नई दिल्ली : सर्दी तेजी से आ रही है और रात का तापमान पैंगोंग त्सो और पूर्वी लद्दाख के आसपास के क्षेत्रों में शून्य से नीचे 20 डिग्री को छू रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास और अंदरूनी क्षेत्रों में एक लाख भारतीय और चीनी सैनिक डेरा डाले हुए हैं. ऐसे में बहुत चिंता की बात है कि अगले कुछ महीनों के लिए वहां निर्मम प्रकृति सबसे जानलेवा दुश्मन होगी.
ऐसा नहीं है कि भारतीय सैनिकों ने इससे पहले इस तरह की बहुत अधिक ऊंचाई पर कभी युद्ध लड़ा और जीता नहीं है. 1841 में प्रसिद्ध डोगरा जनरल जोरावर सिंह ने अपने सैनिकों के साथ पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर डेरा डालकर अपने सैनिकों को जमी हुई झील पर प्रशिक्षण दिया था और शीतकालीन युद्ध के लिए तैयार किया था. उनकी प्रबल इच्छा तिब्बत पर जीत की थी.
पैंगोंग त्सो भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच टकराव की जगहों में से एक है, वहां दोनों पक्षों की ओर से सैनिकों का भारी जमावड़ा है. चीन ने उत्तरी तट पर वर्चस्व वाली ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था, जबकि दक्षिणी तट पर भारत को बढ़त हासिल हुई थी.
पूर्वी लद्दाख और तिब्बत की क्रूर सर्दियों में प्रकृति से निपटने के लिए जोरावर की सेना ने सर्वश्रेष्ठ तैयारियां की थीं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं थीं. वर्ष 1834 में लद्दाख को जीतने के बाद सैन्य अभियान की सफलता से उत्साहित उन्होंने 1839-40 में स्कर्दू (वर्तमान गिलगित-बाल्टिस्तान) पर कब्जा कर लिया. उसके बाद जोरावर सिंह ने तिब्बत की ओर अपना ध्यान मोड़ा, जहां लाभदायक शॉल व्यापार उनकी आंखों में बस गया था.
भारतीय इतिहासकारों ने जोरावर सिंह और उनके कारनामों के बारे में बहुत कुछ लिखा है, लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि तिब्बती स्रोतों का क्या कहना है. तिब्बती विद्वान और तिब्बती सरकार के पूर्व वित्त मंत्री डब्ल्यूडी शाकबपा त्सेपन (1907-1989) के अनुसार, जोरावर सिंह की सेना में सिख और लद्दाखी दोनों शामिल थे. तिब्बत की सेना के साथ लड़ाई पश्चिमी तिब्बत के गुहारी कोर्सुम में हुई, जिसके बाद जोरावर सिंह की सेना टकलाखार (भारत-नेपाल-चीन तीनों देशों की सीमा के पास बुरान प्रांत में है, जिसे अब तकलाकोट कहा जाता है) तक आगे बढ़ गई.
हालांकि, तिब्बती सेना के पास युद्ध के लिए अच्छे साजो-सामान नहीं थे, लेकिन उसने अपने हित में परिचित मौसम का उपयोग किया और कुछ महीनों तक लड़ने के बाद वह लोग तकलाकोट से जोरावर सिंह और उनके लोगों को बाहर निकालने में सफल रहे. यह वही सर्दियों का समय था, जिसके आगमन की तिब्बती प्रतीक्षा कर रहे थे.