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भारत में अंगदान को लेकर कितने जागरुक हैं लोग, जानिए - कोविज-19 के दौरान अंग दान

हर साल 13 अगस्त को विश्व में ऑर्गन डोनेशन डे मनाया जाता है. इस नेक काम से किसी एक व्यक्ति के ऑर्गन (अंग) को किसी जरूरत मंद लोगों को दान किया जाता है. जिससे उसे एक नई जिंदगी प्राप्त होती है. इस ऑर्गन डोनेशन डे पर आइए जानते हैं कि कोविज-19 के दौरान अंग दान करना और ऑर्गन ट्रांसप्लांट करवाना में जोखिम है या नहीं. पढ़ें ईटीवी भारत की खास खबर...

world organ donation day
वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे

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Published : Aug 13, 2020, 11:59 AM IST

Updated : Aug 13, 2020, 7:07 PM IST

हैदराबाद : वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य सामान्य मनुष्यों को मृत्यु के बाद अंगों का दान करने के लिए प्रेरित करना है और अंग दान के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है.

आर्गन डोनेशन को समझने के लिए ऑर्गन ट्रांसप्लांट को समझना सबसे पहले जरूरी है. ट्रांसप्लांट एक मेडिकल प्रोसिजर है जिसमें एक स्वस्थ्य व्यक्ति द्वारा अंगों और टीशुओं को दूसरे रोगग्रस्त व्यक्ति को ट्रांसप्लांट किया जाता है. कुछ मामलों में कहा जाए चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के बाद ट्रांसप्लांट विकल्प है. ट्रांसप्लांट से मरीज के जीवन में काफी सुधार होता है और उसे जीवन का एक और मौका मिलता है, लेकिन ट्रांसप्लांट केवस तभी हो सकता है. जब कोई अपने अंग दान करता है. ट्रांसप्लांट किए गए ज्यादातर अंग मृतक दाताओं के होते हैं वहीं कुछ मरीजों को जिंदा व्यक्तियों से भी अंग दान प्राप्त हो सकते हैं. जीवित व्यक्ति एक किडनी, यकृत, फेफड़े, अग्नाशय, आंतें, रक्त के कुछ हिस्सों को दान कर सकते हैं. हालांकि नियम के अनुसार मृतक दाताओं के अंगों का दान करने का अंतिम निर्णय उनके परिवार को होता है.

नेचुरल कार्डियक डेथ के बाद केवल कुछ ही अंगो/टिशुओं को दान किया जा सकता है (जैसे-कॉर्निया, हड्डी, त्वचा और रक्त वाहिकाएं), जबकि ब्रेन स्टेम मृत्यू के बाद लगभग 37 अलग-अलग अंगों और टिशुओं को दान किया जा सकता है, (जैसे- गुर्दे, हृदय, यकृत और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंग).

ऐतिहासिक योजना...

शोधकर्ताओं ने 18वीं शताब्दी में जानवरों और मनुष्यों पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट का प्रयोग किया. जिसमें कई सालों तक नाकामयाबी मिली, लेकिन 20वीं शताब्दी के मध्य तक वैज्ञानिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने में सफल रहे. जिसके बाद अब किडनी, लिवर, हार्ट, अग्नाशय, आंत, लंग्स ट्रांसप्लांट रुटिन मेडिकल ट्रीटमेंट मना जाता है.

पहले सफल ट्रांसप्लांट के कठिन पड़ाव

1954: किडनी - डॉ. जोसेफ ई. मुर्रे, ब्रिगम एंड वुमन्स्

1966: अग्न्याशय / किडनी -डीआरएस. रिचर्ड लिली, विलियम केली, मिनेसोटा यूनिवर्सिटी

1967: लिवर - डॉ. थॉमस स्टारजल, कोलोराडो यूनिवर्सिटी

1968: अग्न्याशय -डॉ. रिचर्ड लिलेही, मिनेसोटा यूनिवर्सिटी

1968: दिल -डॉ. नॉर्मन शुमवे, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल

1981: दिल / फेफड़े (संयुक्त) -डॉ. ब्रूस रेइट्ज, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल

1983: सिंगल लंग्स - डॉ. जोएल कूपर, टोरंटो जनरल हॉस्पिटल

1986: डबल लंग्स -डॉ. जोएल कूपर, टोरंटो जनरल हॉस्पिटल

1989: लिविंग लिवर - डॉ. क्रिस्टोफ ब्रोल्स्च, शिकागो यूनिवर्सिटी

1990: लिविंग लंगड्र -डॉ. वॉन ए. स्टारनेस, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर

1968 -हार्वर्ड एड हॉक कमेटी द्वारा ब्रेन डेथ की पहली परिभाषा न्यूरोलॉजिकल मानदंडों के आधार पर विकसित हुई.

