लाए और राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 12 नदियों को पुनर्जीवित किया. राजेंद्र ने अपने सहयोगी प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के साथ मिलकर यमुना और गंगा जैसी बड़ी नदियों की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया.

मेधा पाटकर

मेधा पाटकर पर्यावरण सक्रियता के लिए मानी जाती है. नर्मदा बचाओ आंदोलन में उनका गहरा हाथ है. नर्मदा नदी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा गुजरात में से बहकर अरेबिअन समुद्र तक पहुंचती है. इस नदी पर काफी सारे छोटे बांध एवं सरदार सरोवर बांध को बनाने की अनुमती सरकार ने दी थी. इस से हजारों आदीवासियों का नुकसान होता, साथ ही साथ किसानों का भी नुकसान हो रहा था. उन से उनकी रहने की जगह छीन लिया जा रहा था. आदिवासियों का विस्थापन हो रहा था और उस के लिए उन्हें मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था. पाटकर उन लोगों में से एक थीं जो इस अन्याय से लड़ रही थीं. अपना पूरा समय नर्मदा नदी पर लगाने के लिए उन्होंने अपनी पी.एच.डी की पढ़ाई छोड़ दी. 1985 में पाटकर ने परियोजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर मार्च और रैलियां शुरू कीं, हालांकि विरोध शांतिपूर्ण था. उन्होंने 1991 में 22-दिन की भूख हड़ताल की थी.

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