कोलकाता :तृणमूल कांग्रेस से शुभेंदु अधिकारी का पूरी तरह से अलग होना केवल समय की बात है. पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलकों में अब दो सवाल मंडरा रहे हैं. पहला सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी की स्नेह भरी छाया से बाहर निकलने के बाद शुभेंदु पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलके से धीरे-धीरे बाहर हो जाएंगे? या अगले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के शासन को समाप्त करने में प्रमुख शिल्पकार बनेंगे ? राजनीतिक अंकगणित दूसरी संभावना पर अधिक बल देता है.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस पश्चिम मिदनापुर और झारग्राम के दो जिलों में पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल की ताकत अभी बरकरार है ये दोनों जिले पश्चिम मिदनापुर से सटे हुए जिले हैं. 2019 में पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल का हिसाब शुभेंदु या अधिकारी परिवार के प्रभाव के कारण बरकरार रहा. शुभेंदु के पिता और कांथी से लोकसभा के सदस्य शिशिर अधिकारी फिलहाल लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सबसे बुजुर्ग प्रतिनिधि हैं. शुभेंदु के भाई दिब्येंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के तमलुक लोकसभा से सांसद हैं. एक अन्य भाई सौमेंदु अधिकारी कांथी नगर निगम के अध्यक्ष हैं.
अच्छा खासा प्रभाव रखता है अधिकारी परिवार
इन दिनों अकसर कहा जा रहा है कि अभी शुभेंदु राजनीतिक दिशा दिखा रहे हैं, जिसे अधिकारी परिवार अपनाएगा. इसलिए शुभेंदु के पार्टी छोड़ने के बाद अगर पिता और दो भाई एक ही रास्ते पर चलते हैं तो 16 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. क्योंकि जिले में मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर अधिकारी परिवार का प्रभाव अभी भी बरकरार है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसा हुआ तो नंदीग्राम में तृणमूल कांग्रेस की जड़ें हिल जाएंगी.. ये वही जगह है जिसने तृणमूल के भूमि आंदोलन ने वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक चले वाम मोर्चा शासन को उखाड़ फेंकने में प्रमुख भूमिका निभाई थी. इससे पूरे दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से एक गलत संकेत जाएगा. यहां यह उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के विधानसभा-वार परिणामों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस सिंगुर पर पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि 2011 में वाम मोर्चा शासन के अंत के लिए जिम्मेदार भूमि आंदोलन का यह एक अन्य प्रमुख केंद्र रहा है.
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