हैदराबाद : पूर्वी लद्दाख में चीन से तनाव के बाद भारत रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की जल्द से जल्द आपूर्ति चाहता है, क्योंकि चीन के पास यह रक्षा प्रणाली पहले से ही मौजूद है. इस प्रणाली का पूरा नाम S-400 ट्रायम्फ है, जिसे नाटो देशों में SA-21 ग्रोलर के नाम से भी जाना जाता है. रूस द्वारा विकसित यह मिसाइल प्रणाली जमीन से हवा में मार करने में सक्षम है. एस-400 रूस की सबसे लंबी दूरी की मिसाइल प्रणाली माना जाता है.
15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे. इसलिए भारत सेना को मजबूती देने की लिए एस-400 की जल्द से जल्द आपूर्ति चाहता है. आपकों बता दें कि चीन ने रूस से पहले ही इस मिसाइल की आपूर्ति करवा ली है.
बता दें कि 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बीच नई दिल्ली में वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के अवसर पर 5.4 अरब डॉलर के मिसाइल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
इस मिसाइल प्रणाली का इस्तेमाल 2007 में मॉस्को की रक्षा करने के लिए किया गया था. इसके लॉन्चर के साथ 48N6 श्रृंखला की मिसाइलें लॉन्च की जा सकती है, जो तबाही मचा सकती हैं. यह एस-300 का अपग्रेडेड वर्जन है. इसके जरिए सहत से हवा में मार किया जा सकता है.
चीन रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली का अधिग्रहण कर चुका है. इस वजह से यह भारत के लिए चिंता विषय बना हुआ है. चीन के साथ सीमा पर बढ़ते तनाव के मद्देनजर भारत की प्रथम प्राथमिक एस-400 आपूर्ति है.
अमेरिका की थाड मिसाइल एस-400 को टक्कर देती है. लेकिन अमेरिका की यह मिसाइल एस-400 कमजोर मानी जाती हैं. एस 400 के साथ कई सिस्टम लगे हैं. इसमें राडार, खुद निशाना चिह्रित करने वाले एंटी एयर क्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लॉन्चर, कमांड और कंट्रोल सेंटर हैं.