हैदराबाद : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सबसे पुराने और सबसे भरोसेमंद सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने यह आरोप लगाते हुए राजग को छोड़ दिया कि संसद से पारित और बाद में राष्ट्रपति के स्तर से स्वीकृत महत्वपूर्ण कृषि अध्यादेश विधेयकों पर उससे सलाह नहीं ली गई. सबसे पहले केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दिया, लेकिन पंजाब में प्रदर्शनकारी किसानों को संतुष्ट करने के लिए यह पर्याप्त नहीं था.
प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने आरोप लगाया कि हरसिमरत का इस्तीफा जैसी अपेक्षा की जा रही थी उसी के अनुरूप था, लेकिन इससे कृषि क्षेत्र के हितों की रक्षा का कोई मकसद पूरा नहीं होता. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और आम आदमी पार्टी ने दबाव की रणनीति बनाई और अकाली दल को चुनौती दी कि अगर वास्तव में किसानों के हितों की परवाह है तो गठबंधन से बाहर निकले. अपनी राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) के दिनभर विचार-विमर्श के बाद अकाली दल ने वह कर दिया, जिसके बारे में सोचा नहीं जा सकता था. अकाली दल न केवल पद छोड़ दिया, बल्कि भाजपा से नाता भी तोड़ लिया. यह एक ऐसा गठबंधन था जो 1997 में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने एक साथ मिलकर काफी मेहनत से बनाया था.
पंजाब के लिए मायने रखता है एमएसपी
सत्तारूढ़ राजग ने जब संसद में कृषि विधेयक पारित किए थे तब उन्हें इसका अहसास नहीं था कि पंजाब में किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का क्या मतलब है. पंजाब में फसल अच्छी हो तो उसका अच्छा राजनीतिक लाभांश मिलना भी तय होता है. एक तरह से अच्छी उपज के सीधे अनुपात में चुनावी लाभ मिलना माना जाता है. राज्य में किसान हमेशा अपनी फसल के लिए अच्छा एमएसपी तय करने के लिए सत्ताधारी दल को पुरस्कार के रूप में उसका समर्थन करते हैं. पंजाब देश की सबसे अच्छी मंडी व्यवस्था में शामिल है. वहां के गांव की सड़कें सीधे बाजार से जुड़ी हुई हैं. संयुक्त पंजाब में कृषि उत्पादों की मार्केटिंग का काम देश की आजादी के भी पहले वर्ष 1939 के शुरुआत में प्रारंभ हो गया था, तब सर छोटू राम ने विकास मंत्री के रूप में एपीएमसी अधिनियम पारित किया था, जिससे बाजार समितियों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ.
सन् 1960 और 70 के दशक में नेताओं ने महसूस किया कि अधिक उपज की गारंटी के लिए पूंजी और प्रौद्योगिकी समय की मांग है. एमएसपी का विचार पंजाब के लिए नया नहीं है, क्योंकि गेहूं के लिए एमएसपी 1966-67 में पहली बार 54 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था, जिसके बाद में अगले साल 70 रुपये कर दिया गया था.
राजनीतिक दलों के लिए कृषि क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण
राज्य में चुनाव 2022 में होने वाला है, लेकिन अकाली दल किसानों के क्रोध को झेल पाने में असमर्थ है. किसान एमएसपी व्यवस्था के बंद करने के विचार के खिलाफ बाहें चढ़ा रहे हैं. हालांकि, केंद्र ने इस बात से इनकार किया है कि वह एमएसपी की व्यवस्था को बंद करना चाहती है. पंजाब की 65 फीसद आबादी सीधे खेती की गतिविधियों से जुड़ी है और उनके हितों की अनदेखी करना कोई आसान काम नहीं है.
किसानों को लुभाने के लिए राज्य सरकार हर साल 10 हजार करोड़ रुपये की बिजली अनुदान के रूप में देती है. यह मुद्दा राजनीतिक रूप से इतना संवेदनशील बन गया है कि कोई भी पार्टी अब मुफ्त बिजली वापस लेने की वकालत नहीं कर सकती है. अब सभी दल कृषि विधेयक का विरोध क्यों कर रहे हैं, यह समझना मुश्किल नहीं है.
पीएसी की बैठक के बाद अकाली नेताओं ने कहा कि वह भाजपा के अंदर धीरे-धीरे लोकतंत्र की मौत से आहत थे, क्योंकि भाजपा प्रमुख मुद्दों पर उनकी सलाह नहीं लेती थी. उदाहण के तौर पर एमएसपी वापस लेने के बाद कृषि क्षेत्र की किस्मत का क्या होगा और एपीएमसी पूरी तरह से खोल दिया जाए तो? पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल ने बताया कि कैबिनेट की बैठक के दौरान कृषि अध्यादेश विधेयक पर उनसे सलाह नहीं ली गई थी.