1968 - बोस्टन के न्यू इंग्लैंड ऑर्गन बैंक पर आधारित पहला ऑर्गन प्रोक्रूरमेंट ऑर्गनाइजेशन (ओपीओ) स्थापित किया गया.

1976 -साइक्लोस्पोरिन की खोज की गई, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने की क्षमता हो, यह ट्रांसप्लांट अंगों की अस्वीकृति को रोकने में मदद करता है.

1983 -खाद्य और औषधि प्रशासन ने साइक्लोस्पोरिन को मंजूरी दी. जिसमें ट्रांसप्लांट के परिणामों को बेहतर बना सकता है क्योंकि इसके प्रतिरक्षात्मक गुण ऑर्गन अस्वीकृति की क्षमता को कम करते हैं.

1990 -नोबेल पुरस्कार डॉ. जोसेफ ई. मुरे और डॉ. ई. डोनाल्ड थॉमस को दिया गया. जो क्रमश: किडनी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट में अग्रणी है. डॉ. जोसेफ ने पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट (1954) में किया था और थॉमस ने पहला बोन मैरो ट्रांसल्पांट (1968) में किया था.

1995 - पहले जीवित डोनर की किडनी को लेप्रोस्कोपिक सर्जिकल तरीकों के माध्यम से हटा दिया गया था. जिसके परिणामस्वरूप डोनर को छोटा चीरा लगाया गया था.

1998 - प्लास्टफेरेसिस को उन रोगियों में किडनी ट्रांसप्लांट को सक्षम करने के लिए पेश किया गया था जिनके एबीओ रक्त समूह या एंटीबॉडी दाता के साथ असंगत हैं.

2005 - पहला सफल पारटिकल फेस ट्रांसप्लांट फ्रांस में किया गया.

2010 -पहला सफल फुल फेस ट्रांसप्लांट वैली डी हैब्रोन हॉस्पिटल स्पेन में किया गया.

कोविड-19 के दौरान ऑर्गन ट्रांसप्लांट

अमेरिकन सोसायटी ऑफ ट्रांसप्लांट के बयान :ऑर्गन डोनेशन से कोविड-19 होने का जोखिम कम है. कोविड-19 लक्षणों और जोखिम के लिए डोनर की हिस्ट्री जांच की जाती है. जीवित डोनर उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रहे हैं या कोविड-19 संक्रमण मरीज के संपर्क में आए हैं. इसके लिए आमतौर पर 14 से 28 दिनों के लिए डोनेशन को स्थगित करने के लिए कहा जाता है. कुछ ऑर्गन प्रोक्यूरमेंट ऑर्गनाइजेशन कोविड-19 के लिए कुछ डोनरों का परीक्षण कर रहे हैं.

कोविड-19 से गंभीर बीमारी के लिए पोस्ट ट्रांसप्लांट या दूसरे उज्ज जोखिम वाले रोगियों को अधिक जोखिम हो सकता है. गंभीर मामलों में रिकवरी में छह हफ्ते या उससे अधिक समय भी लग सकता है. जिससे दुनिया भर में लगभग 1% संक्रमित लोग बीमारी से मर जाएंगे.

मार्च 2020 में वुहान में ऑर्गन डोनेशन केंद्रों ने सभी ट्रांसप्लांट सर्जरी को पूरी तरह से रोक दिया. जीवित ऑर्गन ट्रांसप्लांट, आग्नाशय ट्रांसप्लांट और किडनी ट्रांसप्लांट पर निलंबन पहले अन्य कम प्रभावित क्षेत्रों में माना जाता था. हालांकि अर्जेंट ट्रांसप्लांट सर्जरी को बढ़ाकर जीवनशैली अभी भी अधिकांश केंद्रों में आगे बढ़ी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा परिभाषित ट्रांसमिशन पैटर्न के अनुसार, जब कुछ मामलों में जब मरीजों को अंगों की जरूरत होती है, तब अंगों को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए जब सारे माध्यम उपलब्ध हो जाएं, तो सावधानी और भी जरूरी हो जाती है.

