नई दिल्ली : कहा जाता है कि युद्धों और संघर्षों के कोहरे में सबसे पहला नुकसान सच्चाई का होता है. ऐसा ही कुछ भारत-चीन के बीच सोमवार को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर रेजांग ला के पास मुखपरी पर्वत के आसपास गोलाबारी के दौरान देखने को मिला. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ट्रिगर किसने दबाया. हालांकि भारतीय सेना और पीएलए दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि गोलीबारी हुई. उनका कहना है कि उन्होंने पहले फायर नहीं किया और इसके लिए दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.
पीएलए के सैनिकों ने बंदूकों और 'गुंडाओ', जिसे 'यानायडो' भी कहा जाता है (लकड़ी की लाठी से बना हथियार), जो शाओलिन कुंगफू खिलाड़ियों द्वारा इस्तेमाल किया गया. इसका रेजांग ला के पास मुठभेड़ में इस्तेमाल किया गया, जिससे सोशल मीडिया पर आने के बाद चारों तरफ हाहाकार मच गया और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हुआ.
1975 के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुई इस गोलीबारी ने दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक रूप से सहमती से बनी शर्तों को नष्ट कर दिया.
इसमें न केवल आग्नेय शस्त्र के इस्तेमाल का सहारा न लेने का फैसला शामिल था, बल्कि इलाके में गश्त के दौरान हथियार चलाना भी नहीं था.
यह पहला मौका था कि चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पीएलए के पश्चिमी थियेटर कमांड के प्रवक्ता के बयान को ट्वीट करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने सोमवार को पैंगोंग त्सो झील के दक्षिण तट के पास शेनपाओ पर्वत में अवैध रूप से LAC को पार किया और जब उन्हे पीएलए सैनिकों ने रोका तो उन्होंने फायरिंग कर दी, जिसके बाद स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए पीएलए को कार्रवाई करनी पड़ी.