हैदराबाद :स्वतंत्र भारत ने सात दशकों में पानी के बांधों, जलाशयों और बैराजों का निर्माण देखा है. लेकिन आज भी देश की 85 प्रतिशत आबादी पीने के पानी के लिए भू-जल पर निर्भर है. किसान भी सिंचाई के लिए भू-जल का ही इस्तेमाल करते हैं. एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के बावजूद भू-जल हमारे देश का सर्वाधिक दूषित एवं शोषित संसाधन है. भारत वर्षा जल की खराब संचयन व्यवस्था के कारण हर साल देश में होने वाली बारिश का केवल आठ प्रतिशत ही रख पाता है. इसके परिणामस्वरूप भू-जल स्तर की भरपाई नहीं हो पा रही है. जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में घोर जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में वर्ष 2025 तक 25 प्रतिशत कमी आने का अनुमान है और यह वर्ष 2035 तक खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा. जल शक्ति मंत्रालय ने स्थिति का सही आकलन किया है और जल का बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल करने का एक तंत्र तैयार किया है. मंत्रालय ने शहरी व ग्रामीण निकायों, निगमों व जल बोर्डों से जल संरक्षण अभियान में भाग लेने और जल की बर्बादी करने वालों पर जुर्माना लगाने को कहा है.
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने वर्ष 2017 के अक्टूबर में भू-जल ससाधनों को दुरुस्त करने के लिए नियमों का एक नया मसौदा तैयार किया था. वर्ष 2019 के अगस्त में जल शक्ति अभियान के तहत देश के 256 जिलों में जल संरक्षण की शुरुआत की गई. स्थिति बहुत चिंताजनक हो जाए उसके पहले केंद्र को हर हाल में जल संरक्षण के इन प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करना सुनिश्चित करना होगा.
पर्यावरणविद और 'वाटर मैन ऑफ इंडिया' राजेंद्र सिंह ने कहा कि देश के 72 प्रतिशत भू-जल संसाधन उस स्थिति में पहुंच गए हैं जिनकी मरम्मत नहीं हो सकती. नासा के एक अध्ययन से खुलासा हुआ है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में 10 फीट तक भू-जल गंवा दिया है जो अमेरिका के मानव निर्मित सबसे बड़े जलाशय 'लेक मिड' को भरने के लिए जितने पानी की जरूरत है, उसके बराबर है.