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महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार जताने का दिन है 'महिला दिवस'

आजाद भारत में आपने कई बार लोगों को महिलाओं के हित और उनके अधिकारों के बारे में बात करते सुना होगा. इतना ही नहीं उनके प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार जताने के लिए महिला दिवस जैसे दिन भी मनाए जाते हैं. आठ मार्च को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाता है. आइए, जानते हैं महिला दिवस मनाने के पीछे क्या है खास वजह...

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महिला दिवस विशेष

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Published : Mar 8, 2020, 5:40 PM IST

'यस्य नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता... अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. नारी के बारे में भारतीय संस्कृति की यही मूल सोच है. हालांकि, आज जो हालात दिखाई देते हैं, वह इससे ठीक उलट मालूम पड़ते हैं. दुर्भाग्य ये है कि आज नारी की व्याख्या हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है. और यह सचमुच बेहद चिंताजनक है.

महिला दिवस सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध से कुछ समय पहले, 1911 में यूरोप में कम्युनिस्ट समाजवादी संगठनों द्वारा शुरू किया गया था, तब इसे 19 मार्च को मनाया जाता था.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दो साल बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तारीख में बदलाव करते हुए साल 1913 में इसे 8 मार्च कर दिया गया और तब से इसे आठ मार्च को मनाया जाता है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं को सम्मान देने के साथ महिला सशक्तिकरण और लैंगिक असमानता को दूर रखते हुए मनाया जाता है.

इसका उद्देश्य महिलाओं को स्वतंत्रता, समानता और मताधिकार देना था.

इस दिवस को आधिकारिक मान्यता साल 1975 में मिली. यह वही साल था, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक थीम के साथ इसे मनाना शुरू किया.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सबसे पहली थीम भविष्य की योजना बनाते हुए भूतकाल का जश्न मनाना (celebrating the past planning for the future) रखी गई. खास बात यह है कि हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के लिए एक अलग थीम रखी जाती है. इस बार महिला दिवस के लिए जो थीम रखी गई है, उसका नाम है - 'मैं जेनरेशन इक्वेलिटी हूं: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूं' (I am Generation Equality: Realizing Women's Rights).

आज महिलाएं खुद को बेहतर तरीके से अपने को व्यक्त कर सकती हैं. पहले ऐसा नहीं था. पढ़ने की आजादी से लेकर नौकरी करने और वोट डालने को लेकर भी सीमित अधिकार थे.

आपको बता दें साल 2017 में हुए एक सर्वे के अनुसार इस बात का आकलन किया गया कि महिला-पुरुष के बीच लैंगिक असमानता को खत्म करने में अब भी 100 साल और लगेंगे.

क्या कहते हैं आंकड़े :

⦁ विश्व स्तर पर पुरुषों की तुलना में महिलाएं 23% कम कमाती हैं.

⦁ दुनियाभर में केवल 24% संसदीय सीटों पर महिलाओं का कब्जा है, जिसमें भारत का औसत केवल 12% है.

⦁ लिंग समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान से भी पीछे है.

⦁ महिलाओं के खिलाफ हिंसा में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है. यहां हर घंटे महिलाओं के खिलाफ 6 आपराधिक वारदात होते हैं.

⦁ 96 प्रतिशत महिलाएं भावनात्मक हिंसा से पीड़ित हैं, जबकि 82 प्रतिशत शारीरिक हिंसा से पीड़ित हैं.

⦁ 70 फीसदी महिलाएं आर्थिक हिंसा से पीड़ित हैं.

⦁ 15 प्रतिशत महिलाएं दहेज की शिकार हैं और 42 प्रतिशत महिलाएं यौन अत्याचार की शिकार हैं.

⦁ 153 देशों में भारत एकमात्र देश है, जहां पुरुषों और महिलाओं के बीच आर्थिक असमानता उनके बीच की राजनीतिक विषमता से कहीं ज्यादा है.

सही मायने में महिला दिवस तब ही सार्थक होगा, जब विश्वभर में महिलाओं को मानसिक व शारीरिक रूप से संपूर्ण आजादी मिलेगी, जहां उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहां उन्हें दहेज के लालच में जिंदा नहीं जलाया जाएगा, जहां कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहां बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहां उन्हें बेचा नहीं जाएगा, जब समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नजरिए को महत्वपूर्ण समझा जाएगा.

तात्पर्य यह है कि उन्हें भी पुरुषों के समान एक इंसान समझा जाएगा, जहां वे सिर उठा कर अपने महिला होने पर गर्व करें न कि पश्चाताप...कि काश, मैं एक लड़का होती..

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