नई दिल्ली : महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बीते शुक्रवार को हुई घटना में 16 मजदूरों की मौत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. यह मजदूर लॉकडाउन में रोजगार छिन जाने के बाद महाराष्ट्र से पैदल ही अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश जा रहे थे. रेल पटरियों के साथ चले ये प्रवासी मजदूर जब थक कर चूर हो गए तो पटरियों पर ही सो गए और एक मालगाड़ी इनको कुचलती हुई निकल गई.
जब यह खबर सुर्खियों में आई तो रेल मंत्रालय ने आनन-फानन में इस पर जांच गठित करने की घोषणा की. महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश दोनों राज्य की सरकारों ने मृतक मजदूरों के परिवार को पांच-पांच लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की, लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद यह पहली घटना नहीं थी जब किसी प्रवासी मजदूर की मौत दुर्घटना की वजह से हुई हो.
लॉकडाउन के दौरान अब तक प्राप्त आंकड़ों में लगभग 145 लोगों की मौतें हुई हैं, जिनमें से कम से कम 50 लोग प्रवासी मजदूर थे. शुक्रवार को औरंगाबाद की घटना के अगले दिन शनिवार को ही मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में एक सड़क दुर्घटना में पांच प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई, जबकि 13 अन्य मजदूर घायल हो गए. यह सभी मजदूर आम से भरे एक ट्रक से तेलंगाना से अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश जा रहे थे.
सोमवार को भी अलग अलग घटनाओं में पांच प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में दो प्रवासी मजदूरों की मौत ट्रक पलटने से हो गई. यह मजदूर तेलंगाना से चले थे और रास्ते में ट्रक से लिफ्ट लिया था. वहीं हरियाणा से बिहार के लिए चले एक मजदूर की मौत कार से टक्कर लगने से हो गई, तो उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 25 वर्षीय शिवकुमार दास की मौत भी एक सड़क दुर्घटना में हो गई. शिवकुमार उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर स्थित अपने घर के लिए चले थे.
बीते शुक्रवार को ही 26 वर्षीय शागिर अंसारी की मौत भी सड़क दुर्घटना में हो गई. वह दिल्ली से नौ मई को साइकिल से बिहार के पूर्वी चंपारण स्थित अपने घर के लिए निकले थे.
शागिर अंसारी मजदूरी कर अपना परिवार चलाते थे और उनकी मौत के बाद अब उनकी पत्नी और तीन छोटे बच्चों के पास कोई सहारा नहीं है.
बिहार बेगूसराय के रहने वाले रामजी महतो की कहानी भी पूरे देश के सामने है जो तीन अप्रैल को दिल्ली से बिहार के लिये पैदल निकले, लेकिन 850 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बनारस पहुंचे महतो ने वहीं दम तोड़ दिया. रामजी महतो के परिजन आर्थिक तंगी के कारण उसका अंतिम संस्कार करने तक भी नहीं आ सके और अंततः यह काम स्थानीय पुलिस के द्वारा कराया गया.
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छत्तीसगढ़ के बीजापुर की रहने वाली 12 वर्षीय युवती जामलो मकदम तेलंगाना में मिर्च की खेती में मजदूरी करती थी. लॉकडाउन के बाद काम बंद हो गया तो 11 अन्य मजदूरों के साथ पैदल ही तेलंगाना छत्तीसगढ़ की तरफ चल पड़ी. दो दिन में 150 किलोमीटर पैदल चलने के बाद मकदम की तबियत बिगड़ी और उसने दम तोड़ दिया. बाद में छत्तीसगढ़ सरकार ने जामलो मकदम के परिवार के लिए एक लाख रुपये की सहायता राशी की घोषणा की.
ऐसे तमाम मामले सामने आए हैं और सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों और विपक्षी पार्टियों ने लगातार मांग रखी है कि प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने की पूरी व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है और यह जल्द किया जाना चाहिए, लेकिन उनका आरोप है कि सरकारों ने निर्णय लेने में पर्याप्त देरी की है.
आरएसएस की मजदूर इकाई भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महासचिव विरजेश उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि श्रम मंत्री और गृहमंत्री से हुई उनकी मुलाकात के दौरान उन्होंने प्रवासी मजदूरों के विषय को उनके सामने रखा है और इस बाबत ज्ञापन भी सौंपा है. जिन मजदूरों की जान गई है उसकी कोई भरपाई नहीं की जा सकती, लेकिन सरकार को उनके परिवार के लिये निश्चित रूप से सोचना चाहिए.