हैदराबाद : नई दिल्ली में 27 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे बोडोलैंड समझौता कहा गया है. इस समझौते से बोडो लोगों को अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा.
कौन हैं बोडो लोग?
बोडो एक जातीय-भाषीय समूह है, जिसे असम का सबसे प्रारंभिक निवासी माना जाता है. बोडो लोग चीन-तिब्बती लोगों की तिब्बती-बर्मन शाखा से संबंधित भारतीय-मंगोलियाआई समुदायों से हैं. सभ्यता के शीर्ष काल में बोडो लोगों ने उत्तर-पूर्व भारत, नेपाल के कुछ हिस्सों, भूटान, उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश के लगभग पूरे क्षेत्र पर शासन किया था. बोडो लोगों को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में एक मैदानी जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.
क्या है उनकी मांग?
बोडो लोगों की मांग है कि उनके लिए असम के आठ जिलों के कुछ क्षेत्र को लेकर एक अलग (बोडोलैंड) राज्य (भारतीय संघ के भीतर) बनाया जाए. वह आठ जिले हैं, कोकराझार, धुबरी, बोंगाईगांव, बारपेटा, नलबाड़ी, कामरूप, दरंग और सोनितपुर जिला.
अब तक हुए हैं तीन समझौते
बोडो लोग अलग बोडो राज्य की मांग पिछले पांच दशकों से कर रहे हैं. इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलनों में हजारों लोगों की जान जा चुकी है. इसको रोकने के लिए तीन समझौते किए गए हैं.
- पहले बोडो समझौते पर ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ 1993 में हस्ताक्षर किया गया था. इस समझौते बाद सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (बोडोलैंड ऑटोनॉमस काउंसिल) का गठन किया गया था.
- दूसरा बोडो समझौता 2003 में आतंकवादी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ किया गया था. इसके तहत बोडोलैंज टेरिटोरियल काउंसिल का गठन किया गया था.
- तीसरा बोडो समझौता 2020 में हुआ. इस त्रिपक्षिय समझौते पर केंद्र सरकार, असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के सभी गुटों और एबीएसयू ने हस्ताक्षर किए.
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बोडो संघर्ष का कालक्रम
बोडो लोग असम के सबसे पुराने निवासी हैं. उनके संघर्ष का इतिहास आजादी के पहले का है, लेकिन 80 के दशक के अंत में असम के बंटवारे को लकेर आंदोलन तेज हो गए थे. इसी दौरान प्रमुख अगाववादी समूहों की स्थापना हुई.
बोडो लोगों ने अलग राज्य की मांग करने के लिए कई कारण दिए हैं. उनका कहना है कि जिस क्षेत्र में वह सदियों से रह रहे हैं वह उनका घर है. इसके साथ ही वह अपनी जातीय पहचान, जीवन के तरीके और भाषा की रक्षा करने के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. वह बेहतर प्रशासन और विकास चाहते हैं.
1929- बोडो नेता गुरुदेव कालीचरण ब्रह्मा ने साइमन कमीशन को एक ज्ञापन सौंपते हुए विधानसभा में आरक्षण और बोडो लोगों के लिए अलग राजनीतिक इकाई की स्थापना की मांग की.