जिन क्षेत्रों में कम्यूनिटी ट्रांसप्लांट बढ़ रहे हैं, उन क्षेत्रों में रोगियों की सेहत को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा ट्रांसप्लांटेशन में टायर्ड ससपेंशन को ध्यान में रखा जाता है.

भारत में ऑर्गन डोनेशन
ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (टीएचओए) 1994 में ट्रांसप्लांट को चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए मानव अंगों के निष्कासन, भंडारण और प्रत्यारोपण को क्रम में रखना है. साथ ही यह मानव अंगों के वाणिज्यिक प्रयोग को भी प्रतिबंधित करता है. (टीएचओए) को अब आंध्र और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों द्वारा अपनाया गया है. जिनके पास अपने समान कानून हैं.

ब्रेन स्टेम मौत को कई अन्य देशों की तरह ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एक्ट के तहत भारत में एक कानूनी मौत के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसने मृत्यु के बाद अंग दान की अवधारणा में क्रांति ला दी है.

भारत में अंगों की कमी की स्थिति

  • अंगों की कमी वैसे तो एक पूरी दुनिया में समस्या है, लेकिन एशिया बाकी दुनिया में बहुत पीछे है. भारत एशिया में भी अन्य देशों से बहुत पीछे है. ऐसा नहीं है कि ट्रांसप्लांट के लिए पर्याप्त अंग नहीं हैं. लगभग हर व्यक्ति जो स्वाभाविक रूप से, या किसी दुर्घटना में मर जाता है, एक संभावित दाता है. फिर भी, असंख्य रोगियों को दाता नहीं मिल पाता है.
  • हर साल लगभग 1.8 लाख लोग किडनी की खराबी से पीड़ित होते हैं, हालांकि किए गए किडनी के ट्रांसप्लांट की संख्या लगभग 6,000 है.
  • भारत में दो लाख रोगी हर साल लीवर की फोल या लीवर में कैंसर से मरते हैं, जिनमें से लगभग 10-15% को समय पर लीवर प्रत्यारोपण कर बचाया जा सकता है. इसलिए भारत में प्रतिवर्ष लगभग 25-30 हजार यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल एक हजार पांच सौ के बारे में प्रदर्शन किया जाता है.
  • 50,000 व्यक्ति सालाना हार्ट फेलियर से पीड़ित हैं, लेकिन भारत में हर साल लगभग 10 से 15 हार्ट ट्रांसप्लांट ही किए जाते हैं.
  • कॉर्निया के मामले में, एक लाख की आवश्यकता के लिए हर साल लगभग 25,000 प्रत्यारोपण किए जाते हैं.

ऑर्गन डोनेशन के बारे में तथ्य...

  • कोई भी व्यक्ति अपनी दूसरी उम्र, जाति, धर्म, समुदाय आदि के बावजूद अंग दाता कर सकता है.
  • अंग दान करने की कोई निर्धारित उम्र नहीं है. अंगों को दान करने का निर्णय सख्त चिकित्सा मानदंडों पर आधारित है, न कि उम्र पर.
  • प्राकृतिक मृत्यु के मामले में कॉर्निया, हृदय वाल्व, त्वचा और हड्डी जैसे ऊतकों को दान किया जा सकता है, लेकिन हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे महत्वपूर्ण अंगों को अंद केवल 'मस्तिष्क की मृत्यु' के मामले में दान किया जा सकता है.
  • हृदय, अग्न्याशय, यकृत, गुर्दे और फेफड़ों जैसे अंगों को उन प्राप्तकर्ताओं को प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिनके अंग फेल (विफल) हो रहे हैं क्योंकि यह कई प्राप्तकर्ताओं को एक सामान्य जीवन शैली में लौटने की अनुमति देता है.
  • 18 वर्ष से कम उम्र के किसी को भी माता-पिता या संरक्षक के समझौते के लिए दाता होने की आवश्यकता है.
  • सक्रिय रूप से कैंसर, एचआईवी, मधुमेह, किडनी रोग या हृदय रोग फैलने जैसी गंभीर स्थिति होने पर आपको जीवित दाता के रूप में दान करने से रोका जा सकता है.
Last Updated : Aug 13, 2020, 7:07 PM IST

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