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अपराधियों पर इस्तेमाल हो रही है न्याय की तलवार !

देश में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए अपराधियों को सजा मिलना आवश्यक है. खासकर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को अगर राजनीतिक दल टिकट नहीं देने का संकल्प ले लें तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है.

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Published : Oct 7, 2020, 12:45 PM IST

Updated : Oct 7, 2020, 1:56 PM IST

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सुप्रीम कोर्ट ने छह साल पहले कहा था कि अच्छे शासन का मतलब अपराधियों को जल्दी सजा मिलना सुनिश्चित करना है. आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को पक्का भरोसा है कि जब वे खुद लोगों के प्रतिनिधि के रूप में शासक हैं तो सजा की गुंजाइश कहां है ! राष्ट्रपति के रूप में नारायणन ने कहा था कि यदि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट नहीं देने का संकल्प ले लें तो समस्या आसानी से हल हो जाएगी.

इसके साथ ही उन्होंने सीधे उनसे सवाल किया था - क्या पार्टियां इतना भी नहीं कर सकती हैं ? राजनीतिक दलों को धन्यवाद जो सभी समझदारीपूर्ण सलाहों को दरकिनार करके ससम्मान अपराधियों को अपनी पार्टियों में आने के लिए आमंत्रित करने में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगी हैं. मौजूदा लोकसभा 43 फीसद आपराधिक पृष्ठभूमि के जन प्रतिनिधियों के साथ फल-फूल रही है.

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने एक पखवाड़े पहले लोकतंत्र की पवित्रता को भ्रष्टाचार और आपराधिक राजनीति से बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के अनुरूप पहल की है. उच्च न्यायालय ने 118 विशेष अदालतों, सीबीआई और एसीबी अदालतों में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मामलों को देखते हुए रोजाना सुनवाई की तैयारी कर ली है.

सांसदों के खिलाफ अधिकांश मामलों में समन जारी न करने से नाराज शीर्ष अदालत ने पुलिस अधिकारियों को उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. न्यायालय मित्र विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश भर में पूर्व और वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ 4442 मामले लंबित हैं. जिनमें से 2556 मामले वर्तमान सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ दर्ज हैं.

जिन 413 मामलों में उम्रकैद की सजा हो सकती है, उनमें से 174 मामलों में आरोपी मौजूदा सांसद और विधायक हैं. हालांकि इससे पहले दो तेलुगु राज्यों समेत कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विशेष अदालतें स्थापित की गई हैं लेकिन सभी मामले लंबित हैं. उम्मीद है कि तेलंगाना उच्च न्यायालय की पहल से आपराधिक न्याय व्यवस्था की नींद खुलेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में निर्देश दिया था कि जनता के सूचना के अधिकार को एक हथियार के रूप में बदला जाना चाहिए और चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों के व्यक्तिगत इतिहास को उनके आपराधिक पृष्ठभूमि सहित व्यापक रूप से समाचार पत्रों और सभी उपलब्ध सार्वजनिक मीडिया के माध्यम से जनता के बीच लाया जाना चाहिए.

वास्तविक व्यवहार में पृष्ठभूमि वाले पक्ष को कमजोर कर दिया गया है. चुनाव आयोग ने प्रमुख चैनलों और समाचार पत्रों की सूची नहीं बताई है जिनमें उन्हें अपनी पृष्ठभूमि बतानी है. इससे उम्मीदवारों ने कानूनी अड़चन से बचे रहने के लिए आपराधिक मामलों की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कम लोकप्रिय समाचार पत्रों और चैनलों पर ऑड समय का उपयोग किया है. सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों के चंगुल से राजनीति को मुक्त करने के लिए संसद को मजबूत कानून बनाने का निर्देश दिया.

न्यायपालिका सचमुच संविधान के दायरे के भीतर रहकर भ्रष्ट राजनीति को खत्म करने के लिए अकेली लड़ाई लड़ रही है. उच्चतम न्यायालय के फैसले की भावना का केवल मुंह से सम्मान देते हुए कांग्रेस ने पिछले चुनावों की तुलना में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 47 से अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जबकि वर्तमान लोकसभा में भाजपा के पास आपराधिक मामलों के साथ 59 सांसद हैं.

यह देखना बाकी है कि सुप्रीम कोर्ट का पिछले फरवरी का आदेश किस हद तक प्रभावी है जिसमें कोर्ट ने कहा है कि पार्टी को सार्वजनिक रूप से मतदाताओं को यह बताना चाहिए कि उसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को क्यों चुना ? राजनीतिक दल सुशासन और स्वच्छ राजनीति के लिए नाम मात्र के सम्मान के साथ जीत के स्वार्थवश धन और बाहुबल के साथ हार्ड-कोर अपराधियों को प्रोत्साहित करते हैं तो जीतने वाले अपराधी लोकतांत्रित मूल्यों की उपेक्षा के साथ संवैधानिक निकायों पर हावी हो रहे हैं.

अपराधियों को संसद और विधानसभाओं में प्रवेश रोकने के लिए संसद सख्त कानून बनाने के लिए तैयार नहीं है. कम से कम न्यायपालिका की नई पहल से यदि दागी नेताओं के खिलाफ लंबित मामलों की तेजी से सुनवाई पूरी हो जाती है और अपराधियों को उचित दंड मिलने के साथ हमारी न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास दिखाई देने लगता है तो भारतीय लोकतंत्र राहत की सांस लेगा.

Last Updated : Oct 7, 2020, 1:56 PM IST

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