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अवैध खनन और पेड़ों की कटाई से नदियां बदल रहीं रास्ता, मुश्किल में वन्यजीव और जंगल

जलपाईगुड़ी साइंस नेचर क्लब के सचिव राजा राउत का कहना है कि पिछले दस वर्षों में पेड़ों की अवैध कटाई और रेत खनन के कारण नदियों ने अपना मार्ग बदल लिया है. जिससे अक्सर लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है. साथ पर्यावरण को भी नुकसान हो रह है.

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Published : Jun 6, 2020, 2:12 AM IST

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सांकेतिक चित्र

जलपाईगुड़ी : नदी के तल से रेत के अवैध खनन और पेड़ों की अनियोजित कटाई से उत्तर बंगाल में नदियों की दिशा में बदलाव लाने के लिए अग्रणी है. हरित पर्यावरण के लिए काम करने वाले कई पर्यावरणविदों और संगठनों ने यह दावा किया है.

जलपाईगुड़ी साइंस नेचर क्लब के सचिव राजा राउत कहते हैं कि पिछले दस वर्षों या उससे अधिक समय से तीस्ता नदी जलपाईगुड़ी जिले में मयनागुरी के बार्निश क्षेत्र के साथ बहती थी और फिर मेखलीगंज के तट को छूती हुई बांग्लादेश की ओर बहती थी, लेकिन रंगधामली क्षेत्र में नदी के तल से रेत और पत्थरों के अवैध खनन से नदी के प्रवाह मार्ग में बदलाव आया है. अब यह जलपाईगुड़ी शहर के सारदा पाली क्षेत्र के करीब बह रही है.

अवैध खनन की वजह से अलीपुरद्वार जिले में सिलतोर्शा नदी से रेत के अवैध खनन के कारण नदी अपना रास्ता बदल देती है. राउत आरोप लगाते हैं, कि नदी की राह बदल गई है और जलदापारा क्षेत्र से होकर बह रही है, जिससे पेड़ों और वन भूमि को नुकसान पहुंचा है. इस तरह अलीपुरद्वार जिले की कलजनी और रैदाक नदियां ने भी अपना रास्ता बदल लिया और बक्सा टाइगर रिजर्व से होकर बहती हैं, जिससे वन्यजीवों के साथ-साथ पूरा क्षेत्र भी खतरे में है.

राउत ने कहा कि हम जानते हैं कि पड़ोसी भूटान में पत्थर और रेत का अवैध खनन भी जारी है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदी के किनारे से पत्थरों के खनन के बारे में कड़ाई से नियम बनाए हैं. लेकिन, न तो भूटान में कोई रोक है, न ही भारत में. साथ ही पेड़ों की अवैध कटाई से अतिरिक्त खतरा पैदा हो रहा है.

भूटान में भारी वर्षा होती है तब जलढाका और डायना नदियों से जयगांव, बीरपारा, मदारीहाट और अलीपुरदुआर के आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आती रहती है. तराई के चाय बागानों और राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे प्रमुख मार्गों सहित कई सड़कें भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं.

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भूगोल विभाग के पूर्व प्रमुख, उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, सुबीर सरकार कहते हैं कि सन 1998 में नदी के किनारों से रेत और पत्थरों के अवैध खनन के कारण हुए नुकसान का आकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था. तीन साल में एक रिपोर्ट सौंपी गई, जिसमें उत्तर बंगाल में नदियों के प्रवाह पर इन गतिविधियों के कारण लंबी अवधि के साथ-साथ अल्पकालिक क्षति का हवाला दिया था. तदनुसार, एनजीटी ने इस तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन, जिला अधिकारियों द्वारा निगरानी की कमी के कारण अधिक नुकसान हुआ है.

सरकार ने कहा कि भूटान में पेड़ों की कटाई लंबे समय से एक बड़ी चिंता का विषय है. इसके अलावा, वहां पर मौजूद लोगों को समय पर वर्षा की मात्रा के बारे में जानकारी नहीं मिलती है, जिससे उन्हें अचानक बाढ़ का सामना करना पड़ता है. चेतावनी प्रणाली के साथ एक व्यापक योजना इस बारहमासी मुद्दे को संबोधित करने के लिए बहुत जल्द लागू करने की आवश्यकता है, जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तब तक तीस्ता समेत उत्तर बंगाल की 11 नदियां जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जिलों में कहर बरपाती रहेंगी.

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