लॉकडाउन की मार झेल रही बंगाल की टोटो जनजाति
भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में भूटान के हिमालयी राज्य में कई गरीब टोटो दिहाड़ी पर काम करते हैं. लॉकडाउन ने इनकी स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है.
टोटोपारा : दुनिया में सबसे कम आबादी वाली जनजातियों में से एक पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में टोटोपारा की टोटो जनजाति अपनी अनोखी भौगोलिक स्थिति के कारण लॉकडाउन की मार झेल रहा है. स्थानीय निवासियों ने सोमवार को यह जानकारी दी.
केवल 1,600 की आबादी वाले टोटो पश्चिम बंगाल के तीन विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में से एक है. वे केवल टोटोपारा में रहते हैं.
भूटान की सीमा से लगे एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित टोटोपारा मदारीहाट से केवल 16 किमी दूर है. इनके बीच में पांच पहाड़ी नदियां हैं जो केवल मानसून में बहती हैं.
भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में भूटान के हिमालयी राज्य में कई गरीब टोटो दिहाड़ी पर काम करते हैं.
पंचायत प्रधान (प्रमुख) सुग्रीब टोटो ने कहा कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण टोटोपारा के प्रवासी मजदूर काम के लिए भूटान जाने में असमर्थ हैं और जो लोग लॉकडाउन से पहले भूटान गए थे वे वहां फंसे हुए हैं.
उन्होंने कहा कि टोटोपारा के निवासी पीडीएस में मिले चावल और आटे पर गुजारा कर रहे हैं. लॉकडाउन के कारण अन्य आवश्यक वस्तुएं गांव में नहीं मिल पा रही हैं.
गांव के किसान सुपारी और अदरक जैसी नकदी फसलों पर निर्भर हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण वे मदारीहाट के थोक व्यापारियों को ये फसलें नहीं बेच पा रहे हैं.
सुग्रीव टोटो ने कहा कि गांव को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मानसून के अलावा अन्य मौसम में टोटोपारा के निवासी पानी लाने भूटान जाते हैं. कोविड-19 के खतरे के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी गई है.
उन्होंने कहा कि गांव में लगाए गए चार हैंड-पंप में से दो काम नहीं करते हैं और लॉकडाउन के कारण इन्हें ठीक कराने का काम भी ठप हो गया है.
एक अन्य निवासी रीता टोटो ने कहा कि टोटो लोगों को चिकित्सा सुविधाओं के लिए भी कई मुश्किले उठानी पड़ा रही हैं क्योंकि गांव के इकलौते पीएचसी की हालत खराब है. लॉकडाउन के कारण स्थानीय लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए मदारीहाट नहीं जा पा रहे हैं.