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मध्यप्रदेश : अस्तित्व खोती बावड़ियों की कहानी

मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में बनी अधिकतर प्राचीन बावड़ियां कभी शहर में पानी का मुख्य स्त्रोत थीं, जो आज बदहाल हो चुकी हैं. शहर की अधिकांश बावड़ियां कूड़ेदान में तब्दील हो चुकी हैं. जिनका अस्तित्व कभी भी मिट सकता है. नगर-निगम और प्रशासन इन बावड़ियों के रखरखाव पर ध्यान नहीं दे रहा.

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अपना अस्तित्व खोती बावड़ियों की कहानी

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Published : Jun 4, 2020, 12:35 PM IST

रतलाम: मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में गर्मी के मौसम में पानी एक बड़ी समस्या होती है. शहर के अधिकांश इलाकों में पानी के लिए लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि रतलाम में जल स्त्रोतों की कमी है. लेकिन स्थानीय लोगों की अनदेखी और प्रशासनिक लापरवाही से ये जल स्त्रोत अपना अस्तित्व खोने के कगार पर हैं. कभी शहर की बावड़ियां लोगों की प्यास बुझाती थीं, मगर अब इनका हाल बेहाल है. रतलाम शहर की प्यास बुझाने वाली प्राचीन बावड़ियां आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं.

ईटीवी भारत ने जब शहर की बावड़ियों के मौजूदा हालत का रियलिटी चेक किया तो पाया कि, अधिकांश बावड़ियां अब कूड़ेदान में तब्दील हो गई हैं. रतलाम की प्रसिद्ध दो मुंह की बावड़ी, हकीमवाड़ा की बावड़ी, कौड़िया बावड़ी और सिद्धेश्वर महादेव बावड़ी कभी शहर के लोगों की प्यास बुझाती थीं. लेकिन अब यही बावड़ियां अतिक्रमण का शिकार होती जा रही हैं.

अपना अस्तित्व खोती बावड़ियों की कहानी

कूड़ेदान बन चुकी हैं प्राचीन बावड़ियां

शहर के कालिका माता क्षेत्र में बनी कौड़िया बावड़ी एक जमाने में पानी का मुख्य जरिया थी. बेहद सुंदर कलाकृतियों से बनी यह बावड़ी अब जर्जर होती जा रही है. आसपास के रहवासी इस बावड़ी में ही अपना कचरा डालते हैं. जिससे इस बावड़ी का पानी दूषित हो चुका है. हालांकि कुछ स्थानीय लोगों की पहल से इस बावड़ी की सफाई व्यवस्था जरूर की गई थी. लेकिन नगर निगम के जिम्मेदारों के ध्यान नहीं देने से यह बावड़ी अब बदहाल हालत में है. रतलाम रेलवे स्टेशन मार्ग पर बनी सिद्धेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी का भी यही हाल है. जो अतिक्रमण और गंदगी की भेंट चढ़ गई है. रतलाम की प्रसिद्ध हकीमवाड़ा की प्राचीन बावड़ी और अमरेश्वर महादेव बावड़ी भी अब बदहाल नजर आती हैं. खास बात यह है कि अमरेश्वर महादेव की बावड़ी नगर निगम कार्यालय से महज 100 फीट की दूरी पर स्थित है. लेकिन निगम के जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते यहां किसी प्रकार की सफाई व्यवस्था नहीं है.

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प्राचीन समय में शहर की जल व्यवस्था के लिए बावड़ियां और छोटे-छोटे तालाब बनाए जाते थे. जिससे नगर की जनता अपनी प्यास बुझाती थी. रतलाम में करीब एक दर्जन भव्य बावड़ियों का निर्माण शहर की स्थापना के साथ ही महाराजा रतन सिंह के कार्यकाल में करवाया गया था. वहीं शहर के सामाजिक लोगों ने भी अलग-अलग समय में बावड़ियों का निर्माण करवाया था. लेकिन वक्त के साथ सुंदर कलाकृतियों से तराश कर बनाई गई भव्य बावड़ियां अब अपना अस्तित्व खोती जा रही है. अब जरुरत इन्हे सहेजने की है ताकि शहर की प्यास बुझती रहे.

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