शिमला : हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के वार्ड नंबर एक के निवासी विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनते जा रहे हैं. हादसे में दोनों टांगों के साथ छोड़ने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.
दिव्यांगता से लड़कर भी पेट पालने वाले विशन दास को दिक्कतें हर राह पर मिल रही हैं. जिला ऊना के वार्ड नंबर एक में भू मालिकों के अपनी जमीनों पर तारबंदी करने से विशन दास के घर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान भी उनके परिवार को कंधों पर उठाकर ही घर लाना पड़ता है.
विशन दास जन्म से दिव्यांग नहीं थे और करीब 15 साल पहले तक दिल्ली में उनका वेल्डिंग का काम बहुत बढ़िया चल रहा था, लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा हुआ. आपसी लेन-देन के कारण उन्हीं के कामगार ने उनके पीठ में गोली मार दी. इससे विशन दास की कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया और वह जीवनभर के लिए दिव्यांग बनकर रह गये.
इसके बाद दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़कर विशन दास अपने घर ऊना वापस आ गये. साथ ही दिल्ली से लोहे के उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आये.
हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गये. फिलहाल तीन साल तक बिस्तर पर रहने के बाद उन्होंने बिस्तर पर लेटे ही वेल्डिंग का छोटा-छोटा काम करना शुरू कर दिया. इसीका नतीजा रहा कि आज वह वेल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटते.